कपाट बंद होने के बाद पारंपरिक डोलियां पांडुकेश्वर के लिए रवाना, कल ज्योर्तिमठ पहुंचेंगी शंकराचार्य गद्दी

श्री बदरीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद होने के साथ ही उत्तराखंड की सदियों पुरानी धार्मिक परंपरा एक बार फिर जीवंत हो उठी। मंगलवार को कपाट बंद करने की विधियों के बाद बुधवार को श्री कुबेर, उद्धव और आदि गुरु शंकराचार्य जी की गद्दी धार्मिक रीति-रिवाज़ों और मंत्रोच्चार के बीच बदरीनाथ धाम से पांडुकेश्वर के लिए रवाना हुई। यह यात्रा बदरीनाथ के रावल की अगुवाई में पारंपरिक डोलियों के माध्यम से सम्पन्न हो रही है।

शीतकाल में बदरीनाथ धाम में नियमित पूजा संभव नहीं होती, इसलिए परंपरा के अनुरूप कुबेर और उद्धव की पूजा पांडुकेश्वर के आदि बदरी मंदिर, जबकि शंकराचार्य जी की गद्दी की शीतकालीन पूजा ज्योर्तिमठ में की जाती है।

भव्य स्वागत के लिए पांडुकेश्वर में तैयारियां पूरी

डोलियों के पांडुकेश्वर पहुंचने पर स्थानीय ग्रामीणों, तीर्थ पुरोहितों और मंदिर समिति द्वारा पारंपरिक ढंग से भव्य स्वागत किया जाएगा।
मंदिरों को फूलों से विशेष रूप से सजाया गया है। श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी हरीश गौड़ के अनुसार, गर्भगृह में कुबेर और उद्धव की स्थापना की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।

पूजा-अर्चना के बाद डोलियों को गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा, जहां पूरे शीतकाल में उनकी नियमित पूजा होगी। धार्मिक उत्साह और भक्तिभाव से लबरेज यह परंपरा बदरीनाथ धाम की आध्यात्मिक समृद्धि का एक महत्वपूर्ण प्रतीक मानी जाती है।

BADRINATH
BADRINATH Photograph: (GOOGLE)

27 नवंबर को शंकराचार्य गद्दी ज्योर्तिमठ के लिए रवाना होगी

पांडुकेश्वर में विश्राम और पूजा के बाद शंकराचार्य जी की गद्दी 27 नवंबर को ज्योर्तिमठ के लिए प्रस्थान करेगी। ज्योर्तिमठ में भी विशेष पूजा की तैयारियां चल रही हैं। यहां भगवान नरसिंह की विशेष पूजा-अर्चना होगी और उन्हें विशेष भोग अर्पित किया जाएगा।

ज्योर्तिमठ में इस अवसर पर एक विशेष धार्मिक उत्सव का वातावरण बनता है। आसपास के गांवों से लेकर दूरदराज़ के क्षेत्रों तक से लोग बड़ी संख्या में भगवान नरसिंह और शंकराचार्य गद्दी के दर्शन और पूजा के लिए पहुंचते हैं। स्थानीय परंपराओं और लोक आस्था से जुड़े इस आयोजन को पर्व जैसा महत्व प्राप्त है।

डोलियों की यात्रा: आध्यात्मिक विरासत का जीवंत प्रतीक

हर वर्ष शीतकाल के दौरान बदरीनाथ के कपाट बंद होने के बाद यह यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह उत्तराखंड की प्राचीन सांस्कृतिक परंपराओं का जीवंत प्रदर्शन भी है। भक्तों का मानना है कि पांडुकेश्वर और ज्योर्तिमठ में शीतकालीन पूजा के दौरान भी बदरीनाथ धाम की दिव्यता अविच्छिन्न रूप से बनी रहती है।

स्थानीय लोग इन डोलियों के स्वागत को अपने लिए सौभाग्य मानते हैं और इस अवसर पर पूरा क्षेत्र आध्यात्मिक उल्लास से भर जाता है। यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से निरंतर चल रही है और आज भी उतनी ही श्रद्धा के साथ निभाई जाती है।

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