ग्रामीण रोजगार के अधिकार पर खतरे को लेकर सरकार और विपक्ष एकजुट
चंडीगढ़, 30 दिसंबर (हि.स.)।
पंजाब विधान सभा में मंगलवार को ग्रामीण रोजगार से जुड़ी वीबी-जी राम जी योजना के विरोध में केंद्र सरकार के खिलाफ सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया। यह प्रस्ताव राज्य के ग्रामीण विकास एवं पंचायत मंत्री तरुनप्रीत सिंह सौंद ने सदन में प्रस्तुत किया, जिस पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने एक स्वर में समर्थन जताया। सदन की कार्यवाही के दौरान यह स्पष्ट संदेश दिया गया कि ग्रामीण मजदूरों के हितों से किसी भी प्रकार का समझौता पंजाब को स्वीकार नहीं है।
प्रस्ताव के माध्यम से केंद्र सरकार के उस कदम की कड़ी आलोचना की गई, जिसमें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम को समाप्त कर उसे ‘विकसित भारत– रोजगार एवं आजीविका मिशन (ग्रामीण) के लिये गारंटी अधिनियम’ यानी वीबी-जी राम जी योजना से बदलने की तैयारी की जा रही है। सदन में कहा गया कि यह बदलाव नाम का नहीं बल्कि अधिकारों का है, जो सीधे तौर पर ग्रामीण गरीबों, महिलाओं और लाखों जॉब कार्ड धारक परिवारों की आजीविका पर असर डालेगा।
ग्रामीण विकास एवं पंचायत मंत्री तरुनप्रीत सिंह सौंद ने चर्चा के दौरान बताया कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम को भारत सरकार ने सितंबर 2005 में पारित किया था और वर्ष 2008-09 में इसे पंजाब के सभी जिलों में लागू किया गया। बाद में 2 अक्टूबर 2009 को इसका नाम बदलकर मनरेगा रखा गया। इस कानून का मूल उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में हर उस वयस्क को, जो गैर-हुनरमंद शारीरिक कार्य करने को इच्छुक हो, एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का गारंटीशुदा रोजगार देकर आजीविका सुरक्षा प्रदान करना था। मंत्री ने कहा कि यह कानून मांग आधारित है, यानी जैसे ही मजदूर काम की मांग करता है, राज्य की जिम्मेदारी बनती है कि उसे रोजगार उपलब्ध कराया जाए।
इसके विपरीत वीबी-जी राम जी अधिनियम 2025 में भले ही 125 दिनों के रोजगार का उल्लेख किया गया हो, लेकिन इसकी गारंटी पूरी तरह केंद्र सरकार के बजट और सीमित वित्तीय प्रबंधों पर निर्भर होगी। सदन में यह आशंका जताई गई कि इस व्यवस्था में रोजगार मजदूर की मांग पर नहीं, बल्कि पहले से तय योजनाओं और आवंटन के आधार पर मिलेगा। ऐसे में रोजगार की गारंटी केवल कागजों तक सीमित रह जाएगी और जरूरतमंद मजदूरों को समय पर काम नहीं मिल पाएगा।
विधान सभा में वक्ताओं ने यह भी कहा कि नई योजना से राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डाला जाएगा, जबकि पहले से ही कई राज्य सीमित संसाधनों में ग्रामीण विकास की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। प्रस्ताव में यह स्पष्ट किया गया कि पंजाब जैसे कृषि प्रधान राज्य में मनरेगा केवल रोजगार योजना नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जिससे मजदूरों की आय, महिलाओं की भागीदारी और गांवों में बुनियादी ढांचे का विकास सुनिश्चित होता है।
चर्चा के दौरान वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा, अमन अरोड़ा, लाल चंद कटारूचक्क, डॉ. बलबीर सिंह, हरभजन सिंह ई.टी.ओ. सहित सत्ता पक्ष के कई वरिष्ठ नेताओं ने प्रस्ताव का समर्थन किया। वहीं विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा और अन्य विपक्षी विधायकों ने भी सरकार के रुख से सहमति जताते हुए कहा कि ग्रामीण रोजगार के मुद्दे पर राजनीति से ऊपर उठकर एकजुट होना जरूरी है। सदन में मौजूद सभी वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि यदि मनरेगा जैसे अधिकार आधारित कानून को कमजोर किया गया, तो इसका सबसे बड़ा नुकसान गरीब और मेहनतकश वर्ग को होगा।
विधान सभा में पारित इस प्रस्ताव के जरिए पंजाब ने केंद्र सरकार को स्पष्ट संदेश दिया है कि वह ग्रामीण मजदूरों के गारंटीशुदा रोजगार के अधिकार से किसी भी तरह का समझौता स्वीकार नहीं करेगा। सदन की कार्यवाही ने यह भी दिखाया कि ग्रामीण हितों के सवाल पर पंजाब की राजनीति में दुर्लभ एकता देखने को मिली, जहां सत्ता और विपक्ष दोनों ने एक मंच पर खड़े होकर अपनी बात रखी।
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