कट्टरपंथी नेता की मौत के बाद राजधानी में अराजकता, प्रेस की आज़ादी और लोकतंत्र पर बड़ा संकट


शरीफ उस्मान हादी की मौत और हिंसा की पृष्ठभूमि

ढाका। बांग्लादेश के इस्लामी कट्टरपंथी संगठन ‘इंकलाब मंच’ के प्रवक्ता शरीफ उस्मान हादी की गुरुवार 18 दिसंबर 2025 को सिंगापुर के एक अस्पताल में मौत हो गई। हादी 12 दिसंबर को ढाका में हुए एक हमले में गंभीर रूप से घायल हुआ था, जब बाइकसवार हमलावरों ने उस पर गोलियां चलाई थीं। इलाज के लिए उसे सिंगापुर ले जाया गया था, जहां कई दिनों तक जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष के बाद उसकी मौत हो गई। हादी वही व्यक्ति था, जिसने हाल के महीनों में भारत-विरोधी बयान देकर और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों को बांग्लादेश के नक्शे में दिखाने वाले विवादित मानचित्र को सार्वजनिक कर भारी विवाद खड़ा किया था।


‘शहीद’ पोस्ट और भड़की हिंसा

हादी की मौत की खबर सामने आते ही ‘इंकलाब मंच’ ने सामाजिक माध्यमों पर एक पोस्ट जारी कर उसे “भारतीय वर्चस्व के खिलाफ शहीद” बताया। इस पोस्ट के बाद हालात तेजी से बिगड़ने लगे। समर्थकों ने सड़कों पर उतरकर नारेबाजी शुरू की, जो कुछ ही समय में संगठित हिंसा में बदल गई। ढाका के कई इलाकों में तनाव फैल गया और उग्र भीड़ ने सीधे उन संस्थानों को निशाना बनाना शुरू कर दिया, जिन्हें वे अपने विचारों का विरोधी मानते हैं।

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hadi post Photograph: (google)


‘प्रथम आलो’ के दफ्तर पर हमला और आगजनी

हिंसा का पहला बड़ा निशाना करवान बाजार स्थित देश के प्रमुख अखबार ‘प्रथम आलो’ का दफ्तर बना। उग्र भीड़ ने इमारत में घुसकर तोड़फोड़ की और उसके बाद आग लगा दी। देखते ही देखते दफ्तर का एक हिस्सा आग की लपटों में घिर गया। आसपास के इलाके में अफरा-तफरी मच गई और लोगों में दहशत फैल गई। यह हमला साफ तौर पर स्वतंत्र पत्रकारिता के खिलाफ गुस्से का प्रतीक माना जा रहा है।


‘द डेली स्टार’ में फंसे पत्रकार, छत पर बचाई जान

इसके बाद हिंसक भीड़ देश के सबसे बड़े अंग्रेज़ी अखबार ‘द डेली स्टार’ के दफ्तर की ओर बढ़ी। भीड़ ने इमारत के ग्राउंड फ्लोर में आग लगा दी, जिससे घना काला धुआं ऊपर की मंजिलों तक फैल गया। उस समय न्यूजरूम में 28 कर्मचारी मौजूद थे, जिनमें अधिकांश पत्रकार थे। नीचे से आती हिंसक भीड़ और आग के कारण बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा, मजबूरी में सभी को दसवीं मंजिल की छत पर शरण लेनी पड़ी। हालात इतने खतरनाक थे कि एक कैंटीन कर्मचारी जब सीढ़ियों से नीचे उतरने की कोशिश कर रहा था, तो भीड़ ने उसे पकड़कर बेरहमी से पीट दिया।

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दमकलकर्मियों की मुश्किल और रेस्क्यू ऑपरेशन

दमकल विभाग की गाड़ियां मौके पर पहुंचीं, लेकिन हिंसक भीड़ के डर से शुरुआत में कोई भी अंदर जाने की हिम्मत नहीं कर पाया। उग्र प्रदर्शनकारियों ने छत तक पहुंचने की कोशिश करते हुए दरवाजा तोड़ने का प्रयास किया, जिसे ऊपर फंसे पत्रकारों ने गमलों और अन्य सामान की मदद से रोका। करीब चार घंटे की दहशत और तनाव के बाद पीछे के रास्ते से आग से बचाव वाली सीढ़ियों के जरिए सभी पत्रकारों और कर्मचारियों को सुरक्षित बाहर निकाला जा सका।


पत्रकारों का खौफनाक अनुभव

इस घटना के बाद ‘द डेली स्टार’ की पत्रकार जायमा इस्लाम ने अपने अनुभव को सामाजिक माध्यमों पर साझा किया। उन्होंने लिखा कि धुएं के कारण उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी और उन्हें ऐसा लग रहा था मानो कोई उनकी जान लेने पर उतारू हो। उन्होंने बताया कि पहले से सूचना मिली थी कि उग्र भीड़ उनके दफ्तर की ओर बढ़ रही है, लेकिन हालात इतनी तेजी से नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे, इसका अंदाजा किसी को नहीं था।


भारतीय उच्चायोग और अवामी लीग दफ्तर भी निशाने पर

हिंसा मीडिया संस्थानों तक सीमित नहीं रही। प्रदर्शनकारियों ने भारतीय उच्चायोग की ओर बढ़ते हुए पथराव किया और तीखे भारत-विरोधी नारे लगाए। “भारतीय आक्रमण को ध्वस्त करो” जैसे नारे सड़कों पर गूंजते रहे। इसके साथ ही शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के दफ्तर को भी आग के हवाले कर दिया गया। कई प्रमुख चौराहों पर सड़कें जाम कर दी गईं और प्रशासन पर हादी की सुरक्षा में नाकामी का आरोप लगाया गया।


जांच, गिरफ्तारी और फरार आरोपी की अटकलें

न्यायिक स्तर पर ढाका की अदालत ने हादी पर हुए हमले के मुख्य आरोपी करीम मसूद के कुछ सहयोगियों को तीन दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया है। हालांकि, मुख्य आरोपी के भारत भाग जाने की अटकलें भी सामने आ रही हैं, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव को लेकर नई चर्चाएं शुरू हो गई हैं।


बांग्लादेश की स्थिरता और लोकतंत्र पर सवाल

विशेषज्ञों और पत्रकार संगठनों का कहना है कि यह हिंसा केवल एक व्यक्ति की मौत का नतीजा नहीं है, बल्कि यह कट्टरपंथी सोच का परिणाम है, जो असहमति और स्वतंत्र आवाज़ों को दबाना चाहती है। मीडिया संस्थानों पर हमला सीधे तौर पर प्रेस की आज़ादी पर हमला माना जा रहा है। इस घटना ने बांग्लादेश की आंतरिक स्थिरता, कानून-व्यवस्था और लोकतांत्रिक संस्थानों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आम नागरिकों और पत्रकारों के बीच डर का माहौल है और हर कोई यह सोचने को मजबूर है कि देश किस दिशा में बढ़ रहा है।

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