एमपी में सरपंचों की मांग: बाहरी लोगों की शिकायतें बंद हों...

मध्यप्रदेश में पंचायतों से जुड़ा एक नया विवाद शुरू हो गया है। प्रदेश के कई सरपंचों ने सरकार से यह मांग की है कि बाहरी लोगों यानी पंचायत क्षेत्र के बाहर के व्यक्ति सीएम हेल्पलाइन या आरटीआई के माध्यम से पंचायत के खिलाफ शिकायत न कर सकें। सरपंच कह रहे हैं कि बाहर के लोग गांव की असली स्थिति जाने बिना आरोप लगा देते हैं और इससे पूरे कामकाज पर असर पड़ता है।

विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पंचायत से जुड़ी 50 हजार से ज्यादा शिकायतें ऐसे लोगों ने की हैं जो उस गांव या पंचायत के निवासी नहीं हैं। सरपंचों का कहना है कि इनमें से काफी शिकायतें फर्जी, प्रेरित या किसी राजनीतिक मकसद से की गई होती हैं। कई शिकायतें सिर्फ पंचायत प्रतिनिधियों पर दबाव बनाने या उन्हें बदनाम करने के लिए कर दी जाती हैं।

सरपंचों का कहना है कि बाहरी व्यक्ति गांव की असली समस्याओं, विकास कार्यों और स्थानीय स्थिति को समझता ही नहीं। वह दूर बैठकर आरोप लगा देता है। इससे प्रशासन को जांच करनी पड़ती है, फाइलें खुलती हैं, कई बार अधिकारियों को दौरे पर जाना पड़ता है और इसका सीधा असर पंचायत के काम पर पड़ता है। उनका कहना है कि इससे समय और सरकारी संसाधन दोनों बर्बाद होते हैं।

मांग सिर्फ शिकायतों तक सीमित नहीं रही। सरपंचों ने तो एक कदम आगे बढ़कर कहा है कि आरटीआई (सूचना का अधिकार) को भी सीमित कर दिया जाए। उनका कहना है कि पंचायत क्षेत्र का नागरिक ही पंचायत से जुड़ी जानकारी मांगे। यानी बाहर के लोग आरटीआई न लगा सकें।

लेकिन यह मांग पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह मांग आरटीआई की मूल भावना के खिलाफ है, क्योंकि सूचना का अधिकार किसी भी भारतीय नागरिक को सरकारी कामकाज पूछने की आज़ादी देता है। यदि जानकारी मांगने को सिर्फ पंचायत क्षेत्र तक सीमित कर दिया गया तो पारदर्शिता और जवाबदेही दोनों कम हो जाएंगी।

फिर भी सरपंच अपने तर्क पर कायम हैं। उनका कहना है कि “बाहरी लोग झूठी शिकायतें ज्यादा करते हैं। हम दिनभर काम करते हैं और बाद में हमें फर्जी मामलों में उलझाया जाता है। इससे न काम हो पाता है, न विकास।”

कुछ पंचायत प्रतिनिधियों का आरोप है कि कई एनजीओ और बाहरी एक्टिविस्ट पंचायतों पर अनावश्यक नजर रखते हैं और हर छोटे-बड़े काम पर शिकायत कर देते हैं। इससे काम करने का माहौल खराब होता है।

वहीं दूसरी ओर, कई सामाजिक कार्यकर्ता कह रहे हैं कि अगर शिकायतों पर रोक लगाई गई तो गांव में गलत काम करने वालों की जांच नहीं हो पाएगी। कई बार गांव के लोग डर के कारण शिकायत नहीं कर पाते, ऐसे में बाहरी लोग ही भ्रष्टाचार को उजागर करते हैं।

अब मामला सरकार के पास है। सरकार यह देख रही है कि इस मांग को मानना संभव है या नहीं, क्योंकि यह मांग प्रशासनिक पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों दोनों से जुड़ी हुई है।

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