राज्यसभा में वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर चर्चा की शुरुआत

नई दिल्ली। राज्यसभा में मंगलवार को राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर आयोजित विशेष चर्चा की शुरुआत केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने की। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् की प्रासंगिकता उसके जन्मकाल से लेकर आज तक बनी हुई है और वर्ष 2047 में विकसित भारत के निर्माण के दौरान भी बनी रहेगी। शाह ने इसे मां भारती के प्रति भक्ति, कर्तव्य और समर्पण की भावना जगाने वाली एक अमर कृति बताया।


स्वतंत्रता संग्राम में वंदे मातरम् की भूमिका पर जोर

अमित शाह ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान देश के हर कोने में होने वाली बैठकों की शुरुआत वंदे मातरम् से ही होती थी। देशभक्तों के लिए यह गीत न केवल प्रेरणा का स्रोत था, बल्कि मातृभूमि के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर करने की भावना भी इसी उद्घोष से प्रज्वलित होती थी। उन्होंने कहा कि आज भी सीमा पर सर्वोच्च बलिदान देने वाले जवानों की जुबान पर अंतिम क्षणों में यही शब्द होता है — वंदे मातरम्।


‘कुछ लोग वंदे मातरम् को बंगाल चुनाव से जोड़ रहे’ — शाह

गृहमंत्री ने सदन में यह आरोप भी लगाया कि कुछ लोग इस ऐतिहासिक चर्चा को बंगाल चुनाव से जोड़कर इसकी गंभीरता कम करने की कोशिश कर रहे हैं। शाह ने कहा कि वंदे मातरम् का महत्व राजनीति से ऊपर है और इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाने वाले लोगों को अपनी समझ पर पुनर्विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् पर चर्चा की जरूरत इसकी रचना के समय भी थी, स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी थी, आज भी है और भविष्य में भी बनी रहेगी।


बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की रचना ने जगाई राष्ट्रीय चेतना

अमित शाह ने बताया कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने वंदे मातरम् के माध्यम से भारत को माता रूप में प्रतिष्ठित करते हुए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की मजबूत नींव रखी। यह गीत अत्याचार, दमन और प्रतिबंधों के बावजूद कश्मीर से कन्याकुमारी तक घर-घर में पहुँचा और लोगों के दिलों को छू गया। शाह के अनुसार, वंदे मातरम् सदियों तक चले विदेशी आक्रमणों और अंग्रेजों द्वारा थोपे गए सांस्कृतिक प्रभाव के प्रतिकार का प्रतीक भी रहा।

उन्होंने कहा कि इस गीत ने देशवासियों के भीतर अदम्य आत्मबल और मातृभूमि के प्रति गहन समर्पण की भावना को जन्म दिया, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन को नई ऊर्जा प्रदान की।


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