तेल कंपनियों ने वैश्विक रुझानों के आधार पर की मासिक समीक्षा, महानगरों में दरें अलग-अलग

नई दिल्ली । सार्वजनिक क्षेत्र की तेल और गैस विपणन कंपनियों द्वारा विमान ईंधन (एविएशन टर्बाइन फ्यूल—एटीएफ) की कीमतों में 5.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी के हालिया फैसले ने देश में विमानन उद्योग के समक्ष नई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। वैश्विक कच्चे तेल बाजार में लगातार जारी उतार-चढ़ाव और विनिमय दर में बदलाव के चलते कंपनियों ने दिसंबर माह की शुरुआत में कीमतों की समीक्षा की और संशोधित दरें सोमवार से पूरे देश में लागू कर दी हैं।

एटीएफ की बढ़ी हुई लागत का सीधा असर विमानन कंपनियों के परिचालन खर्च पर पड़ता है, क्योंकि कुल ऑपरेटिंग लागत का करीब 40 प्रतिशत हिस्सा ईंधन पर निर्भर करता है। ऐसे में इस मूल्य वृद्धि के बाद एयरलाइंस की आय-व्यय संतुलन व्यवस्था और प्रभावित हो सकती है। हालांकि विमानन कंपनियों ने अभी तक किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं दी है, पर बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में किराए पर दबाव बढ़ सकता है।

दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में नई दरें अलग-अलग

तेल कंपनियों—इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम—द्वारा जारी ताज़ा दरों के अनुसार, चारों महानगरों में स्थानीय कर और वैट की वजह से एटीएफ की कीमतें भिन्न-भिन्न हैं।

नई दरें इस प्रकार हैं":

नई दिल्ली: बढ़ोतरी के बाद कीमत 99,676.77 रुपये प्रति किलोलीटर, जो कि पूर्व मूल्य से 5,133.75 रुपये अधिक है।

मुंबई: एटीएफ की नई दर 93,281.04 रुपये प्रति किलोलीटर।

चेन्नई: कीमत बढ़कर 1,03,301.80 रुपये प्रति किलोलीटर हो गई।

कोलकाता: एटीएफ की दर 1,02,371 रुपये प्रति किलोलीटर पर पहुँची।

स्थानीय कर संरचना में अंतर होने के कारण चारों महानगरों में कीमतें अलग-अलग बनी रहती हैं। उदाहरण के तौर पर कोलकाता में वैट की दर अधिक होने से वहां एटीएफ अक्सर अन्य शहरों की तुलना में महंगा रहता है।

वैश्विक तेल बाजार और विनिमय दरों से क्यों बढ़ती हैं कीमतें?

हर महीने की पहली तारीख को सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियाँ:

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत,

डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर,

ओपेक देशों की नीतियाँ,

वैश्विक मांग तथा आपूर्ति का संतुलन,

भूराजनीतिक परिस्थितियाँ

इन सभी पहलुओं का आकलन कर एटीएफ की दरों की समीक्षा करती हैं।

पिछले कुछ हफ्तों से कच्चे तेल की वैश्विक कीमतें ऊंचे स्तर पर बनी हुई हैं। विभिन्न देशों में सर्दियों की मांग बढ़ने, पश्चिम एशिया में तनावपूर्ण हालात और उत्पादन नियंत्रण जैसे कारकों ने अंतरराष्ट्रीय बाजार को प्रभावित किया है। इसके चलते भारतीय कंपनियों को भी लागत बढ़ने का सामना करना पड़ रहा है।

क्या हवाई किराया बढ़ सकता है? एयरलाइंस पर पड़ने वाला असर

एटीएफ की कीमतों में हुई अतिरिक्त बढ़ोतरी विमानन कंपनियों के राजस्व मॉडल के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
सामान्य तौर पर:

ईंधन खर्च विमानन कंपनियों की कुल लागत का 35-40 प्रतिशत होता है।

एटीएफ की कीमत बढ़ने से ऑपरेटिंग कॉस्ट सीधे प्रभावित होता है।

लंबे समय तक उच्च कीमतें रहने पर कंपनियों को किराए बढ़ाने पड़ते हैं।

यही वजह है कि विशेषज्ञों का मानना है कि यदि एटीएफ की कीमतों में यह तेजी आगे भी जारी रही, तो कंपनियाँ त्योहारों और पर्यटन सीजन में किराए में एक मामूली लेकिन प्रभावी बढ़ोतरी कर सकती हैं।

हालांकि, अभी एयरलाइंस की ओर से किसी भी प्रकार की टिप्पणी नहीं आई है। कई बार कंपनियाँ प्रतिस्पर्धा के कारण किराए तुरंत नहीं बढ़ातीं और लागत को कुछ समय तक समायोजित करती हैं।

यात्री पर बोझ या उद्योग का संकट? दोनों पक्षों के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति

इस समय विमानन बाजार में प्रतिस्पर्धा अनेक स्तरों पर है:

कई नए लो-कॉस्ट कैरियर उभर रहे हैं,

इंडिगो की बाजार हिस्सेदारी लगातार मजबूत है,

एयर इंडिया बड़े पुनर्गठन चरण में है,

अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर भी प्रतिस्पर्धा बढ़ी है।

ऐसे में एटीएफ मूल्य वृद्धि से.

लो-कॉस्ट एयरलाइंस पर सबसे अधिक दबाव पड़ता है,

नियमित मार्गों पर लाभप्रदता कम होती है,

नई रूट प्लानिंग में कठिनाई बढ़ती है,

कुल परिचालन लागत बढ़ने से कैश फ्लो प्रभावित होता है।

यात्री स्तर पर भी यह स्थिति राहत देने वाली नहीं है, क्योंकि महंगे किराए अंततः यात्रा की योजना और हवाई यात्रा की सुलभता को प्रभावित करते हैं।

एटीएफ की कीमतों में 5.4% की वृद्धि सिर्फ एक संख्या नहीं है, बल्कि भारतीय विमानन उद्योग के लिए बढ़ती वित्तीय चुनौतियों का संकेत भी है। यह मामला नीतिगत स्तर से लेकर आम यात्रियों तक हर किसी को प्रभावित करता है। आने वाले सप्ताहों में एयरलाइंस की प्रतिक्रिया और हवाई किराए की संभावित दिशा पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।

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