तकनीकी और चिकित्सा क्षेत्र के कुशल भारतीय पेशेवरों को मिल सकती है बड़ी राहत, वीजा नीति में बदलाव के संकेत

वॉशिंगटन, 12 नवंबर। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने मंगलवार को अपने पुराने रुख से पीछे हटते हुए एच-1 बी वीजा नीति में संभावित राहत के संकेत दिए हैं। फॉक्स न्यूज़ को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने स्वीकार किया कि अमेरिका को कुछ प्रमुख क्षेत्रों में विदेशी प्रतिभाओं की आवश्यकता है, ताकि देश की अर्थव्यवस्था और तकनीकी क्षेत्र मजबूत रह सके।

ट्रंप का यह बयान इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि उनके प्रशासन ने अब तक इस वीजा योजना पर सख्त रवैया अपनाया था और कई विदेशी श्रमिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाए थे। विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का यह नया दृष्टिकोण अमेरिकी श्रम बाजार की वास्तविकता को स्वीकार करने जैसा है।

ट्रंप का रुख बदला, कहा – “देश में कुछ क्षेत्रों में प्रतिभा की कमी”

साक्षात्कार के दौरान जब ट्रंप से पूछा गया कि क्या अमेरिका में पर्याप्त घरेलू प्रतिभाएं मौजूद नहीं हैं, तो उन्होंने स्पष्ट कहा —

“नहीं, आपके पास नहीं हैं। कुछ क्षेत्रों में आपके पास प्रतिभाएं नहीं हैं और आपको लोगों को सिखाना होगा। लेकिन इस बीच हमें विदेशी प्रतिभाओं को देश में लाना होगा।”

ट्रंप ने माना कि अमेरिका के पास उच्च तकनीक, रक्षा अनुसंधान और विनिर्माण क्षेत्र में ऐसे विशेषज्ञों की कमी है, जो जटिल भूमिकाएँ संभाल सकें। उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों में विदेशी विशेषज्ञ, विशेष रूप से भारत जैसे देशों से आने वाले पेशेवर, अमेरिकी उद्योगों की प्रगति में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

एच-1 बी वीजा पर नरम रुख, भारतीयों के लिए राहत की उम्मीद

एच-1 बी वीजा(H1B Visa) कार्यक्रम का उपयोग अमेरिकी कंपनियाँ तकनीकी, चिकित्सा और अनुसंधान क्षेत्रों में विदेशी विशेषज्ञों को नियुक्त करने के लिए करती हैं। भारतीय पेशेवर — विशेष रूप से आईटी इंजीनियर, डॉक्टर और वैज्ञानिक — इस कार्यक्रम के सबसे बड़े लाभार्थी हैं।

ट्रंप प्रशासन ने अपने पहले कार्यकाल में एच-1 बी वीजा के नियमों को सख्त बनाते हुए कई प्रतिबंध लगाए थे। लेकिन अब उनके इस नए बयान ने संकेत दिया है कि भविष्य में इन नियमों में नरमी की संभावना है।

अमेरिकी उद्योग संगठन और सिलिकॉन वैली की प्रमुख तकनीकी कंपनियाँ लंबे समय से सरकार पर यह दबाव बना रही थीं कि विदेशी प्रतिभाओं पर लगाम लगाने से नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। 

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सितंबर में ट्रंप ने वीजा शुल्क 1 लाख डॉलर कर दिया था

गौरतलब है कि सितंबर 2025 में ट्रंप प्रशासन ने एच-1 बी वीजा कार्यक्रम में बड़ा संशोधन करते हुए 100,000 अमेरिकी डॉलर (लगभग 83 लाख रुपये) का अतिरिक्त आवेदन शुल्क अनिवार्य किया था। यह शुल्क 21 सितंबर के बाद दाखिल होने वाले नए आवेदन या लॉटरी एंट्री पर लागू किया गया था।

यह निर्णय ‘कुछ गैर-आप्रवासी श्रमिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध’ शीर्षक वाली उद्घोषणा के तहत लिया गया था। इस कदम की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई थी क्योंकि इससे हजारों विदेशी पेशेवरों के अमेरिका आने का रास्ता मुश्किल हो गया था।

विदेश विभाग ने दी थी स्थिति स्पष्टता

इस फैसले के बाद अमेरिकी विदेश विभाग ने स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा था कि नई शुल्क नीति केवल उन्हीं कंपनियों या व्यक्तियों पर लागू होगी जो 21 सितंबर 2025 के बाद नए एच-1 बी आवेदन दाखिल करेंगे।
जो आवेदन इस तिथि से पहले जमा किए गए थे, या जो पहले से वीजा धारक हैं, उन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

इससे मौजूदा भारतीय पेशेवरों को तत्काल राहत मिली थी, लेकिन आने वाले वर्षों में 2026 की वीजा लॉटरी में भाग लेने वालों के लिए यह शुल्क लागू रहना था।

भारतीय पेशेवरों के लिए नई उम्मीद

ट्रंप के इस बदले हुए बयान से भारतीय पेशेवरों में राहत की भावना है। अमेरिका में काम कर रहे भारतीय आईटी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि प्रशासन सचमुच एच-1 बी नीति को उदार बनाता है, तो रोज़गार, शिक्षा और तकनीकी आदान-प्रदान के नए अवसर खुलेंगे।

अमेरिकी अर्थशास्त्रियों के अनुसार, भारत से आने वाले कुशल पेशेवरों ने सिलिकॉन वैली से लेकर हेल्थ सेक्टर तक अमेरिकी उद्योगों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाए रखा है।

विशेषज्ञों की राय: अमेरिका के हित में है प्रतिभा का प्रवाह

आर्थिक विश्लेषक डॉ. रिचर्ड हेंडरसन का कहना है —

“यदि अमेरिका उच्च शिक्षित विदेशी पेशेवरों के लिए दरवाजे बंद करता है, तो नवाचार रुक जाएगा। एच-1 बी वीजा जैसी योजनाएँ अमेरिका को वैश्विक नेतृत्व की स्थिति बनाए रखने में मदद करती हैं।”

भारत-अमेरिका संबंध विशेषज्ञों का मानना है कि यह रुख बदलाव दोनों देशों के बीच प्रौद्योगिकी, शिक्षा और अनुसंधान सहयोग को और गहरा करेगा।

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