दावा-आपत्ति के लिए 22 जनवरी 2026 तक का समय, 21 फरवरी को आएगी अंतिम मतदाता सूची
नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर प्रक्रिया के बाद मध्यप्रदेश की मसौदा मतदाता सूची जारी कर दी है। इस ड्राफ्ट सूची में राज्य से कुल 42 लाख 74 हजार से अधिक मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं। आयोग के आंकड़ों के मुताबिक यह कटौती राज्य में मतदाता सूची को अधिक शुद्ध और अद्यतन बनाने के उद्देश्य से की गई है। हालांकि, इतनी बड़ी संख्या में नाम हटाए जाने के बाद प्रदेश की राजनीति और प्रशासनिक हलकों में हलचल भी तेज हो गई है।
मध्यप्रदेश निर्वाचन आयोग द्वारा जारी विवरण के अनुसार राज्य में कुल 5 करोड़ 74 लाख 6 हजार 143 पंजीकृत मतदाता थे। एसआईआर के दौरान 5 करोड़ 31 लाख 31 हजार 983 मतदाताओं ने अपने गणना प्रपत्र जमा किए। जिन मतदाताओं से तय समयसीमा में गणना प्रपत्र प्राप्त नहीं हो सके, उनके नाम ड्राफ्ट सूची से हटा दिए गए। आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह नियमों और निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार की गई है।
भोपाल में सबसे अधिक कटौती, चार लाख से ज्यादा नाम हटे
इस पुनरीक्षण प्रक्रिया का सबसे व्यापक असर राजधानी भोपाल में देखने को मिला है। यहां 4 लाख 38 हजार 875 मतदाताओं के नाम मसौदा सूची से विलोपित किए गए हैं। पुनरीक्षण से पहले भोपाल में कुल मतदाताओं की संख्या 21.25 लाख थी, जो अब घटकर 16.87 लाख रह गई है। राजधानी में इतनी बड़ी संख्या में नाम हटने के बाद राजनीतिक दलों और नागरिक संगठनों की निगाहें इस प्रक्रिया पर टिकी हुई हैं।
नाम हटने के कारणों पर आयोग की सफाई
निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया है कि जिन मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट सूची से हटाए गए हैं, उनके पीछे ठोस और दर्ज कारण हैं। आयोग के अनुसार सबसे बड़ी संख्या उन मतदाताओं की है जो अपने पते से स्थानांतरित हो चुके थे या गणना के समय उपलब्ध नहीं पाए गए। ऐसे मतदाताओं की संख्या 31.51 लाख बताई गई है। इसके अलावा 8.46 लाख मतदाताओं के नाम मृत्यु के कारण सूची से हटाए गए हैं। वहीं 2.77 लाख ऐसे मतदाता पाए गए जिनके नाम एक से अधिक स्थानों पर दर्ज थे। आयोग का कहना है कि ऐसे मामलों में नियमों के अनुसार केवल एक ही स्थान पर नाम बनाए रखा जाएगा।
आयोग ने यह भी बताया कि कुछ मामलों में गणना प्रपत्र इसलिए नहीं मिल पाए क्योंकि संबंधित व्यक्ति का अन्य राज्य में पंजीकरण हो चुका था, व्यक्ति अस्तित्व में नहीं पाया गया, समयसीमा तक प्रपत्र जमा नहीं किया गया या फिर मतदाता ने स्वयं पंजीकरण में रुचि नहीं ली।
ड्राफ्ट सूची है, अभी अंतिम फैसला नहीं
चुनाव आयोग ने जोर देकर कहा है कि जारी की गई मतदाता सूची केवल मसौदा यानी ड्राफ्ट है। अंतिम सूची जारी करने से पहले नागरिकों को पूरा अवसर दिया जाएगा। जो मतदाता मानते हैं कि उनका नाम गलत तरीके से हटाया गया है, वे 22 जनवरी 2026 तक दावा या आपत्ति दर्ज करा सकते हैं। इस अवधि में प्राप्त सभी दावों और आपत्तियों का सत्यापन और निराकरण किया जाएगा। इसके बाद 21 फरवरी 2026 को मध्यप्रदेश की अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी।
अन्य राज्यों में भी बड़े पैमाने पर नाम कटे
एसआईआर प्रक्रिया का असर केवल मध्यप्रदेश तक सीमित नहीं है। चुनाव आयोग द्वारा पिछले सप्ताह जारी ड्राफ्ट सूचियों में तमिलनाडु और गुजरात में भी बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं। दोनों राज्यों को मिलाकर 1.50 करोड़ से अधिक मतदाताओं के नाम ड्राफ्ट सूची से बाहर किए गए हैं। तमिलनाडु में जहां 97.37 लाख नाम हटाए गए, वहीं गुजरात में 73.73 लाख मतदाताओं के नाम सूची से कटे हैं।
गुजरात में कुल 5.08 करोड़ मतदाताओं में से 4.34 करोड़ को वैध माना गया है। वहीं तमिलनाडु में 6.41 करोड़ मतदाताओं में से 5.43 करोड़ मतदाता वैध पाए गए। तमिलनाडु के कई जिलों में इस प्रक्रिया का गहरा असर दिखा है। कोयंबटूर जिले में करीब 6.50 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए, जबकि डिंडीगुल जिले में 2.34 लाख नाम कटने से कुल मतदाता संख्या 19.35 लाख से घटकर 16.09 लाख रह गई।
चेन्नई में सबसे ज्यादा असर
तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में इस ड्राफ्ट सूची का सबसे बड़ा प्रभाव देखने को मिला है। यहां 14.25 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए, जिससे मतदाता संख्या 40.04 लाख से घटकर 25.79 लाख रह गई। इसके अलावा करूर जिले में करीब 79,690 और कांचीपुरम जिले में 2.74 लाख मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए हैं।
दो बार बढ़ाई गई थी समयसीमा
गौरतलब है कि निर्वाचन आयोग ने इससे पहले मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण की समयसीमा दो बार बढ़ाई थी। 30 नवंबर को आयोग ने 12 राज्यों में चल रहे पुनरीक्षण की डेडलाइन बढ़ाने का फैसला लिया था। पहले यह प्रक्रिया 11 दिसंबर तक चलनी थी, लेकिन बाद में इसे आगे बढ़ाया गया ताकि अधिक से अधिक मतदाता अपने विवरण अपडेट करा सकें।
कुल मिलाकर, एसआईआर के बाद सामने आई यह तस्वीर बताती है कि मतदाता सूची को शुद्ध करने की प्रक्रिया व्यापक और सख्त रही है। हालांकि अंतिम सूची आने से पहले दावा-आपत्ति की प्रक्रिया यह तय करेगी कि कितने नाम दोबारा जोड़े जाएंगे और कितने स्थायी रूप से हटेंगे।
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