प्रयागराज महाकुंभ की तैयारियां अपने अंतिम चरण में हैं, और इस बार 13 जनवरी से शुरू होने वाले महाकुंभ में पुण्य का भागी बनने के लिए दुनियाभर से नागा और अघोरी साधु संगम की पवित्र भूमि पर पहुंच रहे हैं। हालांकि, अक्सर इन्हें एक ही समझा जाता है, लेकिन नागा और अघोरी साधुओं की तपस्या, जीवनशैली, खान-पान, और साधना के तरीके में गहरा अंतर होता है। इन दोनों ही साधुओं का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव की आराधना और उसकी शक्ति को प्राप्त करना है, लेकिन इनकी साधना पद्धतियाँ और जीवन के विभिन्न पहलुओं में भिन्नता देखने को मिलती है।
नागा साधु:
12 वर्षों की कठोर तपस्या:
नागा साधु बनने के लिए साधकों को लगभग 12 वर्षों तक कठोर तपस्या करनी पड़ती है। इस तपस्या में शारीरिक, मानसिक और आत्मिक कठिनाइयाँ होती हैं, जिन्हें पार कर साधु अपने उद्देश्य में सफल होते हैं। नागा साधु अधिकतर अखाड़ों से जुड़े होते हैं और इनका मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा करना और समाज में शास्त्रों का प्रचार करना होता है।
नागा का अर्थ:
‘नागा’ शब्द संस्कृत के ‘नागा’ से लिया गया है, जिसका अर्थ पहाड़ होता है। यह शब्द इस बात का प्रतीक है कि नागा साधु किसी पहाड़ की तरह दृढ़ और अडिग होते हैं। वे भस्म से अपने शरीर को ढंकते हैं, जो उन्हें भव्यता और शक्ति का प्रतीक प्रदान करता है।
आहार और जीवनशैली:
नागा साधु शाकाहारी भी हो सकते हैं, लेकिन कुछ मांसाहारी भी होते हैं। वे कठोर साधना करते हैं, परंतु सामान्य जीवनशैली से दूर रहते हैं और संयमित आहार ही उनका प्रमुख हिस्सा होता है। इसके अलावा, वे बहुत सी कठिन प्रथाओं में भाग लेते हैं, जैसे कठोर तपस्या और शास्त्रों के अध्ययन के लिए समय बिताना।
अघोरी साधु:
अघोरी शब्द का अर्थ:
‘अघोरी’ शब्द का संस्कृत में अर्थ ‘उजाले की ओर’ होता है। अघोरी साधु शिव के परम भक्त माने जाते हैं और उनका जीवन बहुत रहस्यमयी और अनोखा होता है। वे अपनी साधना में कुछ ऐसी प्रथाओं का पालन करते हैं, जो सामान्य जीवनशैली से बहुत अलग होती हैं। अघोरी साधु विशेष रूप से श्मशान घाटों में रहते हैं, और उनका मुख्य कार्य मृत्यु, शिव और तामसिक सिद्धियों के आसपास केंद्रित होता है।
मानव खोपड़ी का प्रतीक:
अघोरी साधु अपनी भक्ति को एक अद्वितीय तरीके से प्रदर्शित करते हैं, और उनका सबसे बड़ा प्रतीक एक मानव खोपड़ी होती है, जो उनके साथ हमेशा रहती है। यह खोपड़ी उनके विश्वास और शिव के प्रति उनकी भक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
आहार और जीवनशैली:
अघोरी साधु श्मशान की राख से अपने शरीर को ढंकते हैं और अक्सर भूत-प्रेतों से जुड़ी प्रथाओं का पालन करते हैं। उनका आहार और जीवनशैली भी अजीबोगरीब होती है। कुछ अघोरी साधु मांसाहारी होते हैं और शिकार या मृत जानवरों का मांस खाते हैं। उनका जीवन प्राकृतिक सिद्धियों और जीवन-मृत्यु के पारलौकिक पहलुओं से संबंधित होता है।
नागा और अघोरी साधुओं के बीच अंतर:
- नागा साधु धर्म और समाज की सेवा में लगे रहते हैं, जबकि अघोरी साधु मृत्यु, तामसिक शक्तियों और पारलौकिक सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए अपनी साधना करते हैं।
- नागा साधु अखाड़ों से जुड़े होते हैं, जबकि अघोरी साधु श्मशान घाटों में रहते हैं और उनकी साधना बहुत रहस्यमयी और भयावह होती है।
- नागा साधु का आहार शाकाहारी भी हो सकता है, लेकिन कुछ मांसाहारी होते हैं। वहीं, अघोरी साधु मांसाहारी होते हैं और अधिकतर तामसिक आहार का सेवन करते हैं।
- नागा साधु के शरीर पर भस्म होती है, जबकि अघोरी साधु अपने शरीर को श्मशान की राख से ढकते हैं और मानव खोपड़ी अपने साथ रखते हैं।
निष्कर्ष:
नागा और अघोरी साधु दोनों ही शिव के परम भक्त होते हैं, लेकिन उनके साधना के तरीकों, जीवनशैली और खानपान में विभिन्नताएँ होती हैं। महाकुंभ के इस पवित्र आयोजन में इनकी उपस्थिति एक विशेष आध्यात्मिक अर्थ रखती है, क्योंकि वे दोनों अपनी कठिन साधना और तपस्या के जरिए जीवन के गहरे सत्य और शिव की शक्ति को समझने की कोशिश करते हैं।