मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान बढ़ते दबाव को लेकर राज्यों को अतिरिक्त स्टाफ तैनात करने के निर्देश

नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) में लगे बूथ स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) पर बढ़ते कार्यभार और तनाव को गंभीर मुद्दा मानते हुए इस पर तत्काल राहत देने के निर्देश जारी किए हैं। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने साफ कहा कि राज्यों को बीएलओ का बोझ कम करने के लिए अतिरिक्त मानव संसाधन तैनात करने होंगे, ताकि आवश्यक कार्य समयबद्ध तरीके से हो सके और कर्मचारियों पर अनावश्यक मानसिक दबाव न पड़े।

बीएलओ को व्यक्तिगत परिस्थितियों में राहत देने पर विचार करें: सर्वोच्च न्यायालय

पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि कोई बीएलओ व्यक्तिगत कारणों या किसी पारिवारिक परिस्थिति के चलते एसआईआर कार्य करने में सक्षम नहीं है, तो ऐसे मामलों में राज्य सरकारें उन्हें उचित राहत देने पर गंभीरता से विचार करें। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई बीएलओ राहत से वंचित रह जाता है, तो वह सीधे न्यायालय का दरवाज़ा खटखटा सकता है।

न्यायालय ने विशेष रूप से उल्लेख किया कि एसआईआर के दौरान बीएलओ की मृत्यु होने की स्थिति में उनके परिजनों को मुआवजे के लिए बाद में अर्जी दाखिल करने की अनुमति दी जाए। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि उनके परिवार को आर्थिक सुरक्षा मिले।

उप्र में बीएलओ की आत्महत्या का मामला सुनवाई में केंद्र

सुनवाई के दौरान टीवीके पार्टी की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया कि उत्तर प्रदेश में एक बीएलओ, जिसने अपनी शादी हेतु छुट्टी मांगी थी, को निलंबित कर दिया गया। छुट्टी न मिलने और कार्यभार के बढ़ते दबाव के कारण उसने आत्महत्या कर ली।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस घटना पर गहरी चिंता जताते हुए कहा कि ऐसे मामलों से स्पष्ट हो गया है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान बीएलओ पर अत्यधिक दबाव डाला जा रहा है। यह न केवल अमानवीय है, बल्कि सेवा नियमों और संवैधानिक मानकों के विरुद्ध भी है।

टीवीके की याचिका: बीएलओ पर दर्ज एफआईआर को लेकर सवाल

याचिका में यह भी कहा गया कि उत्तर प्रदेश में निर्वाचन आयोग ने कई बीएलओ पर प्राथमिकी दर्ज कराई है, जिनमें अधिकांश आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और स्कूल शिक्षक शामिल हैं।
वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि बीएलओ का दायित्व अत्यंत कठिन है—वे सुबह अपनी नियमित जिम्मेदारियों के लिए स्कूल या आंगनबाड़ी में जाते हैं और उसके बाद विशेष गहन पुनरीक्षण का कार्य करते हैं। ऐसे में उनसे त्रुटिहीन कार्य की अपेक्षा करना अव्यावहारिक है।

उन्होंने याद दिलाया कि निर्वाचन आयोग अकेले इस कार्य को नहीं कर सकता, इसलिए इसे राज्य सरकारों की मदद से पूरा करना ही होगा।

कपिल सिब्बल ने भी उठाई चिंता: “उप्र जैसा विशाल राज्य, फिर भी केवल एक महीने का समय”

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि बीएलओ पर डाला जा रहा बोझ किसी से छिपा नहीं है।
उन्होंने कहा:
“उत्तर प्रदेश जैसा विशाल राज्य, जहाँ करोड़ों मतदाता हैं, वहां केवल एक महीने में एसआईआर का कार्य पूरा करने का निर्देश देना वास्तविकता से दूर है। विधानसभा चुनाव 2027 में हैं, तो इतनी जल्दबाजी क्यों?”

सिब्बल की इस दलील से न्यायालय ने भी सहमति जताई कि बड़े राज्यों में एसआईआर की समयावधि व्यावहारिकता के अनुसार तय की जानी चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का व्यापक असर

न्यायालय के इस आदेश का सीधा प्रभाव देशभर में लाखों बीएलओ पर पड़ेगा, जो पिछले कई महीनों से अतिरिक्त कार्यभार का सामना कर रहे थे।
न्यायालय ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि:
“मतदाता सूची का पुनरीक्षण जितना आवश्यक है, उतना ही जरूरी है कि इसे करने वाले कर्मचारी सम्मान, सुरक्षा और मानवीय संवेदनशीलता के साथ काम कर सकें।”

इस निर्णय से यह उम्मीद बढ़ी है कि राज्यों में बीएलओ को अब पर्याप्त सहायता, समय और संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे।

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