राज्य स्तरीय सम्मेलन में पारेश शाह का संदेश—हर मामला एक बच्चे की कहानी, केवल कानून नहीं बल्कि जागरूकता और समन्वय भी ज़रूरी

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने बच्चों की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि दर्ज की है। आयोग ने बताया कि हाल ही में एक ही महीने के भीतर लगभग 26 हजार मामलों का निपटारा किया गया और देशभर से 2,300 से अधिक बच्चों को बचाया गया। यह आंकड़ा न केवल आयोग की सक्रियता को दर्शाता है, बल्कि बच्चों से जुड़े मामलों की गंभीरता और उनकी व्यापकता को भी उजागर करता है।

एनसीपीसीआर के किशोर न्याय, बाल यौन शोषण (पॉक्सो) और विशेष प्रकोष्ठ के प्रमुख पारेश शाह ने राज्य स्तरीय सम्मेलन में संबोधित करते हुए कहा कि बाल अधिकारों का उल्लंघन केवल संख्या मात्र नहीं है। “हर मामला एक बच्चे और उसके परिवार की कहानी है। अधिकारियों की प्रभावी कार्रवाई बच्चों के वर्तमान ही नहीं बल्कि देश के भविष्य को भी दिशा देती है।” उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश सहित देश के सभी राज्यों में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना केंद्र और राज्य सरकारों की प्राथमिकता है, लेकिन केवल सख्त कानून पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिए मजबूत निगरानी, जागरूकता और सुव्यवस्थित क्रियान्वयन बेहद जरूरी है।

छह महीनों में 26 हजार मामले निपटाए, 1,000 बच्चे अपने गृह ज़िलों में लौटे

पारेश शाह ने बताया कि पिछले छह महीनों में आयोग ने—

लगभग 26,000 मामलों का निपटारा किया

2,300 से अधिक बच्चों को सुरक्षित बचाया

1,000 से अधिक बच्चों को उनके गृह जिलों में वापस भेजा

इन सभी में एनसीपीसीआर द्वारा लागू की गई नई तकनीक आधारित प्रणाली ने बड़ी भूमिका निभाई है। इस प्रणाली से न केवल केस ट्रैकिंग आसान हुई, बल्कि बचाव कार्यों की गति भी कई गुना तेज हुई।

बाल संरक्षण कानूनों को लागू करने में चुनौतियाँ

सम्मेलन में बाल अधिकारों से जुड़े प्रमुख कानूनों—पॉक्सो, किशोर न्याय अधिनियम और बाल श्रम निषेध कानूनों—के क्रियान्वयन में मौजूद कमियों पर विस्तार से चर्चा की गई। पारेश शाह ने कहा कि कई मामलों में

स्थानीय स्तर पर जागरूकता की कमी

अधिकारियों के प्रशिक्षण की सीमाएं

निगरानी तंत्र की कमजोरियाँ

और हितधारकों के बीच समन्वय की कमी

बाल अधिकारों के प्रभावी संरक्षण में बाधा बन रही हैं।

मानसिक स्वास्थ्य, एआई आधारित निगरानी और नई रणनीतियों पर फोकस

शाह ने यह भी स्पष्ट किया कि आगे आयोग बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य समर्थन, ऑनलाइन बाल यौन शोषण सामग्री से लड़ने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के उपयोग और जमीनी स्तर की चुनौतियों के समाधान पर विशेष जोर देगा।

उन्होंने कहा कि सरकार के बाल संरक्षण वादों को पूरा करने की जिम्मेदारी केवल आयोग की नहीं, बल्कि

स्कूल प्रबंधन,

कानून-प्रवर्तन एजेंसियों,

स्वास्थ्य विभाग,

और नागरिक समाज

सभी की सामूहिक साझेदारी से पूरी हो सकती है।
इसके साथ ही उन्होंने लगातार क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण, जागरूकता अभियान और नियमित कार्यशालाओं की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि अग्रिम मोर्चे पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं को पर्याप्त सहयोग मिल सके।

यह पूरा अभियान इस बात का प्रमाण है कि बच्चों की सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा तभी संभव है जब नीति निर्माण से लेकर क्रियान्वयन तक हर स्तर पर एकजुट प्रयास हों।

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