वरिष्ठ अधिवक्ता, राज्यसभा सदस्य और मिजोरम शांति स्थापना के सूत्रधार रहे स्वराज कौशल के निधन ने राष्ट्र को गहरे दुख में डाला

नई दिल्ली, 4 दिसंबर। मिजोरम के पूर्व राज्यपाल, वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के पति स्वराज कौशल का 73 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है। स्वराज कौशल न केवल अपने कानूनी ज्ञान और तेजस्वी व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे, बल्कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में शांति स्थापना के लिए उनके प्रयासों को आज भी ऐतिहासिक माना जाता है।

उनके निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, केंद्रीय मंत्रियों तथा कई राज्यों के वरिष्ठ नेताओं ने गहरा दुःख व्यक्त किया। उनके निधन को राष्ट्र की बड़ी क्षति के रूप में देखा जा रहा है।

बांसुरी स्वराज का भावुक संदेश: “पापा का जाना जीवन की सबसे गहरी पीड़ा है”

भाजपा सांसद बांसुरी स्वराज ने अपने दिवंगत पिता को भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि,
“पापा स्वराज कौशल, आपका स्नेह, अनुशासन, सरलता, राष्ट्रप्रेम और आपका अतुलनीय धैर्य मेरे जीवन की वह रोशनी हैं जो कभी मंद नहीं होगी। उनका जाना मेरे जीवन की सबसे गहरी पीड़ा है, लेकिन मुझे विश्वास है कि अब वे सुषमा स्वराज के साथ ईश्वर के सान्निध्य में हैं।”

उनका यह संदेश पूरे देश को स्पर्श कर गया और लोगों को सुषमा–सवराज दंपत्ति के उस मजबूत और प्रेरक व्यक्तिगत जीवन की याद दिला गया जिसने हमेशा राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा।

ओम बिरला ने कहा: “न्याय, सेवा और कर्तव्यनिष्ठा के प्रतीक थे स्वराज कौशल”

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने शोक संदेश में कहा कि स्वराज कौशल का व्यक्तित्व सरल, दृढ़ और कर्तव्यनिष्ठ था। उन्होंने उन्हें न्याय और लोकतांत्रिक व्यवस्था का मजबूत स्तंभ बताया। बिरला ने कहा कि राष्ट्रसेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और संवेदनशीलता सदैव स्मरणीय रहेगी।

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swaraj kaushal Photograph: (hs)

केंद्रीय मंत्रियों का श्रद्धांजलि संदेश: राष्ट्रहित में अद्वितीय योगदान

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि स्वराज कौशल ने निष्ठा और समर्पण के साथ राष्ट्र की सेवा की।
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजीजू ने उन्हें तेजस्वी, बुद्धिमान, और सार्वजनिक जीवन को समर्पित व्यक्तित्व बताया।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि स्वराज कौशल की विद्वत्ता, विनम्रता और न्यायप्रियता अनुकरणीय है।

मिजोरम के राज्यपाल जनरल वी.के. सिंह ने कहा कि उनकी मृत्यु अत्यंत दुखद है और उन्होंने ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति की प्रार्थना की।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने जताया शोक: “उनका योगदान सदैव याद रखा जाएगा”

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा:
“मिजोरम के पूर्व राज्यपाल, पूर्व संसद सदस्य और प्रतिष्ठित कानूनी विशेषज्ञ स्वराज कौशल के निधन की खबर दुखद है। राष्ट्र के प्रति उनका योगदान अमूल्य है और इसे सदैव याद किया जाएगा।”

उन्होंने बांसुरी स्वराज और परिवार के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त की।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा: “कानूनी पेशे का उपयोग उन्होंने जनसेवा के लिए किया”

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शोक व्यक्त करते हुए कहा:
“स्वराज कौशल के निधन से गहरा दुख हुआ। उन्होंने एक वकील के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई और कानूनी पेशे का इस्तेमाल उन लोगों की जिंदगी बेहतर बनाने में किया जिन्हें न्याय की सबसे अधिक आवश्यकता थी।”

मोदी ने याद किया कि वे भारत के सबसे कम उम्र के राज्यपाल बने और मिजोरम के लोगों के मन में उन्होंने स्थायी स्थान बनाया। प्रधानमंत्री ने बांसुरी स्वराज और परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की।

भारत के सबसे युवा राज्यपाल: 37 वर्ष की आयु में रचा इतिहास

स्वराज कौशल का जन्म 12 जुलाई 1952 को हुआ था। उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में वे दशकों तक चर्चित रहे।
साल 1990 में मात्र 37 वर्ष की आयु में उन्हें मिजोरम का राज्यपाल नियुक्त किया गया:
वे देश के इतिहास में सबसे युवा राज्यपाल बने।

1990 से 1993 तक उन्होंने मिजोरम में जिस परिपक्वता, संवेदना और कूटनीतिक दृष्टि से कार्य किया, वह आज भी उदाहरण के रूप में देखा जाता है।

मिजोरम शांति प्रक्रिया के सूत्रधार: “शांति के हीरो” के रूप में याद किए जाते हैं

मिजो शांति समझौते को ऐतिहासिक स्वरूप देने में स्वराज कौशल की भूमिका निर्णायक थी।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में दशकों से चल रहे तनाव और असंतोष को उन्होंने जिस कौशल और संवेदनशीलता से संभाला, उसकी वजह से उन्हें स्थानीय लोगों ने “शांति के नायक” के रूप में सम्मान दिया।

उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप मिजोरम आज देश के सबसे शांत और प्रगतिशील राज्यों में गिना जाता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में शानदार करियर

दिल्ली और पंजाब विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने वाले स्वराज कौशल ने उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में कई महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामलों की पैरवी की।
उनकी वकालत का प्रभाव कानूनी जगत में स्थापित माना जाता है।

1998 से 2004 के बीच वे राज्यसभा सदस्य भी रहे और संसद में कई महत्वपूर्ण विधायी बहसों का हिस्सा बने।

स्वराज–सुषमा का प्रेरक जीवन: इमरजेंसी की कठिनाइयों में शुरू हुई थी पहचान

उनका व्यक्तिगत जीवन भी उतना ही प्रेरणादायक रहा।
1975 में अत्यंत कठिन समय—इमरजेंसी के दौरान—जब वे युवा वकील थे, जॉर्ज फर्नांडिस की कानूनी टीम में काम करते समय उनकी मुलाकात सुषमा स्वराज से हुई।
कामकाजी समझ और विचारों की समानता ने धीरे–धीरे विश्वास और प्रेम का रूप लिया।

दोनों अलग राजनीतिक पृष्ठभूमि से थे, लेकिन परिवार की सहमति से 13 जुलाई 1975 को विवाह हुआ।
इस विवाह को लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने भी आशीर्वाद दिया था।

स्वराज–सुषमा की जोड़ी को हमेशा राष्ट्रहित में योगदान देने वाले आदर्श दंपत्ति के रूप में याद किया जाता है।

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