वरिष्ठ पत्रकार सीताराम अग्रवाल की स्मृतियों में जीवित हैं कवि-हृदय अटल बिहारी वाजपेयी

कोलकाता, 25 दिसंबर (हि.स.)। देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर देशभर में उन्हें अलग-अलग रूपों में याद किया जा रहा है। कोई उन्हें सुशासन के प्रतीक के रूप में स्मरण कर रहा है, तो कोई उनके ओजस्वी भाषणों और कवि-मन को नमन कर रहा है। इसी क्रम में वरिष्ठ पत्रकार सीताराम अग्रवाल की स्मृतियां अटलजी के उस मानवीय, सरल और संवेदनशील व्यक्तित्व को सामने लाती हैं, जिसने उन्हें सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि जन-जन का अपना बना दिया।

पहली मुलाकात की स्मृति और भावुक क्षण

सीताराम अग्रवाल अटलजी को याद करते हुए भावुक हो उठते हैं। बातचीत के दौरान उनकी आंखें नम हो जाती हैं। वे बताते हैं कि अटलजी से पहली मुलाकात आज भी उनके मन में जीवंत है। उनके अनुसार अटल बिहारी वाजपेयी अत्यंत सरल स्वभाव के थे। यदि सामने वाला उनकी बातों में रुचि जगा देता, तो वे समय और औपचारिकताओं को भूल जाते थे। यहां तक कि दवा लेने की याद दिलाने पर भी वे मुस्कराकर टाल देते थे।

महाजाति सदन का वह ऐतिहासिक दिन

अग्रवाल बताते हैं कि यह घटना लगभग साठ वर्ष पुरानी है। उस समय वे किशोर अवस्था में थे और अटलजी की भाषण शैली के प्रशंसक थे। राजनीतिक समझ भले ही परिपक्व न रही हो, लेकिन उनकी भाषा, शब्दों की गरिमा और विचारों की स्पष्टता ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया था। अटलजी का एक कार्यक्रम कोलकाता के सेंट्रल एवेन्यू स्थित महाजाति सदन सभागार में आयोजित था।

जनसंघ समर्थक एक मित्र के आग्रह पर वे कार्यक्रम में पहुंचे। उनके साथ एक कांग्रेस समर्थक मित्र और एक अन्य साथी भी थे। चारों मित्र कमरहट्टी क्षेत्र से लगभग 11 किलोमीटर का सफर तय कर महाजाति सदन पहुंचे। रास्ते भर यह तय होता रहा कि यदि अवसर मिला तो कार्यक्रम के बाद अटलजी से मिलने का प्रयास किया जाएगा।

सुरक्षा तामझाम से दूर, सहज समय

कार्यक्रम समाप्त होने के बाद चारों किशोर बाहर अटलजी के निकलने की प्रतीक्षा करने लगे। उस दौर में आज जैसी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी। अटलजी महाजाति सदन के सामने ही घनश्याम बेरीवाल के मकान में ठहरे हुए थे, लेकिन इस जानकारी से वे अनजान थे। ट्रैफिक के कारण उनकी कार थोड़ी पीछे रह गई, फिर भी खोजबीन करते हुए वे उसी मकान तक पहुंच गए।

झिझक, साहस और एक किशोर की आवाज

थोड़ी झिझक के साथ वे मकान के भीतर दाखिल हुए। दोपहर का समय था और आश्चर्यजनक रूप से वहां कोई नहीं मिला। वे एक-एक मंजिल चढ़ते हुए तीसरे तल्ले तक पहुंच गए। चौथे तल्ले पर जाने की सोच ही रहे थे कि एक सज्जन नीचे उतरते दिखाई दिए। उन्होंने सख्ती से कहा कि अटलजी आराम कर रहे हैं और मुलाकात संभव नहीं है।

काफी अनुनय-विनय हुई। कहा गया कि वे दूर से आए हैं, सिर्फ एक झलक देखना चाहते हैं। लेकिन बात नहीं बनी। इसी बीच सबसे छोटे सदस्य सीताराम अग्रवाल ने साहस जुटाया और ऊंची आवाज में बोल पड़े। उन्होंने कहा कि ऐसे लोग ही लोकप्रिय नेताओं और जनता के बीच अनावश्यक दीवार बन जाते हैं, जिससे नेता की छवि और पार्टी दोनों को नुकसान होता है।

ऊपर से आई वह ऐतिहासिक आवाज

अग्रवाल बताते हैं कि तभी ऊपर से आवाज आई—“इन बालकों को ऊपर आने दो।” पीछे मुड़कर देखा तो स्वयं अटल बिहारी वाजपेयी चौथे तल्ले की रेलिंग पर झुके हुए थे और उन्हीं की ओर देख रहे थे। संभवतः वे काफी देर से पूरी बातचीत सुन रहे थे। उस क्षण की खुशी को शब्दों में बांध पाना कठिन है। चारों किशोरों के चेहरे खिल उठे।

पिता जैसा स्नेह और संवाद

इसके बाद अटलजी ने उन्हें ऊपर बुलाया। उन्होंने पिता समान स्नेह के साथ उनका परिचय पूछा, पढ़ाई और रुचियों के बारे में जाना और आत्मीय बातचीत की। समय कैसे बीत गया, किसी को पता ही नहीं चला। बातचीत का यह सिलसिला आधे घंटे से अधिक चल पड़ा।

‘तुम्हें दवा की पड़ी है…’ और अटलजी का मानवीय रूप

इसी दौरान एक डॉक्टर पहुंचे और अटलजी को दवा लेने की याद दिलाई। इस पर अटलजी ने मुस्कराते हुए कहा—“तुम्हें दवा की पड़ी है, देखो ये बच्चे कितनी दूर से मुझसे मिलने आए हैं।” यह वाक्य आज भी सीताराम अग्रवाल के मन में गूंजता है। यह सिर्फ एक संवाद नहीं, बल्कि अटलजी के संवेदनशील और मानवीय स्वभाव का प्रमाण था।

विदाई और अमिट छाप

अंततः कई बार बुलावा आने के बाद सीताराम अग्रवाल ने चरण स्पर्श कर विदा ली। उन्हें ऐसा लगा मानो अटलजी अभी और बातचीत करना चाहते हों। राजनीति से इतर यह सहज संवाद शायद अटलजी को भी आनंद दे रहा था। अग्रवाल कहते हैं कि यही अटल बिहारी वाजपेयी थे—कवि-हृदय, संवेदनशील और हर मिलने वाले को अपना बना लेने वाले।

स्मृतियों में जीवित अटल

अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर यह स्मृति एक बार फिर यह याद दिलाती है कि वे केवल सत्ता के शिखर पर बैठे नेता नहीं थे, बल्कि आम लोगों से जुड़ने वाले, संवाद को सम्मान देने वाले और मानवीय रिश्तों को राजनीति से ऊपर रखने वाले व्यक्तित्व थे। यही कारण है कि दशकों बाद भी उनकी कही बातें और उनका स्नेह लोगों के दिलों में जीवित है।

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