नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश के खिलाफ लोकपाल द्वारा दिए गए आदेश पर रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में गहरी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने स्वत: संज्ञान लेते हुए इस मामले में केंद्र सरकार, लोकपाल रजिस्ट्रार और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया है।
मामले की पृष्ठभूमि
लोकपाल ने उच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश के खिलाफ एक शिकायत पर सुनवाई की थी। यह पहला मौका है जब लोकपाल ने किसी उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत पर विचार किया। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने गहरी नाराजगी जताई और इसे “बेहद परेशान करने वाली बात” बताया।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ, जिसमें जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अभय एस. ओक शामिल थे, ने लोकपाल द्वारा इस मामले की सुनवाई पर कड़ी आपत्ति जताई। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि जिस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई है, उनके नाम का खुलासा न किया जाए और इसे गोपनीय रखा जाए।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश कभी भी लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है कि इस मामले में न्यायाधीशों को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाए।
केंद्र सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार, लोकपाल रजिस्ट्रार और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया है और उनसे जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि क्या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भारत के लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में आते हैं या नहीं। यह एक महत्वपूर्ण संवैधानिक सवाल बन गया है, क्योंकि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता और कार्यपालिका की शक्तियों से संबंधित है।
लोकपाल की शक्तियों पर सवाल
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 का उद्देश्य भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करना और सार्वजनिक पदों पर बैठे व्यक्तियों की जवाबदेही तय करना है। हालांकि, न्यायपालिका की स्वतंत्रता को देखते हुए, इसमें उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को लोकपाल के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया है।
अब सवाल यह उठता है कि लोकपाल ने उच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत पर सुनवाई क्यों की और क्या यह उसकी शक्तियों का अतिक्रमण है? सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई 18 मार्च को करेगा।
यह मामला न्यायपालिका की स्वतंत्रता, संविधान में निर्धारित शक्तियों के विभाजन और लोकपाल की अधिकार सीमा से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले पर लिया गया निर्णय भविष्य में न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों को निपटाने की प्रक्रिया को भी प्रभावित कर सकता है। अगली सुनवाई के दौरान इस मुद्दे पर और अधिक स्पष्टता आने की संभावना है।