शीतकालीन सत्र के पहले दिन सदन में शासन–विपक्ष के बीच नोकझोंक, सभापति ने ‘सहनशीलता’ और ‘मर्यादा’ को बताया सर्वोच्च

नई दिल्ली, 1 दिसंबर। संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत राज्यसभा में नए सभापति सीपी राधाकृष्णन के अभिनंदन से हुई, जहां सत्ता और विपक्ष — दोनों ने उन्हें शुभकामनाएं दीं। इस दौरान सदन के नेता जेपी नड्डा ने विस्तृत संबोधन देते हुए कहा कि संसद में जिम्मेदार आचरण ही लोकतंत्र की पहचान है। उन्होंने सर्वपल्ली राधाकृष्णन के शब्दों का हवाला देते हुए कहा कि संसद के सदस्य जिम्मेदार नागरिक की तरह व्यवहार करें, न कि “गैर-जिम्मेदार पेशेवर आंदोलनकारी” की तरह।

नड्डा ने राधाकृष्णन के जीवन, उनके संघर्ष और उनकी विचारधारा को याद करते हुए कहा कि उन्होंने राजनीतिक जीवन में सदैव दबाव से मुक्त होकर अपने विवेक के आधार पर निर्णय लिए हैं। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि राधाकृष्णन ने कांग्रेस परिवार में जन्म लेने के बावजूद राष्ट्रवादी विचारों को आत्मसात किया और सामाजिक कार्यों को जीवन का केंद्र बनाया।

नड्डा ने विपक्ष की टिप्पणी को बताया अप्रासंगिक
सदन में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने राधाकृष्णन का स्वागत करते हुए पूर्व सभापति के “अचानक इस्तीफे” की चर्चा की, जिस पर सत्ता पक्ष ने आपत्ति जताई। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू और जेपी नड्डा दोनों ने कहा कि इस मौके पर पूर्व सभापति के इस्तीफे की चर्चा उचित नहीं थी। नड्डा ने कहा कि कांग्रेस ने ही उनके खिलाफ दो बार नोटिस दिया था, इसलिए इस मुद्दे को दोहराना अनावश्यक है। उन्होंने कहा कि “फिलहाल सदन का केंद्र बिंदु नए सभापति का अभिनंदन होना चाहिए।”

विपक्ष ने सहयोग का भरोसा दिया
खरगे ने कहा कि राज्यसभा सरकार और विपक्ष दोनों की सदन है, और वे निष्पक्ष कार्यवाही में पूरा सहयोग देंगे। उन्होंने आग्रह किया कि सदस्यों को समान समय और अवसर मिले। इस टिप्पणी पर भी सत्ता पक्ष की ओर से व्यवधान हुआ, लेकिन बाद में सदन सामान्य हो गया।

सभी दलों ने किया स्वागत
तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन, डीएमके के त्रिची शिवा, आरपीआई (ए) के रामदास आठवले सहित कई दलों के नेताओं ने नए सभापति को शुभकामनाएं दीं और सदन की गरिमा बनाए रखने की अपेक्षा जताई।

सभापति राधाकृष्णन ने क्या कहा?
अपने पहले संबोधन में राधाकृष्णन ने सभी सदस्यों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि:
“इस सदन की महान परंपरा को कायम रखना मेरा दायित्व है। हमें किसी की भावनाएं आहत करने का अधिकार नहीं है। दूसरों के भिन्न विचारों का सम्मान, सहनशीलता और लोकतांत्रिक मर्यादा ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है।”

उन्होंने भारत माता को प्रणाम करते हुए सदन में प्रवेश करने वाले सभी नए सदस्यों का विशेष स्वागत किया।

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