सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें हाईकोर्ट ने कहा था कि “नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट पकड़ना और उसके पायजामे के नाड़े को तोड़ना, रेप या ‘अटेम्प्ट टू रेप’ (बलात्कार की कोशिश) नहीं माना जा सकता।” इस फैसले को लेकर व्यापक आलोचना हुई थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए इस पर सुनवाई करने का निर्णय लिया।
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने बुधवार को इस मामले की सुनवाई की और हाईकोर्ट के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई। बेंच ने कहा कि “हाईकोर्ट के आदेश में की गई कुछ टिप्पणियां पूरी तरह से असंवेदनशील और अमानवीय मानसिकता को दर्शाती हैं।”
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
बेंच ने फैसले को बताया असंवेदनशील
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने हाईकोर्ट के फैसले को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा,
“यह मामला बेहद गंभीर है, और जिस न्यायाधीश ने यह फैसला दिया, उन्होंने संवेदनशीलता की पूरी तरह से अनदेखी की। हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि इस फैसले में न्यायिक दृष्टिकोण की भारी कमी रही है।”
सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सही ठहराया
इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के रुख का समर्थन किया। उन्होंने कहा,
“कुछ फैसले ऐसे होते हैं, जिन पर तत्काल रोक लगाना आवश्यक होता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पूरी तरह से उचित है।”
सुप्रीम कोर्ट ने खुद लिया संज्ञान
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई करने का फैसला किया था। इससे पहले, मंगलवार को शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्वयं ही ध्यान दिया और इस पर विचार करने का निर्णय लिया।
इस फैसले के खिलाफ कानूनी विशेषज्ञों, महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, राजनीतिक दलों और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने कड़ा विरोध जताया था। हालांकि, पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दायर एक याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें हाईकोर्ट के विवादास्पद हिस्से को हटाने की मांग की गई थी। लेकिन बढ़ते विरोध को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने खुद इस मुद्दे पर सुनवाई करने का फैसला किया।
हाईकोर्ट के फैसले पर विवाद क्यों?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि:
“किसी लड़की के निजी अंगों को छूना, उसके पायजामे का नाड़ा खोलना और जबरदस्ती पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना, रेप या अटेम्प्ट टू रेप की परिभाषा में नहीं आता।”
हाईकोर्ट की इस टिप्पणी को लेकर देशभर में आक्रोश देखने को मिला। कई कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों ने इसे पीड़िता के अधिकारों के खिलाफ बताया और इस पर पुनर्विचार की मांग की।
अब आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद अब इस मामले में हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लग गई है। कोर्ट ने सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है, जिसके बाद आगे की कानूनी प्रक्रिया तय होगी।
इस मामले ने भारतीय न्याय व्यवस्था में लैंगिक संवेदनशीलता को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है। अब सभी की नजरें इस पर रहेंगी कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में आगे क्या रुख अपनाता है।
स्वदेश ज्योति के द्वारा
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