ठाणे की राजनीति में बढ़ता तनाव: सहयोगी दल आमने-सामने

ठाणे । ठाणे नगर निगम चुनाव से पहले महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। राज्य की सत्ता में साथ होने के बावजूद ज़मीनी सियासत में भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के बीच तालमेल टूटता साफ दिखाई दे रहा है। एक ओर देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी ने शहर में अपने स्तर पर जोरदार प्रचार अभियान शुरू कर दिया है, वहीं दूसरी ओर एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना ने भी अलग राह पकड़ते हुए अपने समर्थकों को मैदान में उतार दिया है। दोनों दलों के इस कदम ने यह संकेत दे दिया है कि ठाणे में गठबंधन की गांठ फिलहाल ढीली पड़ चुकी है।

एकनाथ शिंदे का गढ़ और बदलती सियासी तस्वीर

ठाणे को लंबे समय से एकनाथ शिंदे का मजबूत राजनीतिक क्षेत्र माना जाता रहा है। नगर निगम से लेकर स्थानीय संगठन तक शिवसेना का प्रभाव यहां स्पष्ट रहा है। लेकिन हाल के महीनों में जिस तरह से सीटों के बंटवारे और रणनीति को लेकर सहमति नहीं बन पाई, उसने इस गढ़ में भी अनिश्चितता पैदा कर दी है। भाजपा द्वारा पूरे शहर में लगाए गए बड़े-बड़े बैनरों और “नमो भारत, नमो ठाणे” जैसे नारों ने साफ कर दिया है कि पार्टी इस चुनाव को सिर्फ सहयोगी के भरोसे नहीं छोड़ना चाहती। इसके जवाब में शिवसेना ने भी अपने झंडे, पोस्टर और सभाओं के जरिए अलग पहचान के साथ प्रचार तेज कर दिया है।

गठबंधन पर चुप्पी, मैदान में खुली चुनौती

अब तक भाजपा और शिवसेना की ओर से औपचारिक रूप से किसी साझा चुनावी समझौते की घोषणा नहीं की गई है। चुनाव की तारीख नजदीक आते ही दोनों दलों का अलग-अलग प्रचार करना यह दर्शाता है कि अंदरखाने बातचीत या तो ठप है या फिर बेहद कमजोर स्थिति में है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि दोनों दल अंत तक अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं, तो इसका सीधा असर वोटों के बंटवारे पर पड़ेगा। इससे न केवल ठाणे नगर निगम का समीकरण बदल सकता है, बल्कि राज्य स्तर पर भी सत्ता संतुलन पर सवाल खड़े हो सकते हैं।

भाजपा की रणनीति और शिवसेना की चिंता

भाजपा की रणनीति साफ तौर पर शहरी मतदाताओं, विकास के मुद्दों और केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं को आगे रखकर चुनाव लड़ने की दिख रही है। पार्टी यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि ठाणे के विकास को नई रफ्तार देने के लिए मजबूत और स्पष्ट नेतृत्व जरूरी है। दूसरी ओर शिवसेना के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि ठाणे को उसकी राजनीतिक पहचान का आधार माना जाता है। यदि यहां भाजपा ने मजबूत प्रदर्शन किया, तो यह शिंदे गुट के प्रभाव को कमजोर कर सकता है।

बीएमसी चुनाव पर भी असर की आशंका

ठाणे के साथ-साथ सभी की निगाहें मुंबई की बृहन्मुंबई महानगरपालिका के चुनाव पर भी टिकी हैं। देश की सबसे समृद्ध नगरपालिकाओं में शामिल बीएमसी का चुनाव हमेशा से राजनीतिक प्रतिष्ठा का सवाल रहा है। 15 जनवरी को होने वाले मतदान और 16 जनवरी को आने वाले नतीजे यह तय करेंगे कि महानगरों की राजनीति किस दिशा में जाएगी। ठाणे में भाजपा और शिवसेना के बीच बढ़ी दूरी का असर बीएमसी चुनावी रणनीति पर भी पड़ सकता है, क्योंकि दोनों क्षेत्रों की राजनीति आपस में गहराई से जुड़ी हुई है।

मुख्यमंत्री का संयम का संदेश और जमीनी हकीकत

दिलचस्प बात यह है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हाल ही में पार्टी की कोर बैठक में अपने नेताओं को स्पष्ट निर्देश दिए थे कि सहयोगी दलों के खिलाफ सार्वजनिक रूप से कोई आपत्तिजनक टिप्पणी न की जाए। उन्होंने यह भी कहा था कि शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी के नेताओं को लेकर बयानबाजी से बचा जाए। हालांकि, जमीनी स्तर पर जो तस्वीर उभर रही है, वह इन निर्देशों से अलग नजर आती है। प्रचार के तरीके, नारों और अलग-अलग सभाओं ने यह संकेत दे दिया है कि राजनीतिक प्रतिस्पर्धा अब खुलकर सामने आ चुकी है।

महाराष्ट्र की राजनीति में संभावित असर

ठाणे नगर निगम चुनाव सिर्फ एक स्थानीय चुनाव नहीं रह गया है, बल्कि यह महाराष्ट्र की व्यापक राजनीति का संकेतक बनता जा रहा है। यदि सहयोगी दलों के बीच यह खींचतान आगे भी जारी रहती है, तो इसका असर आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों की रणनीति पर भी पड़ सकता है। मतदाताओं के सामने भी यह सवाल खड़ा हो रहा है कि सत्ता में साथ रहने वाले दल स्थानीय स्तर पर अलग-अलग राह क्यों चुन रहे हैं। 

न्यूजीलैंड के पीएम ने भारत के साथ व्यापार समझौते को बताया ऐतिहासिक

नीता अंबानी ने पिता की स्मृति में खोला कैंसर और डायलिसिस केंद्र ‘जीवन’

ठाणे नगर निगम चुनाव: गठबंधन की दरार खुलकर आई सामने, बीजेपी और शिवसेना ने अलग-अलग प्रचार से दिखाए सियासी तेवर

अनंतनाग में लश्कर के आतंकियों की मौजूदगी का दावा: बाजार में दिखे दो संदिग्ध, एक के पाकिस्तानी कमांडर होने की आशंका