पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ बोले—“यह पुस्तक सोए हुए को जगा देगी, यह भारत के भविष्य का मार्गदर्शक ग्रंथ है”

भोपाल।
सुरुचि प्रकाशन द्वारा रवीन्द्र भवन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक डॉ. मनमोहन वैद्य की नई पुस्तक ‘हम और यह विश्व’ का भव्य विमोचन किया गया। कार्यक्रम में भारत की मूल अवधारणा, सांस्कृतिक चेतना, आत्मगौरव, अध्ययनशील परंपरा और वैश्विक विमर्शों पर गहराई से चर्चा हुई। इस अवसर पर पूर्व उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़, श्री ऋतेश्वर जी महाराज, जागरण समूह के समूह संपादक विष्णु त्रिपाठी, सुरुचि प्रकाशन के अध्यक्ष राजीव तुली और पुस्तक के लेखक डॉ. मनमोहन वैद्य उपस्थित रहे।

डॉ. वैद्य का उद्बोधन “भारत को मानना, जानना और फिर बनाना ही हमारा मार्ग”

पुस्तक के लेखक डॉ. मनमोहन वैद्य ने अपने संबोधन में भारतीयता, अध्ययन, विमर्श और राष्ट्रभाव के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा:
“भारत को बनाने से पहले जरूरी है कि हम भारत को माने, फिर भारत को जाने, उसके बाद भारत के बने और अंत में भारत को बनाएं।”

डॉ. वैद्य ने अपने लेखन की प्रेरणा का उल्लेख करते हुए कहा कि संघ के तृतीय वर्ष प्रशिक्षण वर्ग में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के संबोधन को लेकर हुई अनुचित आलोचना ने उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि मात्र छह दिनों (1– 6 जून 2018) में 378 लोग उनसे मिलने आए—यह दर्शाता है कि समाज में संघ और भारत-विमर्श को लेकर कितनी गहरी उत्सुकता है।

उन्होंने बताया कि कई बार संघ का विरोध उसकी स्वीकार्यता को और बढ़ा देता है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि एक ही महीने (अक्टूबर 2018) में जॉइन आरएसएस प्लेटफॉर्म पर 48,890 लोगों ने स्वयंसेवक बनने का आवेदन किया।
यह सामाजिक परिवर्तन के नए अध्याय का संकेत है।

भारतीय संस्कृति पर बोलते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि
“भारत में विविधता नहीं, बल्कि एक ही संस्कृति के अनेक सुंदर रूप हैं। विविधता मूल संस्कृति की शाखा है, उसका विकल्प नहीं।”

वेलफेयर स्टेट की अवधारणा को पश्चिमी बताते हुए उन्होंने कहा कि भारत की वास्तविक व्यवस्था समाज-आधारित दायित्व और परस्पर सहयोग पर टिकी रही है। उन्होंने बताया कि पुस्तक के चारों खंड भारत के बड़े विमर्शों को नई दृष्टि से प्रस्तुत करते हैं।

विष्णु त्रिपाठी का विचार:

 “भारत की पहचान अध्ययन और मनन से समझें”

जागरण समूह के समूह संपादक श्री विष्णु त्रिपाठी ने कहा कि यह पुस्तक केवल संग्रह के लिए नहीं, बल्कि अध्ययन, मनन और भाष्य के लिए लिखी गई है।
उन्होंने कहा
“भारत किसी एक पुस्तक या मत पर आधारित नहीं है। यहाँ ज्ञान की अनगिनत धाराएँ हैं। हमारी आध्यात्मिकता भी चिंतन से ही जन्म लेती है।”

उन्होंने कहा कि भारत हिंदू राष्ट्र है या नहीं ,ऐसी बहसें अध्ययन के अभाव में पैदा होती हैं। जब भारतीयता की समझ और गौरव का भाव स्थापित हो जाता है, तब ऐसे प्रश्न अप्रासंगिक हो जाते हैं।
गुरुनानक देव जी का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि गुरुनानक रामनाम के उपासक थे और उन्होंने बाबर के अत्याचारों की आलोचना सीधे अपने भजनों में की।

पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ :“यह पुस्तक भारत के गौरव और शक्ति का प्रतिबिंब है”

पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पुस्तक की प्रशंसा करते हुए कहा
“‘हम और यह विश्व’ केवल पुस्तक नहीं, बल्कि भारत के गौरवशाली अतीत और उज्ज्वल भविष्य की दिशा दिखाने वाला ग्रंथ है।”

उन्होंने कहा कि यह पुस्तक आठ वर्षों के गहरे अनुभवों का संग्रह है और इसमें प्रणब मुखर्जी पर लिखे दो महत्वपूर्ण लेख इसे विशेष बनाते हैं।
धनखड़ ने अपने वक्तव्य में अंग्रेजी का प्रयोग यह कहते हुए किया कि
“मैं इसलिए अंग्रेजी में बोल रहा हूँ ताकि जो लोग भारत को उसके वास्तविक स्वरूप में नहीं समझते, वे भी स्पष्ट रूप से भारत की सकारात्मक छवि को समझ सकें।”

उन्होंने कहा कि आज का भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है और विश्व मंच पर एक आत्मविश्वासी राष्ट्र के रूप में उभर रहा है।

सुरुचि प्रकाशन की भूमिका—विस्तृत बौद्धिक विमर्श का नया दौर

कार्यक्रम के आरंभ में श्री राजीव तुली ने सुरुचि प्रकाशन की परंपरा और भविष्य की योजनाओं का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि प्रकाशन संस्थान आने वाले समय में वॉकिज़्म, पंच परिवर्तन और अन्य बौद्धिक विषयों पर महत्वपूर्ण पुस्तकें लेकर आएगा।
उन्होंने बताया कि ‘हम और यह विश्व’ का वर्तमान संस्करण पहले से अधिक विस्तृत और शोधपरक सामग्री से भरपूर है।

कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. साधना बलवटे ने किया और अंत में अंकुर पाठक ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का समापन वंदे मातरम् के साथ हुआ।

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