1984 की भोपाल गैस त्रासदी: 41 साल बाद भी जख्म ताज़ा, पीड़ित आज भी इलाज और मदद के इंतज़ार में
भोपाल गैस त्रासदी भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक है। यह हादसा 2–3 दिसंबर 1984 की रात हुआ था। उस रात भोपाल शहर में लोग सामान्य तरीके से सो रहे थे। किसी को अंदाज़ा भी नहीं था कि कुछ घंटों बाद क्या होने वाला है। लेकिन अफसोस, बहुतों के लिए वह सुबह कभी नहीं आई।
भोपाल में यूनियन कार्बाइड नाम की एक फैक्टरी थी। इस फैक्टरी में कीटनाशक बनाने के लिए एक बहुत जहरीली गैस इस्तेमाल होती थी, जिसका नाम था मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC)। उस रात टैंक नंबर 610 में अचानक रासायनिक खराबी हो गई। टैंक में दबाव इतना बढ़ गया कि लगभग 40 टन जहरीली गैस बाहर निकल गई। कुछ ही मिनटों में यह गैस हवा के साथ पूरे इलाके में फैलने लगी।
फैक्टरी के आसपास गरीब मजदूरों की बस्तियाँ थीं। लोग गहरी नींद में थे। उन्हें समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है। गैस आंखों में जलन करती थी, सांस रुकने लगती थी और गले में तेज जलन होने लगती थी। कई लोग जैसे ही बाहर भागे, वहीं गिर पड़े। कई लोग तो सोते-सोते ही मर गए।
सरकारी आंकड़ों ने शुरुआती घंटों में लगभग 3,000 मौतें बताईं। लेकिन असल में मरने वालों की संख्या इससे कहीं ज्यादा थी। बाद के सालों में कुल मौतें लगभग 22,000 के पास मानी गईं। लगभग 1.5 लाख लोग इस गैस से हमेशा के लिए बीमार हो गए।
जब लोग अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टरों के लिए यह नई तरह की स्थिति थी। उन्हें नहीं पता था कि इतनी जहरीली गैस के मरीजों का इलाज कैसे करें। सिर्फ दो दिनों में 50 हजार से ज्यादा लोग अस्पताल पहुंचे। दवाएं, बेड, ऑक्सीजन – सब कम पड़ गया। पूरा सिस्टम टूट गया था।
समय बीता, लेकिन दर्द खत्म नहीं हुआ। जब हादसा हुआ, कुछ घंटों बाद शहर को सुरक्षित बता दिया गया था। लेकिन बाद में पता चला कि फैक्टरी की ज़मीन, पानी और आसपास का इलाका कई सालों तक जहरीला रहा। कई जगहों का पानी पीने लायक नहीं था। कई रिपोर्टें बताती हैं कि गैस का असर आज भी अगली पीढ़ी में दिखाई दे रहा है। बच्चों में जन्म से ही बीमारियाँ पाई जा रही हैं। कुछ जगहों पर कैंसर, सांस की दिक्कतें और कई गंभीर समस्याएँ आज भी देखी जाती हैं।
41 साल बाद भी पीड़ित लोग सही इलाज और पूरा मुआवज़ा पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कई लोग आज भी इंसाफ के इंतज़ार में हैं। हादसा सिर्फ एक रात नहीं था, बल्कि एक ऐसा जख्म है जो आज भी भोपाल की गलियों और लोगों की ज़िंदगी में दिखाई देता है।
रचना ढींगरा, जो भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन से जुड़ी हैं, कहती हैं कि पीड़ितों की हालत आज भी खराब है। 2008 में एक विशेष आयोग बनना था ताकि पीड़ितों का लंबे समय तक इलाज और मदद हो सके, लेकिन वह योजना आगे नहीं बढ़ पाई। इसका असर आज भी दिखता है। कई परिवार अब भी सही इलाज और आर्थिक सहायता के बिना ही संघर्ष कर रहे हैं। अगली पीढ़ी भी इन्हीं कठिनाइयों में जी रही है।
भोपाल गैस त्रासदी सिर्फ इतिहास नहीं है... यह आज भी लोगों की जिंदगी में जिंदा है।
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