ढाका में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई, हजारों लोगों ने नम आंखों से दी श्रद्धांजलि
ढाका, 31 दिसंबर (हि.स.)। बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की अध्यक्ष Khaleda Zia को बुधवार को पूरे राजकीय और राजनीतिक सम्मान के साथ सुपुर्द-ए-खाक किया गया। दोपहर को ढाका के माणिक मिया एवेन्यू स्थित जातीय संसद भवन के साउथ प्लाजा में उनकी नमाज-ए-जनाजा अदा की गई, जिसके बाद उन्हें राजधानी के शेर-ए-बांग्ला नगर में अपने पति और बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति Ziaur Rahman की कब्र के पास दफन किया गया। इस मौके पर बांग्लादेश के अलग-अलग हिस्सों से आए हजारों शोकाकुल लोग मौजूद रहे और पूरे देश में शोक की लहर देखी गई।
बीमारी से लंबी जंग के बाद निधन
स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार 80 वर्षीय खालिदा जिया को 23 नवंबर को ढाका के एवरकेयर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह लंबे समय से दिल और फेफड़ों से जुड़ी गंभीर बीमारियों से पीड़ित थीं और निमोनिया से भी जूझ रही थीं। इसी वर्ष छह मई को लंदन में एडवांस मेडिकल केयर लेने के बाद स्वदेश लौटने के बाद से उनकी नियमित जांच चल रही थी। तमाम प्रयासों के बावजूद उन्होंने मंगलवार को अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन को बांग्लादेश की राजनीति के एक युग का अंत माना जा रहा है।
नमाज-ए-जनाजा में अंतरराष्ट्रीय उपस्थिति
खालिदा जिया की नमाज-ए-जनाजा दोपहर करीब 2:30 बजे बैतुल मोकर्रम नेशनल मस्जिद के खतीब मुफ्ती अब्दुल मालेक ने पढ़ाई। जनाजे में 32 से अधिक देशों के राजनयिक शामिल हुए, जो उनकी अंतरराष्ट्रीय पहचान और राजनीतिक कद को दर्शाता है। इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, यूरोपीय संघ, रूस, जापान, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया सहित एशिया, यूरोप और मध्य-पूर्व के कई देशों के राजदूत और उच्चायुक्त मौजूद रहे।
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भारत की ओर से शोक संदेश
भारत की ओर से विदेश मंत्री S. Jaishankar ने खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान से मुलाकात की और प्रधानमंत्री Narendra Modi का शोक संदेश सौंपा। भारत ने खालिदा जिया के निधन पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए इसे दक्षिण एशियाई राजनीति के लिए बड़ी क्षति बताया।
पारिवारिक जीवन और संघर्ष
खालिदा जिया अपने बड़े बेटे तारिक रहमान, उनकी पत्नी और बेटी को पीछे छोड़ गई हैं। तारिक रहमान 17 वर्षों के निर्वासन के बाद 25 दिसंबर को ही बांग्लादेश लौटे थे। उनके छोटे बेटे अराफात रहमान कोको का कुछ वर्ष पहले मलेशिया में निधन हो चुका था। परिवार के लिए यह समय गहरे शोक और भावनात्मक पीड़ा का है।
जलपाईगुड़ी से ढाका तक का सफर
खालिदा जिया का जन्म 1945 में जलपाईगुड़ी में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने दिनाजपुर मिशनरी स्कूल में प्राप्त की और 1960 में दिनाजपुर गर्ल्स स्कूल से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। उनके पिता इस्कंदर मजूमदार व्यवसाय से जुड़े थे, जबकि मां तैयबा मजूमदार गृहिणी थीं। ‘पुतुल’ के नाम से पहचानी जाने वाली खालिदा तीन बहनों और दो भाइयों में दूसरी संतान थीं। 1960 में उनका विवाह जिया-उर-रहमान से हुआ, जो उस समय पाकिस्तान सेना में कैप्टन थे।
राजनीति में प्रवेश और बीएनपी का नेतृत्व
1971 के मुक्ति युद्ध में जिया-उर-रहमान की भूमिका के बाद वे राष्ट्रीय नायक बने, लेकिन 30 मई 1981 को उनकी हत्या के बाद बीएनपी गहरे संकट में फंस गई। इसी दौर में खालिदा जिया ने राजनीति में कदम रखा। 12 जनवरी 1984 को वे पार्टी की उपाध्यक्ष बनीं और 10 मई 1984 को अध्यक्ष चुनी गईं। उन्होंने इरशाद शासन के खिलाफ बिना डरे आंदोलन का नेतृत्व किया और लोकतंत्र की बहाली के संघर्ष में प्रमुख चेहरा बनकर उभरीं।
पहली महिला प्रधानमंत्री बनने तक का सफर
1991 के आम चुनाव में बीएनपी बहुमत के साथ सत्ता में आई और 20 मार्च 1991 को खालिदा जिया ने बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। इसके बाद 1996 और 2001 में भी वे प्रधानमंत्री बनीं। 2001 में उनके नेतृत्व वाले गठबंधन ने दो-तिहाई बहुमत हासिल किया, जिसे उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक सफलता माना जाता है।
जेल, मुकदमे और अस्थायी रिहाई
राजनीतिक जीवन के अंतिम वर्षों में खालिदा जिया को कई कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 08 फरवरी 2018 को भ्रष्टाचार के एक मामले में उन्हें जेल भेजा गया। बाद में उनकी सजा बढ़ाई गई। कोरोना काल में 25 मार्च 2020 को उन्हें कुछ शर्तों के साथ अस्थायी रिहाई मिली और इसी वर्ष 06 अगस्त को उन्हें पूरी तरह से मुक्त किया गया।
संघर्ष और विरासत
खालिदा जिया का जीवन सत्ता, संघर्ष, जेल और जनआंदोलनों से भरा रहा। समर्थकों के लिए वे लोकतंत्र और साहस की प्रतीक रहीं, जबकि आलोचकों के लिए विवादों का केंद्र। बावजूद इसके, बांग्लादेश की राजनीति में उनका योगदान और प्रभाव अमिट माना जाता है। उनकी अंतिम विदाई के साथ ही देश ने एक ऐसी नेता को खो दिया, जिसने दशकों तक राजनीति की दिशा तय की।
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