कांग्रेस सांसद अजय माकन ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर चिंता जताई, कई विपक्षी नेताओं ने ईवीएम, वीवीपैट और मतदाता सूची की खामियों का मुद्दा उठाया
नई दिल्ली।
राज्यसभा में गुरुवार को शुरू हुई चुनाव सुधारों पर चर्चा ने देश की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं, चुनावी पारदर्शिता, आयोग की विश्वसनीयता और तकनीकी हस्तक्षेपों पर व्यापक बहस को जन्म दिया। सत्र की शुरुआत कांग्रेस सांसद अजय माकन के संबोधन से हुई, जिन्होंने कहा कि भारत लोकतंत्र की जननी है, लेकिन आज लोकतंत्र की जीवंतता गंभीर प्रश्नों के घेरे में है।
उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था तीन मूल सिद्धांतों—समान अवसर, पारदर्शिता और विश्वसनीयता—पर टिकी होती है, और यदि इनमें थोड़ी भी कमी आती है, तो संस्थाएँ कमजोर पड़ जाती हैं।
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— Dr. Sudhanshu Trivedi (@SudhanshuTrived) December 11, 2025
माकन ने आयोग की विश्वसनीयता, बैंक खातों के फ्रीज़ और सीसीटीवी एक्सेस पर गंभीर सवाल उठाए
अजय माकन ने सदन को बताया कि कांग्रेस के बैंक खाते 2024 लोकसभा चुनाव से पहले फ्रीज़ कर दिए गए थे और केवल परिणामों के बाद उन्हें अनफ्रीज़ किया गया। उन्होंने कहा कि यह चुनावी प्रक्रिया में समान अवसर के सिद्धांत को चोट पहुँचाने वाला कदम था।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि संशोधनों के बाद अब मतदान केंद्रों की सीसीटीवी फुटेज तक पहुंच संभव नहीं रही, जो पारदर्शिता को प्रभावित करता है।
उन्होंने सवाल किया—यदि चुनाव में सब कुछ पारदर्शी है, तो चुनाव अधिकारियों को प्रतिरक्षा (इम्युनिटी) क्यों दी जा रही है?
साथ ही उन्होंने कहा कि जब विपक्ष महिलाओं के लिए वित्तीय सहायता की घोषणा करता है, तो उसे रिश्वत की श्रेणी में रखा जाता है, लेकिन उसी तरह की घोषणाओं को सत्ताधारी दल के लिए उसी मापदंड से नहीं देखा जाता।
सुधांशु त्रिवेदी ने भारत के लोकतंत्र को दुनिया का सबसे मजबूत बताया
चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि यदि पूर्वी यूरोप से लेकर जापान तक की राजनीतिक व्यवस्था को देखें, तो वहां तीन ही लोकतांत्रिक देश बचते हैं—भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान—और इनमें भी भारत का लोकतंत्र सबसे अधिक जीवंत और सशक्त है।
उन्होंने 1952 के पहले आम चुनाव का उल्लेख करते हुए बताया कि संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर भी चुनाव मैदान में उतरे थे, लेकिन उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार नारायण काजोलकर ने हरा दिया था।
त्रिवेदी ने दावा किया कि उस चुनाव में 34,000 वोट रद्द किए गए और अंबेडकर को 15,000 वोटों से पराजित कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने एडविना माउंटबेटन को पत्र लिखकर इस परिणाम पर प्रतिक्रिया भी दी थी।
“कांग्रेस का पतन तकनीक से नहीं, पारदर्शिता के बढ़ने से हुआ” – सुधांशु त्रिवेदी
त्रिवेदी ने कहा कि आपातकाल का दौर और उसके बाद की घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ने के साथ ही पुराने ढांचे ढहने लगे।
उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस का राजनीतिक प्रभुत्व तब कमजोर होना शुरू हुआ जब—
सीसीटीवी कैमरे चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बने
वोटर आईडी कार्ड लागू हुए
मीडिया अधिक स्वतंत्र हुआ
न्यायपालिका और अधिक निष्पक्ष हुई
देश की साक्षरता दर 50% से अधिक पहुँची
उन्होंने कहा कि यह वही दौर था जब बूथ कैप्चरिंग, मतपेटी लूट और हिंसा आम बात थी, लेकिन तकनीक और जन-जागरूकता ने इस पूरे तंत्र को खत्म कर दिया है।
विपक्ष के अन्य नेताओं ने ईवीएम डिज़ाइन, वीवीपैट और मतदाता सूची की खामियों पर सवाल उठाए
डीएमके सांसद एनआर इलांगो ने चुनावी सुधारों के कानूनी ढांचे पर विस्तार से चर्चा की और कहा कि भारत में अभी भी एक पूरी तरह सुरक्षित चुनावी प्रणाली मौजूद नहीं है।
उन्होंने चुनाव आयोग की ईवीएम डिजाइन पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि आयोग के FAQs में ही कई ऐसी प्रविष्टियाँ हैं जो यह संकेत देती हैं कि प्रणाली में तकनीकी खामियाँ और पारदर्शिता की कमी है।
इलांगो ने वीवीपैट प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहा कि मतदाता और कंट्रोल यूनिट के बीच कोई सीधा इंटरफ़ेस नहीं है, जिससे पारदर्शिता की चिंता बनी रहती है।
आप सांसद संजय सिंह ने भी चर्चा में हिस्सा लिया।
वहीं तृणमूल कांग्रेस सांसद डोला सेन ने बांग्ला भाषा में बोलते हुए चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र, नागरिकता, बांग्लादेशी व रोहिंग्या घुसपैठ जैसे मुद्दे उठाए।
एआईएडीएमके सांसद थंबीदुरई ने मतदाता सूची में डुप्लीकेट नामों और सत्ताधारी डीएमके सरकार द्वारा कथित दुरुपयोग की बात उठाई। उन्होंने पूछा कि ऐसे में एसआईआर प्रक्रिया कैसे न्यायसंगत मानी जा सकती है।
सदन की कार्यवाही स्थगित
लगभग पूरे दिन चली बहस के बाद राज्यसभा अध्यक्ष ने सत्र को 12 दिसंबर सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया।
चुनाव सुधारों पर यह चर्चा आगामी सत्र में भी जारी रहेगी, क्योंकि यह मुद्दा देश के लोकतांत्रिक ढांचे और चुनावी विश्वसनीयता का केंद्र बना हुआ है।
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