संस्कृति संरक्षण, परंपरा और विरासत संवर्धन का संदेश; समरसता भोज में प्रसाद ग्रहण, मोहन यादव भी यात्रा में शामिल
धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना को जागृत करने के उद्देश्य से वृंदावन की पावन धरा पर रविवार को ‘सनातन हिंदू एकता पदयात्रा’ का आयोजन किया गया। इस आयोजन की अगुवाई बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने की। पदयात्रा में विभिन्न प्रांतों से आए श्रद्धालु, संतजनों और सनातन प्रेमियों ने भाग लिया। इसी क्रम में आज मोहन यादव भी यात्रा में शामिल हुए और उन्हें श्रद्धालुओं ने धर्म, संस्कृति और समाज के प्रति प्रतिबद्ध व्यक्तित्व के रूप में स्वागत किया।
यह पदयात्रा दिल्ली से प्रारंभ होकर वृंदावन पहुँची, जहाँ रास्तेभर धार्मिक गीत, कीर्तन, जयघोष और आध्यात्मिक उत्साह का वातावरण बना रहा। लोगों ने इसे केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक–सांस्कृतिक जागरण का एक व्यापक अभियान माना।
यात्रा का उद्देश्य — सनातन मूल्यों, परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री द्वारा प्रेरित यह यात्रा सनातन मूल्य, परिवार व्यवस्था, मंदिर और गौ–संरक्षण, नैतिक जीवन, भारतीय सांस्कृतिक विचारधारा और धर्मपरायणता को समाज में पुनर्स्थापित एवं सुदृढ़ बनाने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि सनातन केवल पूजा पद्धति नहीं, बल्कि एक जीवन पद्धति, अनुशासन और सेवा–धर्म का मार्ग है। उन्होंने समाज से आग्रह किया कि सभी लोग अपनी जड़ों से जुड़े रहें और बच्चों व युवाओं को भारतीय संस्कृति का वास्तविक स्वरूप समझाने का कार्य प्राथमिक जिम्मेदारी के रूप में स्वीकार करें।
मोहन यादव की सहभागिता का महत्व
यात्रा में मोहन यादव की उपस्थिति को आयोजन समिति और श्रद्धालुओं ने खास महत्व दिया। यात्रा के दौरान उन्होंने सनातन संस्कृति की निरंतरता, सामाजिक एकता, परंपरा के सम्मान और आध्यात्मिक मूल्यों पर आधारित समाज निर्माण को वर्तमान समय की आवश्यकता बताया।
आज योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की पावन भूमि वृंदावन पहुंचकर 'बागेश्वर धाम' के पीठाधीश्वर, पूज्य पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी द्वारा आयोजित 'सनातन हिंदू एकता पदयात्रा' में सम्मिलित हुआ। इस अवसर पर समरसता भोज का प्रसाद भी ग्रहण किया।
— Dr Mohan Yadav (@DrMohanYadav51) November 16, 2025
दिल्ली से चलकर वृंदावन पहुंची यह यात्रा… pic.twitter.com/gcfhzmb09o
यात्रा उपरांत समरसता भोज
पदयात्रा के बाद समरसता भोज का आयोजन किया गया जिसमें सभी धर्मप्रेमियों ने प्रसाद ग्रहण किया। समरसता भोज की मूल भावना समाज में जाति, स्तर, भाषा, क्षेत्र या किसी भी प्रकार के भेदभाव को समाप्त कर समानता और मानव–धर्म को आत्मसात करना है। भोज के दौरान सभी प्रतिभागियों ने एकता, प्रेम और नैतिक बंधन को जीवन का आधार माना।
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संस्कृति से जुड़े संकल्प और समाज जागरण का संदेश
श्रद्धालुओं का मानना है कि समाज तभी मजबूत होगा जब संस्कृति, अध्यात्म, परिवार मूल्य और सामाजिक समरसता एक सूत्र में बंधी रहेंगी। पदयात्रा का संदेश स्पष्ट था कि भारतीय संस्कृति किसी व्यक्ति या समूह का प्रयास नहीं, बल्कि सभी का उत्तरदायित्व है।
आयोजन समिति ने सभी प्रतिभागियों, व्यवस्था में लगे सेवकों, संतजनों और स्थानीय समाज का आभार जताया और ऐसी यात्राओं को निरंतर जारी रखने की इच्छा व्यक्त की।
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