तिरुपति में भारतीय विज्ञान सम्मेलन को संबोधित करते हुए दिया विचार
तिरुपति। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि भारत का आगे बढ़ना तय है, लेकिन देश को केवल एक सुपर पावर बनने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उसे विश्वगुरु की भूमिका निभाने के लिए भी तैयार होना होगा। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि धर्म और विज्ञान के बीच कोई टकराव नहीं है। दोनों के मार्ग अलग हो सकते हैं, लेकिन उनकी मंजिल एक ही है।
सरसंघचालक शुक्रवार को आंध्र प्रदेश के तिरुपति में आयोजित भारतीय विज्ञान सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत की विकास यात्रा की जड़ें उसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सोच में हैं, जिसे विज्ञान के साथ संतुलन बनाकर आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
VIDEO | Tirupati: RSS Chief Mohan Bhagwat, addressing the Bharatiya Vigyan Sammelan, says, “Our vision of development is Dharma. Dharma is not just religion; it is the way the universe works. The belief that Dharma and science have no place in each other is wrong. There is no… pic.twitter.com/KsQ2Zd9XrD
— Press Trust of India (@PTI_News) December 26, 2025
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धर्म कोई मजहब नहीं, बल्कि सृष्टि का नियम
डॉ. भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि धर्म को केवल मजहब के दायरे में सीमित करना एक बड़ी भूल है। धर्म वास्तव में प्रकृति, समाज और ब्रह्मांड के संचालन के नियमों का समुच्चय है। उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति इन नियमों को माने या न माने, लेकिन इनके बाहर जाकर कोई भी कार्य संभव नहीं है। यही कारण है कि धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं।
उन्होंने कहा कि विज्ञान सत्य की खोज का एक माध्यम है, जबकि धर्म उस सत्य को जीवन में उतारने का मार्ग दिखाता है। दोनों का उद्देश्य मानव कल्याण और समाज का संतुलित विकास है।
विज्ञान और अध्यात्म का लक्ष्य समान
सरसंघचालक ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से विज्ञान ने स्वयं को धर्म से अलग रखने की कोशिश की, क्योंकि यह मान लिया गया कि वैज्ञानिक अनुसंधान में धर्म का कोई स्थान नहीं है। लेकिन यह धारणा पूरी तरह सही नहीं है। विज्ञान और अध्यात्म के बीच अंतर केवल पद्धति का है, लक्ष्य दोनों का एक ही है। उन्होंने कहा कि यदि भारत को वैश्विक नेतृत्व की भूमिका निभानी है, तो उसे अपनी परंपराओं और वैज्ञानिक सोच के बीच सेतु बनाना होगा।
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स्वामी विवेकानंद का दिया उदाहरण
डॉ. भागवत ने स्वामी विवेकानंद का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने यह सिखाया था कि यदि व्यक्ति सही मार्ग पर चलता है, तो कुछ भी असंभव नहीं है। रास्ता सही हो, उद्देश्य स्पष्ट हो और आत्मविश्वास मजबूत हो, तो मंजिल तक पहुंचना तय है। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे अपने कर्तव्यों को स्वयं पहचानें और राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाएं।
ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भारत की छलांग
सम्मेलन में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने भी देश की वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत पिछले एक दशक से स्टार्टअप इकोसिस्टम में लगातार मजबूती से आगे बढ़ रहा है। स्पेस इकोनॉमी के क्षेत्र में भारत आज दुनिया में आठवें स्थान पर पहुंच चुका है।
उन्होंने बताया कि भारत ने ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में 81वें स्थान से छलांग लगाकर 38वां स्थान हासिल किया है, जो देश की नवाचार क्षमता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी और दूरसंचार क्षेत्रों में निवेश को आसान बनाया गया है, जिससे निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ी है।
विज्ञान, रक्षा और स्वास्थ्य में भारत की उपलब्धियां
जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत ने चंद्रमा पर सफल प्रयोग कर दुनिया को अपनी वैज्ञानिक क्षमता का लोहा मनवाया है। उन्होंने यह भी बताया कि ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली की वैश्विक स्तर पर भारी मांग है। इसके अलावा भारत वह देश है, जिसने दुनिया में सबसे अधिक कोविड वैक्सीन का निर्यात किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान कार्यकाल में विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र के बजट में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और स्पेस सेक्टर में निजी निवेश को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। आवश्यक खनिजों के क्षेत्र में भी निजी कंपनियों को अवसर दिए जा रहे हैं।
तिरुपति में भगवान वेंकटेश्वर स्वामी के दर्शन
भारतीय विज्ञान सम्मेलन से पहले सरसंघचालक डॉ. भागवत ने तिरुपति में भगवान वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में दर्शन किए। इस अवसर पर तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम के अधिकारियों और मंदिर के पुजारियों ने उनका पारंपरिक स्वागत किया। रंगनायका मंडपम् में उन्हें रेशमी वस्त्र भेंट कर सम्मानित किया गया और भगवान का प्रसाद प्रदान किया गया।
डॉ. भागवत गुरुवार शाम को ही तिरुमाला पहुंच गए थे, जहां उन्होंने परंपरा के अनुसार सबसे पहले वराह स्वामी मंदिर के दर्शन किए। इसके बाद वे वेंगमम्बा अन्नप्रसाद भवन पहुंचे और अन्नप्रसाद ग्रहण किया। मंदिर प्रबंधन के अध्यक्ष बीआर नायडू और कार्यकारी अधिकारी वेंकैया चौधरी ने उनका स्वागत किया।
भारत के भविष्य का मार्ग
सरसंघचालक के इस संबोधन को धर्म और विज्ञान के समन्वय की दिशा में एक महत्वपूर्ण विचार के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत की पहचान उसकी सांस्कृतिक जड़ों और वैज्ञानिक प्रगति के संतुलन से ही बनेगी। यही संतुलन भारत को विश्वगुरु की भूमिका तक ले जाने में सक्षम होगा।
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