स्वयंसेवकों के भावबल और जीवनबल से ही संघ की शक्ति और यात्रा संभव – सरसंघचालक
जयपुर में ज्ञान गंगा प्रकाशन द्वारा आयोजित पुस्तक विमोचन समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने रविवार को स्वयंसेवकों की भूमिका, संघ की यात्रा तथा उसकी कार्यप्रणाली पर विस्तृत विचार व्यक्त किए। पाथेय कण संस्थान के नारद सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में ‘...और यह जीवन समर्पित’ नामक ग्रंथ का विमोचन किया गया। यह पुस्तक राजस्थान में संघ के दिवंगत 24 प्रचारकों के जीवन, त्याग, कार्य और चरित्र का समग्र दस्तावेज मानी जा रही है।
डॉ. भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि संघ का वास्तविक बल भवनाओं, समर्पण, अनुशासन और जीवन मूल्यों से संचालित स्वयंसेवकों में निहित है, न कि संसाधनों और सुविधाओं में। उन्होंने स्पष्ट किया कि संगठन की नींव सेवा, त्याग और समाज बोध पर आधारित है, इसलिए संघ का निर्माण और विस्तार किसी बाहरी मॉडल से नहीं, बल्कि स्वयंसेवकों के जीवन मूल्य और तपस्या से हुआ है।
“संघ की शक्ति सुविधाओं से नहीं, सेवाभाव से बढ़ती है”
डॉ. भागवत ने कहा कि आज संघ का कार्यक्षेत्र विस्तृत हुआ है, व्यवस्थाएँ बढ़ी हैं और संसाधन भी उपलब्ध हैं, लेकिन इसके साथ कई चुनौतियाँ भी खड़ी हुई हैं। ऐसे समय में प्रत्येक स्वयंसेवक को उसी भाव, धैर्य और समर्पण के साथ कार्य करना होगा, जैसा कठिन परिस्थितियों, विरोध और उपेक्षा के समय किया जाता था।
उन्होंने कहा कि संघ को समझने के लिए केवल विचार या दूरी से देखना पर्याप्त नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष अनुभव आवश्यक है। उन्होंने कहा कि संघ जैसी शाखाएं प्रारंभ करने के कई प्रयास हुए, परंतु स्वयंसेवक भावना के अभाव में वे लंबे समय तक नहीं चल पाईं।
100 वर्षों की संघ यात्रा – ‘एक कल्पना, जो आज दिशा बनी’
डॉ. भागवत ने उल्लेख करते हुए कहा कि सौ वर्ष पूर्व कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि शाखाओं के माध्यम से राष्ट्र निर्माण की दिशा तय हो सकती है। लोग इसे सामान्य व्यायाम या परेड समझते थे, लेकिन आज संघ सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति एवं प्रभाव के साथ शताब्दी वर्ष मना रहा है।
उन्होंने कहा कि स्वयंसेवकों के कार्यों ने समाज में स्वीकृति की ऐसी स्थिति निर्मित की है, जिसमें संघ के प्रयास चर्चा और सम्मान का विषय बन चुके हैं।
पुस्तक की प्रेरणा – त्याग, साधना और राष्ट्रभावना
प्रचारकों और वरिष्ठ स्वयंसेवकों के जीवन से प्रेरित पुस्तक ‘...और यह जीवन समर्पित’ के विमोचन पर डॉ. भागवत ने कहा कि यह पुस्तक केवल गौरव और संतोष प्रदान नहीं करती है, बल्कि कठिन, अनुशासित और समाजोन्मुख जीवन पथ पर चलने की प्रेरणा प्रदान करती है।
उन्होंने स्वयंसेवकों को संदेश देते हुए कहा कि यदि इस ग्रंथ में वर्णित व्यक्तित्वों के जीवन से प्रेरणा लेकर उनके तेज का एक अंश भी आचरण में उतारा जाए, तो समाज और राष्ट्र के लिए महान कार्य किए जा सकते हैं।
कार्यक्रम में उपस्थिति और सम्मान
समारोह की प्रस्तावना एवं पुस्तक परिचय संपादक भागीरथ चौधरी ने प्रस्तुत किया, जबकि ज्ञान गंगा प्रकाशन समिति के अध्यक्ष डॉ. मुरलीधर शर्मा ने आभार व्यक्त किया।
समिति के उपाध्यक्ष जगदीश नारायण शर्मा ने सरसंघचालक डॉ. भागवत का अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया।
कार्यक्रम में राजस्थान क्षेत्र संघचालक डॉ. रमेशचंद्र अग्रवाल सहित अनेक विशिष्ट जन उपस्थित रहे।
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