27 नवंबर तक फ्रांस के आकाश में जारी रहेगा संयुक्त प्रशिक्षण, कृत्रिम युद्ध वातावरण में क्षमता, रणनीति और संचालन दक्षता की होगी परीक्षा

नई दिल्ली, 17 नवंबर। भारत और फ्रांस के बीच रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के उद्देश्य से शुरू किया गया द्विपक्षीय हवाई अभ्यास ‘गरुड़’ एक बार फिर दोनों देशों की सामरिक साझेदारी का मजबूत उदाहरण बनकर उभर रहा है। इस अभ्यास में भारतीय वायु सेना के अत्याधुनिक सुखोई-30 एमकेआई और फ्रांस की वायु एवं अंतरिक्ष सेना के राफेल लड़ाकू विमान संयुक्त मिशनों में उड़ान भर रहे हैं। अभ्यास का लक्ष्य केवल रणनीतिक कौशल, सामरिक कार्रवाई और अंतर-संचालन क्षमता बढ़ाना ही नहीं, बल्कि दोनों सेनाओं के बीच गहरी समझ और सशक्त साझेदारी को विस्तार देना है।

यह युद्धाभ्यास फ्रांस में 27 नवंबर तक चलेगा और इसे दोनों सेनाओं के बीच उन्नत सैन्य प्रशिक्षण, संयुक्त युद्ध रणनीतियों और संचालन समन्वय की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। भारतीय वायु सेना का दल 13 नवंबर को फ्रांस के मोंट-डी-मार्सन एयर बेस पहुँचा, जहाँ से प्रशिक्षण गतिविधियों का क्रम शुरू किया गया। इस दौरान फाइटर विमान कृत्रिम युद्ध की परिस्थितियों से गुजरेंगे, जिसमें हवा से हवा, हवा से जमीन हमले, मिशन प्लानिंग, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, टारगेट इन्गेजमेंट और मिशन डिब्रीफिंग जैसे पहलुओं पर अभ्यास किया जाएगा।

हवाई शक्ति, आपसी समझ और रणनीतिक तालमेल का बड़ा मंच

‘गरुड़’ अभ्यास में दोनों देशों के पायलट वास्तविक युद्ध जैसा माहौल तैयार करके मिशन संचालित कर रहे हैं, ताकि किसी भी संभावित खतरे की स्थिति में संयुक्त कार्रवाई के दौरान तालमेल, निर्णयों की गति और मिशन नियंत्रण को प्रभावी बनाया जा सके। इस प्रशिक्षण से न केवल पायलटों को लाभ मिलेगा, बल्कि ग्राउंड क्रू, तकनीकी दल और रणनीतिक संचालनकर्ता टीमों की विशेषज्ञता भी बढ़ेगी।

फ्रांस इस अभ्यास में चार राफेल लड़ाकू विमान, एक ए-330 मल्टी रोल टैंकर ट्रांसपोर्ट विमान और 220 सैन्य कर्मियों के साथ भाग ले रहा है। यह विस्तृत भागीदारी दोनों देशों की मजबूत सैन्य प्रतिबद्धता का संकेत है। भारतीय दल द्वारा सुखोई-30 एमकेआई की भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि भारत अपने प्रमुख प्लेटफॉर्म्स को अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण में शामिल कर तकनीकी और सामरिक मानकों को बेहतर बना रहा है।

‘गरुड़’ अभ्यास का इतिहास और रणनीतिक महत्व

यह हवाई अभ्यास अब तक आठ बार आयोजित किया जा चुका है और इसे सर्वश्रेष्ठ द्विपक्षीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों में गिना जाता है। इसका पहला, तीसरा और पाँचवाँ संस्करण भारत के ग्वालियर, कलाईकुंडा और जोधपुर वायु सेना स्टेशनों पर आयोजित हुआ था, जबकि दूसरा, चौथा और छठा संस्करण फ्रांस में हुआ था। पिछली बार यह युद्धाभ्यास राजस्थान की पश्चिमी सीमा के पास जोधपुर में आयोजित किया गया था, जिसमें दोनों देशों के वायु सेना प्रमुखों ने लड़ाकू विमानों में उड़ान भरकर इसमें भाग लिया था। यह घटना सैन्य इतिहास में एक उल्लेखनीय उदाहरण बनी।भारत-फ्रांस एयर ड्रिल गरुड़-2025 मॉन्ट-डी-मार्सन में शुरू हुआ - GK Now

रणनीतिक आयाम और सैन्य दृष्टिकोण

यह अभ्यास केवल प्रशिक्षण ही नहीं, बल्कि भविष्य के बहुपक्षीय सैन्य अभियानों के लिए एक मजबूत आधारशिला माना जाता है। इससे निम्न लाभ प्राप्त होंगे:

हवाई सैन्य संचालन में समन्वय और त्वरित निर्णय क्षमता

सुरक्षा साझेदारी का उन्नत रूप

उच्च स्तरीय तकनीकी समझ और रणनीतिक तालमेल

संभावित संकट परिदृश्यों के लिए संयुक्त कार्रवाई का अभ्यास

उन्नत टैक्टिक्स और युद्ध प्रबंधन का अनुभव

भारत के लिए यह अभ्यास उस समय और भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है जब देश अपनी सामरिक सीमाओं की सुरक्षा, आधुनिक हवाई शक्ति और बहुद्देशीय सैन्य क्षमताओं पर तेजी से काम कर रहा है।

यह अभ्यास न केवल दोनों मित्र देशों के बीच रक्षा सहयोग का मजबूत प्रतीक है, बल्कि आकाशीय सुरक्षा, भविष्य के युद्ध तंत्र, तकनीकी उन्नति और वैश्विक सामरिक साझेदारी की दिशा में एक बड़ा कदम भी है।

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