अभिजीत मुहूर्त में अयोध्या में धर्मध्वज फहराया: सूर्य, ‘ॐ’ और कोविदार प्रतीक से सजा रामराज्य का ध्वज

अयोध्या में मंगलवार का दिन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान का क्षण नहीं था, बल्कि उस सांस्कृतिक स्मृति का पुनरुत्थान भी था, जिसकी प्रतीक्षा सदियों से की जा रही थी। ध्वजारोहण के लिए जो समय निर्धारित किया गया—सुबह 11 बजकर 52 मिनट से दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक—वह अभिजीत मुहूर्त था, जिसे भगवान श्रीराम के जन्म नक्षत्र से जुड़ने के कारण अत्यंत शुभ माना जाता है। यह 32 मिनट का कालखंड परंपरा और ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार सर्वोत्तम माना गया, इसी शुभ घड़ी में मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा फहराई गई, जिसने अयोध्या के आकाश को केसरिया आभा में रंग दिया।

धर्म ध्वजा का स्वरूप स्वयं में प्रतीकात्मक संदेश लेकर आया। समकोण त्रिभुजाकार आकार वाले इस दिव्य ध्वज की ऊंचाई 10 फुट और लंबाई 20 फुट है। इसके केसरिया रंग को तेज, त्याग और पराक्रम का प्रतीक माना जाता है। ध्वज पर अंकित दीप्तिमान सूर्य भगवान राम के तेज का संकेत देता है, ‘ॐ’ का चिन्ह भारतीय आध्यात्मिकता और सार्वभौमिक चेतना का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि कोविदार वृक्ष की आकृति रघुकुल की परंपरा, मर्यादा और सेवा के भाव को दर्शाती है। इन तीनों प्रतीकों का सम्मिलित संदेश रामराज्य के आदर्शों और भारतीय सभ्यता की सांस्कृतिक निरंतरता की ओर संकेत करता है।

दुल्हन की तरह सजी अयोध्या,भव्यता और सुरक्षा का दुर्लभ संगम

ध्वजारोहण के अवसर पर अयोध्या का प्रत्येक मार्ग, प्रत्येक चौराहा और प्रत्येक द्वार पारंपरिक सौंदर्य से जगमगा उठा। शहर को इस प्रकार सजाया गया कि मानो त्रेता युग पुनः लौटा हो। सड़कें पुष्पवर्षा से महक रही थीं, मंदिर मार्गों पर रंगोली और विद्युत सज्जा की छटा बिखरी थी। भीड़ के हर कदम के साथ उत्साह और भक्ति का प्रवाह बढ़ता गया।

इतने बड़े आयोजन को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था अभूतपूर्व रही। अयोध्या तथा प्रदेश के अन्य जिलों से कुल लगभग 30 हजार जवान शहर में तैनात किए गए। प्रधानमंत्री की सुरक्षा में एसपीजी का विशेष सुरक्षा घेरा था, जो नवीनतम तकनीक और शस्त्रों से लैस था। उनके पास पी-90 सब मशीनगन और ग्लॉक 17-19 जैसे उन्नततम हथियार मौजूद थे। सुरक्षा का यह तंत्र इस बात का प्रमाण था कि कार्यक्रम जितना भव्य था, उतना ही संवेदनशील भी।

ध्वजारोहण पूर्व संध्या पर प्रकाश से जगमगाई अयोध्या, सरयू तट से देखें दिव्य फोटो गैलरी
ध्वजारोहण पूर्व संध्या पर प्रकाश से जगमगाई अयोध्या, सरयू तट से देखें दिव्य फोटो गैलरी Photograph: (X)

