जमशेदपुर के करनडीह में आदिवासी अस्मिता, भाषा और संस्कृति के संरक्षण का सशक्त संदेश
पूर्वी सिंहभूम, 29 दिसंबर (हि.स.)। झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले जमशेदपुर के करनडीह स्थित दिशोम जाहेरथान प्रांगण में सोमवार को एक ऐसा ऐतिहासिक क्षण देखने को मिला, जिसने पूरे संथाली समाज को गर्व और भावनाओं से भर दिया। देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने 22वें संताली ‘परसी माहा’ एवं ओल चिकी लिपि शताब्दी समारोह में संथाली भाषा में गीत गाकर न केवल कार्यक्रम को यादगार बना दिया, बल्कि आदिवासी संस्कृति और मातृभाषा के प्रति अपने गहरे लगाव को भी पूरे देश के सामने रखा।
संथाली नेहोर गीत से हुई ऐतिहासिक शुरुआत
राष्ट्रपति मुर्मु ने अपने संबोधन की शुरुआत संथाली नेहोर गीत “जोहार जोहार आयो…” से की, जिसे उन्होंने लगभग तीन मिनट तक भावपूर्ण स्वर में गाया। जैसे ही राष्ट्रपति का स्वर गूंजा, पूरा पंडाल स्तब्ध हो गया। कार्यक्रम में मौजूद हजारों लोग मंत्रमुग्ध होकर इस दृश्य के साक्षी बने। यह केवल एक गीत नहीं था, बल्कि संथाली समाज की आत्मा, उसकी परंपरा और उसकी पहचान का जीवंत प्रदर्शन था। राष्ट्रपति का यह भावनात्मक क्षण लंबे समय तक लोगों की स्मृति में अंकित रहेगा।
LIVE: President Droupadi Murmu addresses the centenary celebrations of Ol Chiki at Jamshedpur, Jharkhand https://t.co/GEZADsJt6z
— President of India (@rashtrapatibhvn) December 29, 2025
जाहेर आयो और गुरु गोमके को नमन
अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि करनडीह आने से पहले उन्होंने जाहेर आयो को नमन किया और संथाली लिपि के जनक गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा है, लेकिन समाज के लोगों का स्नेह, पूर्वजों का आशीर्वाद और इष्टदेवों की कृपा ही उन्हें इस मुकाम तक लेकर आई है। राष्ट्रपति ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि ओल चिकी लिपि केवल अक्षरों का समूह नहीं, बल्कि संथाली समाज की पहचान, आत्मसम्मान और एकता की मजबूत नींव है।
ओल चिकी लिपि: पहचान और स्वाभिमान का आधार
राष्ट्रपति मुर्मु ने ओल चिकी लिपि के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि किसी भी समाज की भाषा और लिपि उसकी आत्मा होती है। जब तक भाषा सुरक्षित है, तब तक संस्कृति और परंपराएं भी जीवित रहती हैं। उन्होंने ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि यह संगठन वर्षों से आदिवासी स्वाभिमान और अस्तित्व की रक्षा के लिए निरंतर संघर्ष कर रहा है और आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य कर रहा है।
मातृभाषा में कानून: सशक्त समाज की नींव
राष्ट्रपति ने संविधान के संथाली (ओल चिकी) अनुवाद का उल्लेख करते हुए इसे ऐतिहासिक उपलब्धि बताया। उन्होंने कहा कि जब कानून और अधिकारों की जानकारी मातृभाषा में उपलब्ध होती है, तब समाज वास्तव में सशक्त बनता है। उन्होंने चिंता जताई कि भाषा की जानकारी के अभाव में कई बार निर्दोष लोग अनजाने में अपराधी बन जाते हैं और जेल तक पहुंच जाते हैं। संथाली भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है, इसलिए यह आवश्यक है कि देश को चलाने वाले नियम और कानून संथाली समाज को उनकी अपनी भाषा में समझ में आएं।
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युवाओं से आगे आने की अपील
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में संथाल समाज के लोग रहते हैं और आज संथाली समाज में शिक्षित युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। ऐसे में अपने अधिकारों, भाषा और संस्कृति को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी युवाओं की है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि वे ओल चिकी लिपि और संथाली समाज के संरक्षण एवं विकास के लिए लगातार प्रयास करती रहेंगी और हर संभव सहयोग देंगी।
राज्यपाल और मुख्यमंत्री के विचार
समारोह में मौजूद झारखंड के राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने कहा कि यह आयोजन केवल एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं, बल्कि जनजातीय संस्कृति की जीवंतता और गौरव का प्रतीक है। उन्होंने राष्ट्रपति मुर्मु के जीवन संघर्ष को पूरे आदिवासी समाज के लिए प्रेरणास्रोत बताया और कहा कि जमशेदपुर सांप्रदायिक सौहार्द और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक शहर है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि वर्ष 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में संथाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था और ओल चिकी लिपि हमारी अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने संबोधन में कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु का संथाली भाषा और ओल चिकी लिपि के विकास में योगदान ऐतिहासिक है। उन्होंने संविधान के संथाली अनुवाद को समाज के लिए मील का पत्थर बताया और कहा कि गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू ने संथाली समाज को लिपि देकर जो पहचान दी, उसके लिए पूरा समाज उनका सदैव ऋणी रहेगा। मुख्यमंत्री ने भरोसा दिलाया कि राज्य सरकार जनजातीय भाषाओं और संस्कृति के संरक्षण के लिए निरंतर कार्य करती रहेगी।
साहित्यकारों और साधकों का सम्मान
समारोह के समापन अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने संथाली साहित्य और ओल चिकी लिपि को समृद्ध करने वाले साहित्यकारों, शिक्षकों और साधकों को सम्मानित किया। सम्मानित होने वालों में शोभनाथ बेसरा, पद्मश्री डॉ. दमयंती बेसरा, मुचीराम हेम्ब्रॉम, भीमवार मुर्मू, साखी मुर्मू, रामदास मुर्मू, चुंडा सोरेन सिपाही, छोतराय बास्के, निरंजन हंसदा, बी.बी. सुंदरमन, सौरव, शिव शंकर कंडेयांग, सी.आर. माझी सहित कई अन्य प्रमुख नाम शामिल रहे। यह सम्मान समारोह संथाली समाज की बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत को नमन करने जैसा रहा।
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