युवा संवाद कार्यक्रम में सरसंघचालक ने राष्ट्र निर्माण, सामाजिक सरोकार और पंच परिवर्तन पर रखे विचार
रायपुर, 31 दिसंबर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक Mohan Bhagwat ने कहा कि मानवीय संवेदनाओं के बिना किसी भी समाज और व्यक्ति का अस्तित्व बचाना कठिन है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि समाज की दिशा और भविष्य तय करने में युवाओं की भूमिका सबसे अधिक निर्णायक होती है। डॉ. भागवत राजधानी रायपुर स्थित AIIMS Auditorium Raipur में आयोजित युवा संवाद कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
युवाओं से राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने का आह्वान
डॉ. भागवत ने कहा कि देश का शिक्षित युवा केवल करियर और व्यक्तिगत सफलता तक सीमित न रहे, बल्कि समाज और राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी समझे। उन्होंने कहा कि डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट, स्टार्टअप उद्यमी और सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत युवाओं को अपने पेशे के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों से भी जुड़ा रहना चाहिए। इस संवाद कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े करीब दो हजार युवाओं ने सहभागिता की।
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पंच परिवर्तन से समाज में सकारात्मक बदलाव की जरूरत
सरसंघचालक ने ‘पंच परिवर्तन’ की अवधारणा को विस्तार से समझाते हुए कहा कि समाज में वास्तविक परिवर्तन इन्हीं पांच आयामों से संभव है। उन्होंने सामाजिक समरसता के अंतर्गत छुआछूत और भेदभाव को पूरी तरह समाप्त करने पर जोर दिया। पर्यावरण संरक्षण को लेकर उन्होंने कहा कि प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीवन जीना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। कुटुंब प्रबोधन के माध्यम से परिवारों को मजबूत करने और सांस्कृतिक मूल्यों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की बात कही। स्वदेशी के तहत भारतीय उत्पादों और जीवनशैली को अपनाने तथा नागरिक कर्तव्य के तहत अपने दायित्वों का ईमानदारी से पालन करने की अपील की।
विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन पर चिंता
अरावली पर्वत और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर बोलते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि अब तक दुनिया ऐसा विकास मॉडल नहीं खोज पाई है, जिसमें विकास और पर्यावरण दोनों साथ-साथ चल सकें। उन्होंने कहा कि इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण को भी समान महत्व देना होगा, तभी संतुलित और टिकाऊ विकास संभव है।
युवाओं में बढ़ते अकेलेपन और नशे पर गंभीर चिंता
डॉ. भागवत ने युवाओं में बढ़ते नशे और मानसिक अकेलेपन को एक गंभीर सामाजिक समस्या बताया। उन्होंने कहा कि आज का युवा खुद को अकेला महसूस कर रहा है, क्योंकि परिवार के भीतर संवाद कम हो गया है। बातचीत की कमी के कारण मोबाइल और नशा युवाओं के सामने विकल्प बनकर खड़े हो गए हैं। उन्होंने इसे केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक समस्या बताते हुए परिवारों से युवाओं के साथ अधिक समय बिताने और संवाद बढ़ाने की अपील की।
धर्मांतरण और मतांतरण पर संवाद और विश्वास की बात
धर्मांतरण और मतांतरण के विषय पर डॉ. भागवत ने कहा कि हमें विरोध की बजाय संवाद का मार्ग अपनाना चाहिए। सम्मान और प्रेम के साथ उनके पास जाना चाहिए और उन्हें आगे बढ़ने का अवसर देना चाहिए। जब लोगों को यह विश्वास होगा कि समाज उनके साथ खड़ा है, तो वे स्वयं अपनी मूल पहचान की ओर लौटेंगे।
मंदिर प्रबंधन और समाज की भूमिका पर टिप्पणी
मंदिरों के प्रबंधन को लेकर उन्होंने कहा कि देश में कई मंदिर सरकारी, निजी और अन्य व्यवस्थाओं के अधीन हैं और दोनों ही व्यवस्थाओं में अव्यवस्थाएं देखने को मिलती हैं। अब समाज के बीच यह विचार मजबूत हो रहा है कि मंदिर जिनके हैं, उनके ही अधीन होने चाहिए। इस दिशा में न्यायिक स्तर पर प्रयास चल रहे हैं और इस विषय पर गंभीरता से काम किया जा रहा है।
चरित्र निर्माण से ही खत्म होंगी सामाजिक बुराइयां
डॉ. भागवत ने कहा कि भ्रष्टाचार और सामाजिक बुराइयों को केवल कानून बनाकर समाप्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए चरित्र निर्माण, अनुशासन और नैतिक मूल्यों की आवश्यकता है। उन्होंने युवाओं को सोशल मीडिया के अत्यधिक प्रभाव, नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अन्य भटकावों से सावधान रहने की सलाह दी।
हिंदुत्व और भारत प्रथम की सोच
उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंदुत्व कोई संकीर्ण धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक पद्धति है, जो सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास रखती है। उन्होंने युवाओं को भारतीय शास्त्रीय संगीत, कला और संस्कृति पर गर्व करने की सलाह दी। साथ ही ‘भारत प्रथम’ की सोच अपनाकर भारत को एक सामर्थ्यवान राष्ट्र बनाने और वैश्विक कल्याण में योगदान देने का संदेश दिया।
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