कहा– गीत ने स्वतंत्रता संग्राम को ऊर्जा दी, अब इसे राष्ट्रीय चेतना में उचित स्थान मिलना चाहिए

लोकसभा में वंदे मातरम् गीत की 150वीं वर्षगांठ पर आयोजित विशेष चर्चा के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जोर देकर कहा कि अब समय आ गया है कि राष्ट्रगीत को उसका “समुचित सम्मान” लौटाया जाए। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् ने आज़ादी की लड़ाई में जो भूमिका निभाई, उसके मुकाबले स्वतंत्र भारत में इसे वह स्थान नहीं मिला, जिसका यह अधिकारी था।

राजनाथ सिंह ने कहा कि यह गीत केवल साहित्यिक कृति नहीं बल्कि राष्ट्रीय चेतना का एक शक्तिशाली स्वरूप है, जिसने सोई हुई जनता को जगाया और स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा को ऊर्जा दी। उनका कहना था कि वंदे मातरम् की गूंज इतनी प्रबल थी कि ब्रिटिश सरकार ने कई जगह इसके नारे पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन लोगों ने किसी भी दमन की परवाह किए बिना इसे अपने संघर्ष का प्रतीक बनाए रखा।

स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष की याद

रक्षा मंत्री ने सदन को याद दिलाया कि 1905 के बंगाल विभाजन आंदोलन में वंदे मातरम् जनआंदोलन का नारा बन चुका था। उन्होंने कहा कि इस गीत की प्रतिबद्धता के चलते छात्रों, युवाओं और क्रांतिकारियों को ब्रिटिश शासन का दमन झेलना पड़ा। उन्होंने ‘वंदे मातरम् रामचंद्र’ जैसे स्वतंत्रता सेनानियों का उल्लेख किया, जो इस नारे को बोलने पर दंडित हुए थे।

राजनाथ सिंह ने कहा कि भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सूर्य सेन और मदन लाल ढींगरा जैसे क्रांतिकारियों ने जीवन की अंतिम सांस तक वंदे मातरम् को आत्मसात किया। उन्होंने कहा कि यह गीत उन योद्धाओं का मंत्र था, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए सर्वोच्च बलिदान दिए।

कांग्रेस पर गंभीर आरोप

रक्षा मंत्री ने आरोप लगाया कि स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस ने ‘तुष्टीकरण की राजनीति’ के कारण वंदे मातरम् को उपेक्षित किया। उनके अनुसार, 1937 में कांग्रेस द्वारा गीत का केवल आंशिक स्वीकार इतिहास के साथ अन्याय था। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् और जन-गण-मन के बीच विरोध खड़ा करने का प्रयास गलत और विभाजनकारी मानसिकता को दर्शाता है।

उन्होंने कहा:
“जन-गण-मन और वंदे मातरम् मां भारती की दो आंखें हैं।”

राजनाथ सिंह के अनुसार दोनों ही गीत देश की आत्मा और गौरव के प्रतीक हैं, इनमें किसी भी तरह के मतभेद की धारणा कृत्रिम है।

आनंदमठ पर दिये गए आरोपों का प्रतिवाद

रक्षा मंत्री ने उन आरोपों को खारिज किया जिनमें कहा जाता है कि आनंदमठ और वंदे मातरम् की मूल रचना सांप्रदायिक भावनाओं से जुड़ी है। उन्होंने कहा कि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का लक्ष्य ब्रिटिश शासन और उसके अत्याचारों का विरोध करना था, न कि किसी धार्मिक समूह के खिलाफ लिखना। उन्होंने याद दिलाया कि मूल रचना के कई पदों में भारत की प्राकृतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विविधता का सुंदर वर्णन है, जिन्हें समय के साथ भुला दिया गया।

संविधान संशोधन और ‘तुष्टीकरण की राजनीति’ पर निशाना

राजनाथ सिंह ने प्रथम और 42वें संविधान संशोधन को मूल संविधान की भावना से विचलन बताया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने, शरणार्थियों के अधिकार बहाल करने और नक्सलवाद से निपटने जैसे निर्णायक कदम उठाए हैं, जिससे दशकों से जारी तुष्टीकरण की राजनीति का अंत हुआ।

उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता की उपेक्षा करने वाली राजनीति ने समाज को कमजोर किया और वंदे मातरम् को हाशिये पर धकेला। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मौजूदा सरकार इस गीत की प्रतिष्ठा पुनर्स्थापित करने के संकल्प के साथ ही इसकी 150वीं वर्षगांठ मना रही है।

महात्मा गांधी और अन्य नेताओं के विचार उद्धृत

रक्षा मंत्री ने अपने भाषण में महात्मा गांधी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि वंदे मातरम् न किसी धर्म के खिलाफ है और न ही यह किसी विशेष विचारधारा का प्रतीक। यह गीत भारत की राष्ट्रीय आत्मा और सांस्कृतिक चेतना का स्वर है।


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