विधेयकों पर निर्णय की समयसीमा तय न होने को लोकतांत्रिक प्रक्रिया के विरुद्ध बताया, राज्यपाल–सरकार विवाद की पृष्ठभूमि में उठी आवाज
चेन्नई। सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति के परामर्श पर दिए गए हालिया निर्णय ने केंद्र–राज्य संबंधों की बहस को एक बार फिर गर्म कर दिया है। इस फैसले पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने गुरुवार को कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और साफ कहा कि जब तक संविधान में आवश्यक संशोधन नहीं किया जाता, वे चुप नहीं बैठेंगे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकारों द्वारा पारित विधेयकों को अनिश्चित काल तक रोके रखना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ है और यह राज्यों के अधिकारों को कमजोर करने वाली प्रवृत्ति है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: अदालतें समयसीमा तय नहीं कर सकतीं
अप्रैल 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को पारित विधेयकों पर निश्चित समयसीमा के भीतर निर्णय लेना चाहिए। यह आदेश कई राज्यों में राज्यपालों द्वारा विधेयकों में देरी के मुद्दे को ध्यान में रखते हुए आया था।
बाद में राष्ट्रपति द्वारा राय मांगने पर सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने गुरुवार को स्पष्ट कहा कि
“अदालतें राष्ट्रपति या राज्यपाल को निर्णय लेने की कोई समयसीमा निर्धारित करने का निर्देश नहीं दे सकतीं। यह अधिकार उनके विवेक पर ही रहेगा।”
इस टिप्पणी ने पूरे विवाद को नया मोड़ दे दिया है और राज्यों में लंबे समय से चल रही असहमति को और गहरा कर दिया है।
स्टालिन की प्रतिक्रिया: लोकतांत्रिक ढांचे के विपरीत है विधेयकों को रोककर रखना
मुख्यमंत्री स्टालिन ने इस निर्णय पर नाराज़गी जताते हुए कहा कि जब चुनी हुई विधानसभाएं जनता के हित में विधेयक पारित करती हैं, तो राज्यपाल या राष्ट्रपति द्वारा उन्हें लंबे समय तक रोके रखना संविधान की भावना के खिलाफ है।
उन्होंने कहा
“राज्यों के अधिकारों की रक्षा होना आवश्यक है। राज्यपाल की भूमिका संविधान में स्पष्ट रूप से एक औपचारिक पद की है, लेकिन व्यवहार में इसे राजनीतिक साधन में बदला जा रहा है। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए घातक है।”
स्टालिन ने जोर देकर कहा कि जब तक संविधान में संशोधन कर इस स्थिति को स्पष्ट नहीं किया जाता, वे लगातार आवाज उठाते रहेंगे और राज्यों के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष जारी रखेंगे।
तमिलनाडु–राज्यपाल विवाद की पृष्ठभूमि में आया बयान
स्टालिन का यह बयान उस समय आया है जब तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल एन. रवि के बीच कई विधेयकों को लेकर तीखा विवाद चला हुआ है। राज्य सरकार का आरोप है कि राज्यपाल अनेक महत्वपूर्ण विधेयकों को महीनों तक रोके बैठे हैं, जिससे प्रशासनिक कार्य प्रभावित हो रहे हैं।
यह विवाद शिक्षा, प्रशासनिक सुधार और सामाजिक कल्याण योजनाओं से जुड़े विधेयकों पर केंद्रित रहा है। स्टालिन की सरकार का मानना है कि राज्यपाल की भूमिका सीमित और औपचारिक होनी चाहिए और उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाधा नहीं डालनी चाहिए।
अन्य राज्यों में भी समान विवाद, बहस हुई और गहरी
विशेषज्ञों का कहना है कि राज्यपाल–सरकार टकराव केवल तमिलनाडु तक सीमित नहीं है।
केरल, तेलंगाना, पंजाब और दिल्ली जैसे राज्यों में भी राज्यपालों और निर्वाचित सरकारों के बीच इसी तरह की तनातनी देखी गई है।
सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा परामर्श इस बहस को और जटिल बनाता है, क्योंकि अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्यपालों के निर्णय के लिए किसी कानूनी समयसीमा का निर्धारण न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। इससे भविष्य में विवाद और बढ़ सकते हैं।
संविधान संशोधन की मांग तेज होने की संभावना
स्टालिन के बयान के बाद विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले महीनों में कई राज्यों की सरकारें भी इस मुद्दे पर अपनी मांगों को मुखर कर सकती हैं।
विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को अवरुद्ध करने की घटनाएँ बढ़ने से केंद्र–राज्य संबंधों में तनाव बना हुआ है और इससे संघीय ढांचे पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है।
स्टालिन का रुख यह संकेत देता है कि अब इस बहस का विस्तार राष्ट्रीय स्तर पर होगा और संभव है कि भविष्य में इस विषय पर व्यापक राजनीतिक और संवैधानिक विमर्श सामने आए।
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