औपनिवेशिक पहचान से मुक्ति और लोकतांत्रिक भावना को सम्मान देने की पहल
भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित राजभवन को नया नाम मिल गया है। अब राज्यपाल का आधिकारिक निवास ‘लोक भवन’ के नाम से जाना जाएगा। शनिवार को मुख्यमंत्री मोहन यादव द्वारा राज्यपाल मंगुभाई पटेल से मुलाकात के बाद राजभवन के मुख्य द्वार से पुरानी पट्टिका हटाकर नई पट्टिका स्थापित कर दी गई। इसी के साथ प्रदेश में ‘राजभवन’ के स्थान पर ‘लोक भवन’ नाम आधिकारिक रूप से लागू हो गया।
यह परिवर्तन केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लिए गए व्यापक निर्णय के अनुरूप है, जिसके तहत देशभर के राजभवनों का नाम बदलकर ‘लोक भवन’ करने का सुझाव दिया गया था। इस निर्णय के पीछे उद्देश्य यह था कि ‘राजभवन’ शब्द औपनिवेशिक मानसिकता और सामंती परंपरा का प्रतीक माना जाता है, जबकि ‘लोक भवन’ लोकतांत्रिक मूल्यों और जनता-केन्द्रित शासन की भावना से मेल खाता है।
मुख्यमंत्री–राज्यपाल मुलाकात के बाद पूरी हुई नाम बदलने की प्रक्रिया
शनिवार दोपहर मुख्यमंत्री मोहन यादव लोक भवन पहुँचे और राज्यपाल मंगुभाई पटेल से औपचारिक मुलाकात की। मुख्यमंत्री ने राज्यपाल को पुष्प-गुच्छ भेंटकर सम्मान प्रकट किया। इस दौरान राज्य के विकास, जनकल्याण और प्रशासनिक मुद्दों पर विस्तृत चर्चा हुई।
मुलाकात के बाद राज्यपाल की उपस्थिति में पट्टिका परिवर्तन की प्रक्रिया आरम्भ की गई। पुरानी पट्टिका से ‘राज’ शब्द हटाया गया और उसके स्थान पर ‘लोक’ शब्द स्थापित करते हुए भवन को नया नाम दे दिया गया। अधिकारियों और कर्मचारियों ने इस बदलाव को तत्काल प्रभाव से लागू किया। अब राज्यपाल निवास को सभी सरकारी अभिलेखों, अभिसूचनाओं और पत्राचार में ‘लोक भवन’ नाम से ही अंकित किया जाएगा।
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राज्यों में बदलाव की श्रृंखला: अब मध्यप्रदेश भी जुड़ा सूची में
केंद्र सरकार के निर्देश के बाद देशभर में राजभवनों के नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम, उत्तराखंड, ओडिशा, गुजरात और त्रिपुरा पहले ही अपने राजभवनों का नाम बदलकर ‘लोक भवन’ कर चुके हैं। लद्दाख में उपराज्यपाल के निवास को ‘लोक निवास’ का नाम दिया गया है।
मध्यप्रदेश में भी यह परिवर्तन अपेक्षित था और दो दिन पूर्व केंद्र सरकार की अधिसूचना के बाद इसे लेकर चर्चाएँ तेज हो गई थीं। शनिवार को मुख्यमंत्री और राज्यपाल की मुलाकात के साथ ही यह बदलाव औपचारिक रूप से लागू हो गया।
क्यों बदला जा रहा है ‘राजभवन’ का नाम?
पिछले वर्ष राज्यपालों के सम्मेलन में यह सुझाव सामने आया था कि ‘राजभवन’ नाम भारत की लोकतांत्रिक संरचना के अनुरूप नहीं है। यह शब्द साम्राज्यवादी शासन की उस मानसिकता की याद दिलाता है, जिसमें ‘राजा’ और ‘प्रजा’ का भेद प्रमुख था। स्वतंत्र भारत में जनसत्ता और लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना के लिए यह उचित है कि संवैधानिक संस्थान जनता-केंद्रित पहचान प्राप्त करें।
राजभवन को ‘लोक भवन’ नाम देने के पीछे यही विचार प्रमुख है—
लोकतांत्रिक मूल्यों को सम्मान देना
औपनिवेशिक शब्दावली से मुक्ति
संविधान के ‘हम भारत के लोग’ के मूल सिद्धांत को सशक्त करना
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बदलाव प्रतीकात्मक होने के साथ-साथ वैचारिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।
लोक भवन के रूप में नई पहचान: जनता के नाम पर संचालित संस्थान
मध्यप्रदेश में लागू हुए इस नाम परिवर्तन के बाद अब राज्यपाल निवास न केवल एक प्रशासनिक संस्था है, बल्कि जनता की भावना के अनुरूप अपनी पहचान स्थापित करता है। अधिकारियों के अनुसार, भवन के भीतर प्रयुक्त सभी आधिकारिक साइनेज, दस्तावेज़ और होर्डिंग भी क्रमशः नए नाम के अनुरूप परिवर्तित किए जाएंगे।
यह परिवर्तन केवल नाम का नहीं, बल्कि दृष्टिकोण का भी परिवर्तन माना जा रहा है। ‘लोक भवन’ शब्द यह इंगित करता है कि संवैधानिक पद और भवन जनता से ऊपर नहीं, बल्कि जनता के प्रतिनिधि रूप में संचालित होते हैं।
प्रदेश की जनता के लिए क्या है इसका महत्व?
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार यह कदम शासन को जनता से सीधे जोड़ने वाला बनाता है। भवन की नई पहचान यह संदेश देती है कि—
शासन जनता के लिए और जनता के माध्यम से संचालित होता है।
जनसत्ता सर्वोच्च है।
लोकतंत्र का स्वरूप अधिक सुदृढ़ और पारदर्शी बनता है।
भविष्य में प्रदेश के अन्य संस्थानों में भी इसी प्रकार की भाषा और विचारधारा को अपनाने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
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