विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें फिलहाल स्थगित, केंद्र और चार राज्यों से मांगा जवाब

अरावली पर्वतमाला को लेकर देशभर में उठे पर्यावरणीय और जन सरोकार से जुड़े विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम और दूरगामी फैसला लेते हुए अपने ही पूर्व आदेश पर रोक लगा दी है। अदालत ने 20 नवंबर को दिए गए उस आदेश को फिलहाल स्थगित कर दिया है, जिसमें 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों में खनन की अनुमति का उल्लेख था। अब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि 21 जनवरी 2026 तक अरावली क्षेत्र में किसी भी प्रकार का खनन नहीं किया जाएगा।

सोमवार को इस संवेदनशील मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की वैकेशन बेंच ने की, जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत कर रहे थे। उनके साथ न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति एजी मसीह भी पीठ में शामिल थे। सुनवाई के दौरान अदालत ने माना कि अरावली को लेकर दिए गए आदेशों और विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को लेकर व्यापक स्तर पर भ्रम और गलत व्याख्याएं सामने आई हैं, जिन्हें दूर करना आवश्यक है।

हाई पावर विशेषज्ञ समिति गठित करने का प्रस्ताव

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि अदालत की मंशा और टिप्पणियों को लेकर गलत अर्थ निकाले जा रहे हैं। इसी कारण यह जरूरी हो गया है कि पूरे मामले का निष्पक्ष और स्वतंत्र मूल्यांकन किया जाए। अदालत ने निर्देश दिया कि एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित की जाए, जो मौजूदा विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का गहन विश्लेषण करेगी और अरावली से जुड़े सभी अहम सवालों पर स्पष्ट सुझाव सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखेगी।

अदालत ने यह भी साफ किया कि विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें और उन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई आगे की टिप्पणियां फिलहाल स्थगित अवस्था में रहेंगी। अगली सुनवाई तक इन सिफारिशों को लागू नहीं किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि इन्हीं सिफारिशों में यह कहा गया था कि केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली पर्वतमाला माना जाए, जिसका देशभर में तीखा विरोध हो रहा है।

केंद्र और चार राज्यों को नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार के साथ-साथ अरावली से जुड़े चार राज्यों राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और दिल्ली को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। अदालत यह जानना चाहती है कि इन राज्यों की भूमिका क्या रही है और वे अरावली संरक्षण को लेकर क्या कदम उठा रहे हैं।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि पूरे मामले में सरकार की भूमिका और अदालत के आदेशों को लेकर कई तरह की गलतफहमियां फैलाई जा रही हैं। इन्हीं भ्रमों को दूर करने के लिए पहले विशेषज्ञ समिति बनाई गई थी, जिसकी रिपोर्ट को अदालत ने स्वीकार भी किया था। हालांकि अदालत ने माना कि अब उस रिपोर्ट का पुनर्मूल्यांकन जरूरी हो गया है।

स्वतः संज्ञान और वैकेशन बेंच में सुनवाई

अरावली की नई परिभाषा और खनन से जुड़े प्रभावों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है। वैकेशन कोर्ट में यह मामला सूची में पांचवें नंबर पर रखा गया था। अदालत ने पहले ही संकेत दे दिया था कि जमीन से 100 मीटर की सीमा तय करना केवल तकनीकी नहीं, बल्कि पर्यावरण, जल संरक्षण और जनजीवन से जुड़ा गंभीर मुद्दा है, जिस पर गहराई से विचार आवश्यक है।

अशोक गहलोत का बयान: जनता की भावना को समझे सरकार

इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के स्थगन आदेश से उन्हें बेहद खुशी है। उन्होंने कहा कि चारों राज्यों की जनता ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लोग अरावली को बचाने के आंदोलन से जुड़े हैं और सड़कों पर उतरकर विरोध जता चुके हैं। ऐसे में यह समझ से परे है कि पर्यावरण से जुड़े मंत्री जनता की भावना को क्यों नहीं समझ पा रहे हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार अब जनभावनाओं का सम्मान करेगी।

आरपी बलवान की याचिका और गोदावर्मन मामला

हरियाणा के वन विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी आरपी बलवान ने भी केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की समिति की सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने पहले से चल रहे गोदावर्मन मामले में याचिका दाखिल की थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, राजस्थान और हरियाणा सरकार के साथ-साथ पर्यावरण मंत्रालय को नोटिस जारी किया है। इस याचिका पर अब शीतकालीन अवकाश के बाद सुनवाई होगी।

केंद्र सरकार ने नए खनन पट्टों पर लगाई रोक

विवाद बढ़ने के बाद केंद्र सरकार ने भी कदम पीछे खींचते हुए अरावली क्षेत्र में नए खनन पट्टों पर पूर्ण रोक लगाने के निर्देश जारी किए। 24 दिसंबर को केंद्रीय वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि पूरी अरावली श्रृंखला में अब कोई नया खनन पट्टा जारी नहीं किया जाएगा। यह प्रतिबंध सभी राज्यों में समान रूप से लागू होगा और इसका उद्देश्य राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक फैली इस प्राचीन भूवैज्ञानिक श्रृंखला की रक्षा करना है।

हालांकि इस पर विपक्षी नेताओं ने कहा कि केंद्र का यह बयान कोई नई पहल नहीं है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का ही पालन है। इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला यह संकेत देता है कि अरावली पर्वतमाला के संरक्षण को लेकर अब किसी भी प्रकार की जल्दबाजी नहीं की जाएगी और हर पहलू पर विशेषज्ञों की राय के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा।

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