नई दिल्ली।
वक्फ कानून में किए गए हालिया संशोधन को लेकर देश में सियासी और कानूनी जंग तेज होती जा रही है। सोमवार को जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह किया कि इस कानून के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई की जाए। यह मामला प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष उठाया गया।
कपिल सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि यह केवल कानूनी नहीं बल्कि सांस्कृतिक और संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा मामला है, जिस पर न्यायालय को शीघ्र ध्यान देना चाहिए। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि जल्दी सुनवाई की मांग के लिए पहले से प्रक्रिया तय है, इसलिए इसे कोर्ट में मौखिक रूप से दोहराने की ज़रूरत नहीं थी। उन्होंने भरोसा दिलाया कि दोपहर बाद संबंधित अनुरोधों को देखकर इस पर उचित फैसला लिया जाएगा।
अब तक दर्जनों याचिकाएं दाखिल
अब तक इस संशोधन के खिलाफ एक दर्जन से अधिक याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं। इनमें प्रमुख याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, दिल्ली से आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान और जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसी संस्थाएं शामिल हैं। इन सभी ने इस संशोधन को मुस्लिम समुदाय के धार्मिक, सांस्कृतिक और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करार दिया है।
क्या कहती हैं याचिकाएं?
याचिकाओं का मुख्य तर्क है कि—
- वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सरकारी दखल बढ़ाया जा रहा है।
- यह अल्पसंख्यकों की स्वायत्तता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर आघात है।
- संशोधन के ज़रिए वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को खत्म करने की कोशिश की गई है।
- यह कानून मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभावपूर्ण है और भारत के संविधान में गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का हनन करता है।
ओवैसी की याचिका में विशेष रूप से कहा गया है कि वक्फ संशोधन कानून मुस्लिमों के आस्था और धार्मिक संस्थानों पर प्रतिबंध लगाता है और यह संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 29 के विपरीत है।
क्यों अहम है यह मुद्दा?
वक्फ संपत्तियां भारत में मुस्लिम समाज की सामाजिक, धार्मिक और शैक्षिक गतिविधियों की रीढ़ मानी जाती हैं। इन संपत्तियों का प्रबंधन लंबे समय से वक्फ बोर्डों के ज़रिए होता रहा है। सरकार द्वारा इन नियमों में बदलाव करना समुदाय के बीच संवेदनशीलता और चिंता का विषय बन गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कोर्ट इस पर जल्द सुनवाई करता है तो यह मामला भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों की परिभाषा को कानूनी दृष्टि से फिर से निर्धारित कर सकता है।
आगे क्या?
सर्वोच्च न्यायालय के रुख पर अब सभी की निगाहें टिकी हैं। क्या कोर्ट इन याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई की अनुमति देगा? क्या यह मामला संविधान पीठ को सौंपा जाएगा? और सबसे अहम, क्या संशोधित वक्फ कानून की वैधता पर सवाल खड़े होंगे—इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में देश की राजनीति और समाज दोनों पर असर डाल सकते हैं।
स्वदेश ज्योति के द्वारा
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