मणिपुर में जनजातीय प्रतिनिधियों से संवाद, सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक चेतना पर जोर

इम्फाल, 21 नवम्बर (हि.स.)।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने मणिपुर प्रवास के दूसरे दिन शुक्रवार को जनजातीय समुदायों के साथ विस्तृत संवाद किया। यह संवाद केवल एक औपचारिक बैठक नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रीय समरसता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ। उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि भारत की शक्ति उसकी विविधता में निहित है और इस विविधता को एक सूत्र में बांधने वाली चेतना ही राष्ट्र की मूल आत्मा है।

डॉ. भागवत ने कहा कि भारत हजारों वर्षों से एक जीवंत सभ्यता के रूप में विद्यमान है। यहां भाषा, संस्कृति और परंपराओं में विविधता है, लेकिन इस विविधता के पीछे छिपी साझा चेतना भारत को एक राष्ट्र के रूप में जोड़ती है। उन्होंने कहा कि “एकता के लिए एकरूपता आवश्यक नहीं। विविधता हमारी सुंदरता है और साझा चेतना हमारा बल।” उन्होंने इसे वैज्ञानिक आधार से भी जोड़ा और कहा कि अध्ययन बताते हैं कि भारत के लोगों का सांस्कृतिक और आनुवंशिक डीएनए 40 हजार वर्षों से एक जैसा है।

mohan bhagwat imphal
mohan bhagwat imphal Photograph: (HS)

उन्होंने स्पष्ट किया कि भ्रातृत्व ही भारत का मूल धर्म है। डॉ. भीमराव अंबेडकर को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि संविधान में निहित स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व भगवान बुद्ध की शिक्षाओं से प्रेरित हैं। यही कारण है कि भारत की सामाजिक व्यवस्था हमेशा भाईचारे और परस्पर सम्मान पर आधारित रही है। उन्होंने कहा कि दुनिया के कई देश इसलिए विफल हुए, क्योंकि उन्होंने भाईचारा नहीं अपनाया, जबकि भारत इस मूल भावना को हजारों वर्षों से जीता आया है।

अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि संघ एक सामाजिक संगठन है, जिसका उद्देश्य मनुष्यों का निर्माण और समाज को जोड़ना है। संघ किसी संगठन को निर्देशित नहीं करता और न ही राजनीति करता है। उन्होंने कहा, “अगर किसी को संघ की सच्चाई जाननी है, तो शाखा में आएं। संगठन मित्रता, स्नेह, सेवा और सद्भाव के साथ समाज को मजबूत बनाने का काम करता है।”

जनजातीय नेताओं द्वारा उठाए गए मुद्दों पर सरसंघचालक ने भरोसा दिलाया कि मणिपुर और उत्तर-पूर्व के प्रश्न केवल क्षेत्रीय नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक नीतियों ने कृत्रिम विभाजन पैदा किए, जिन्हें संवाद और संवैधानिक ढांचे के भीतर ही दूर किया जाना चाहिए। उन्होंने संघ के पंच परिवर्तन— सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वबोध और नागरिक कर्तव्य— का उल्लेख करते हुए कहा कि समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए इन मूल्यों को अपनाना आवश्यक है।

डॉ. भागवत ने जनजातीय समुदायों से आग्रह किया कि वे अपनी परंपराओं, भाषाओं और स्वदेशी जीवन शैली को गर्व के साथ अपनाएं। उन्होंने कहा कि आज दुनिया भारत की ओर मार्गदर्शन के लिए देख रही है और हमें एक सशक्त भारत का निर्माण करना है। उन्होंने युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि सांस्कृतिक आत्मविश्वास के साथ नेतृत्व करने का समय आ गया है। परिवार, समाज और मूल्यों को प्राथमिकता दें तथा पश्चिमी भौतिकतावाद और अतिरंजित व्यक्तिवाद से सावधान रहें। उन्होंने कहा, “जब भारत उठेगा, तब ही विश्व उठेगा।”

कार्यक्रम के बाद भास्कर प्रभा परिसर में पारंपरिक मणिपुरी भोजन का आयोजन किया गया, जहां 200 से अधिक जनजातीय प्रतिनिधि शामिल हुए। सामूहिक भोज ने सामाजिक समरसता और “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की भावना को और मजबूत किया।
यह आयोजन न केवल संवाद का माध्यम रहा, बल्कि यह संदेश भी दिया कि भारत की आत्मा विविधता में एकता और भाईचारे में बसती है।

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