सांस्कृतिक संदेश,धर्म ध्वजा केवल प्रतीक नहीं, भारतीय आत्मा का आधार

ध्वजारोहण केवल परंपरा का पालन नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक आत्मा का पुनर्जागरण था। इस ध्वजा पर अंकित प्रत्येक प्रतीक भारतीय जवनदर्शन की परतों को खोलता है। सूर्य साहस, ज्ञान और नेतृत्व का द्योतक है। ‘ॐ’ सम्पूर्ण विश्व को जोड़ने वाली ध्वनि का प्रतीक है, जो भारतीय दर्शन में सृष्टि के मूल स्वरूप का आधार माना गया है। कोविदार वृक्ष प्रकृति, मानवता और त्याग का प्रतिनिधि है, जो स्वयं धूप में खड़ा होकर दूसरों को छाया देता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस आयोजन के दौरान महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, महर्षि वाल्मीकि, देवी अहिल्या, निषादराज गुहा और माता शबरी जैसे पावन स्थलों में भी मत्था टेका। इन सभी मंदिरों का दर्शन कर उन्होंने श्रद्धा और समरसता के उन मूल्यों को नमन किया जो रामकथा को जीवन्त बनाते हैं। इसके बाद वे शेषावतार मंदिर पहुंचे, जहां उनके द्वारा किया गया दर्शन इस दिव्य यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा बना।

धर्म ध्वजा की विशेषताएँ,संदेश और संरचना का अनूठा संगम

मंदिर पर स्थापित धर्म ध्वजा की संरचना भारतीय परंपरा के अनुरूप होते हुए भी आधुनिक प्रतीकवाद को समाहित करती है। इसका समकोण त्रिभुजाकार स्वरूप दिशा, शक्ति और संवेदनशीलता का संकेत माना जाता है। ऊंचाई और लंबाई को रामराज्य की सार्वभौमिकता और विस्तार का प्रतिनिधि कहा गया। ध्वज का केसरिया रंग साहस, ज्ञान और त्याग की एकीकृत परंपरा का प्रतीक है।

ध्वजा पर अंकित प्रतीक भारतीय समाज की उस वैचारिक भूमि को निरूपित करते हैं, जिसने युगों से संस्कृति को संभाले रखा। सूर्य धर्म और प्रकाश का प्रतीक है। ‘ॐ’ ध्वनि और ब्रह्म का स्वरूप है, वहीं कोविदार वृक्ष कर्तव्य, कृतज्ञता और विराट कल्याण का संदेश देता है। यही ध्वजा सदियों से भारतीय जीवन की संरचनाओं में मार्गदर्शक रही है।

अभिजीत मुहूर्त में शिखर पर फहराई धर्मध्वजा
अभिजीत मुहूर्त में शिखर पर फहराई धर्मध्वजा Photograph: (X)

मंदिर की वास्तुशिल्पीय विशेषताएँ,नागर व दक्षिण भारतीय शैलियों का समन्वित रूप

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर सिर्फ आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि वास्तुशिल्पीय चमत्कार भी है। इसका शिखर उत्तर भारतीय नागर शैली में निर्मित है, जो प्राचीन मंदिर स्थापत्य की परंपरा को आधुनिक स्वरूप में प्रस्तुत करता है। लगभग 800 मीटर लंबा परकोटा दक्षिण भारतीय स्थापत्य से प्रेरित है, जिसमें सुरक्षा, सुन्दरता और प्राचीनता तीनों का अनूठा समन्वय दिखाई देता है।

मुख्य मंदिर की बाहरी दीवारों पर वाल्मीकि रामायण से जुड़े 87 प्रसंग पत्थरों पर उकेरे गए हैं, जो मंदिर के प्रत्येक कदम को अध्यात्म की कथा में बदल देते हैं। घेरे की दीवारों पर भारतीय संस्कृति के 79 कांस्य-ढाल प्रसंग अंकित हैं, जो हजारों वर्षों की परंपरा को एक ही मार्ग में जीवंत कर देते हैं।

ध्वजारोहण पूर्व संध्या पर प्रकाश से जगमगाई अयोध्या,
ध्वजारोहण पूर्व संध्या पर प्रकाश से जगमगाई अयोध्या, Photograph: (X)

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