प्रधान न्यायाधीश को पैनल से हटाने के फैसले के खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल
नई दिल्ली। भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया में प्रधान न्यायाधीश की भूमिका खत्म करने के केंद्र सरकार के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इस मामले पर अब सर्वोच्च न्यायालय 14 मई को सुनवाई करेगा। यह सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष होगी।
ADR और जया ठाकुर सहित कई याचिकाएं
इस प्रकरण में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के अलावा कांग्रेस नेता जया ठाकुर और सुप्रीम कोर्ट के कई वकीलों ने याचिकाएं दाखिल की हैं। याचिकाओं में यह मांग की गई है कि CEC और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करने वाली चयन समिति में देश के प्रधान न्यायाधीश को शामिल किया जाए, जिससे निष्पक्षता और पारदर्शिता बनी रहे।
क्या है याचिकाओं की मूल मांग?
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जिसकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता लोकतंत्र की आत्मा है। ऐसे में, CEC की नियुक्ति केवल सरकार के हाथ में छोड़ना संविधान की भावना के विपरीत है। इसलिए, सुप्रीम कोर्ट को इस नए कानून पर रोक लगानी चाहिए और पुराने फैसले को बहाल रखना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का पुराना फैसला और केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च 2023 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा था कि CEC की नियुक्ति एक समिति द्वारा की जाए, जिसमें प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और भारत के प्रधान न्यायाधीश शामिल हों। लेकिन इसके कुछ महीनों बाद केंद्र सरकार ने इस निर्णय को दरकिनार करते हुए एक नया कानून बना दिया। इस नए कानून में प्रधान न्यायाधीश की जगह एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री को शामिल कर दिया गया, जिससे न्यायिक सहभागिता पूरी तरह खत्म हो गई।
नए CEC की नियुक्ति ने उठाए सवाल
केंद्र सरकार ने 18 फरवरी 2024 को ज्ञानेश कुमार को नया मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया। यह नियुक्ति इसी नई कानून व्यवस्था के तहत की गई, जिससे विवाद और बढ़ गया है। अब सुप्रीम कोर्ट में यह बहस छिड़ गई है कि क्या यह कानून संविधान की मूल भावना के अनुरूप है या नहीं।
क्यों है यह मामला अहम?
यह मामला सिर्फ एक नियुक्ति प्रक्रिया का नहीं, बल्कि भारत के लोकतंत्र की बुनियादी पारदर्शिता और निष्पक्षता का प्रश्न है। अगर चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न लगे, तो पूरा लोकतांत्रिक ढांचा अस्थिर हो सकता है। इसलिए इस सुनवाई को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
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