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April 18, 2025 3:48 PM

दक्षिण में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की बहादुर सेनानी रानी अब्बक्का

  • हरमन
    देवी अहिल्या व रानी लक्ष्मीबाई की गाथाएं सुनने वाले उत्तर भारत में आमतौर पर अनाम महारानी अब्बक्का चर्चाओं में हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बेंगलुरू में आयोजित प्रतिनिधि सभा में उनकी 500 वीं जयंती मनाने की घोषणा की गई है जिसके बाद दक्षिण की इस रानी के शौर्य, स्वाभिमान और बुद्धिमत्ता की कहानी के पन्ने अब फिर से पलटे जा रहे हैं। दक्षिण के कई स्वतंत्रता सेनानियों और महापुरुषों की इतिहास में छुपी या शेष भारत में अज्ञात कहानियों को सामने लाने का यह स्वर्णिम समय है। झांसी की रानी साहस का प्रतीक बन गई हैं, उनके 300 वर्ष पूर्व हुई अब्बक्का को इतिहास भूल गया है अपनी बहादुरी के कारण वह ‘अभया रानी’ के नाम से विख्यात थीं। औपनिवेशक शक्तियों के विरुद्ध लड़ने वाले बहुत अल्प भारतीयों में से वह एक थीं तथा प्रथम भारतीय स्वतंत्रता सेनानी मानी जाती थीं ।
    महारानी अब्बक्का को कर्नाटक के नगर उल्लाल में बहुुत याद किया जाता है। हर वर्ष उनकी स्मृति में ‘वीर रानी अब्बक्का उत्सव’ मनाया जाता है। ‘वीर रानी अब्बक्का प्रशस्ति’ पुरस्कार किसी अद्वितीय महिलाको दिया जाता है । 15 जनवरी 200 को डाक विभागने एक विशेष कवर जारी किया। अब लोग बाजपे हवाई अड्डे तथा एक नौसैनिक पोत को रानी का नाम देने की मांग कर रहे हैं । उल्लाल तथा बंगलुरू में रानी की कांस्य प्रतिमा स्थापित की गई है । ‘कर्नाटक इतिहास अकादमी ’ने राज्य की राजधानी के ‘क्वीन्स रोड’ को ‘रानी अब्बक्का देवी रोड’ नाम देने की मांग की है ।
    पारंपारिक कथनानुसार वह बहुत ही लोकप्रिय रानी थीं, जिसका पता इस बात से चलता है कि वह आज भी लोक साहित्य का एक हिस्सा हैं। रानी की कहानी पीढी-दर-पीढी लोकसंगीत तथा यक्षगान (जो तमिलुनाडु का लोकप्रिय थिएटर है) द्वारा पुन:पुन: दोहराई जाती है। भूटा कोला एक स्थानीय नृत्य प्रकार है, जिसमें अब्बक्का महादेवी के महान कारनामे दिखाए जाते थे ।
    अब्बक्का सांवले रंग की, दिखने में बडी सुंदर थीं और सदैव सामान्य व्यक्ति जैसे वस्त्र पहनती थीं । उन्हें अपनी प्रजा की बडी चिंता थी तथा न्याय करने हेतु देर रात तक व्यस्त रहती थीं । किंवदंतियों के अनुसार ‘अग्निबाण’ का उपयोग करने वाली वह अंतिम व्यक्ति थीं। कुछ जानकारी के अनुसार रानकी दो बहादुर बेटियां थीं, जो पुर्तगालियों के विरुद्ध उनके साथ-साथ लड़ी थीं । परंपराओं के अनुसार तीनों-मां तथा दोनों बेटियां एक ही मानी जाती हैं ।
    वर्ष 1525 में जन्मी रानी अब्बक्का बंट अथवा अब्बक्का महादेवी तुलुनाडू (तटीय कर्नाटक) की रानी थीं जिन्होंने 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पुर्तगालियों के साथ युद्ध किया। बंदरगाह शहर उल्लाल उनकी सहायक राजधानी था। 1555 में पुर्तगाली सेना कालीकट, बीजापुर, दमन, मुंबई जीतते हुए गोवा को अपना हेडक्वार्टर बना चुकी थी। टक्कर में किसी को न पाकर उन्होंने पुराने कपिलेश्वर मंदिर को ध्वस्त कर उस पर चर्च स्थापित कर डाला। मंगलौर का व्यावसायिक बंदरगाह अब उनका अगला निशाना था। उनकी बदकिस्मती थी कि वहाँ से सिर्फ 14 किलोमीटर पर ‘उल्लाल’ राज्य था जहां की शासक थी 30 साल की रानी अब्बक्का चौटा।
    पुर्तगालियों ने उल्लाल जीतने के कई प्रयास किए, क्योंकि रणनीति की दृष्टिसे वह बहुत महत्वपूर्ण था। किंतु लगभग चार दशकों तक अब्बक्का ने उन्हें हर समय खदेड़कर भगा दिया। रानी अब्बक्का भले ही एक छोटे राज्य उल्लाल की रानी थीं, वह एक अदम्य साहस एवं देशभक्ति महिला थीं। पुर्तगालियों के साथ उनकी साहसपूर्ण लडाईयों का ब्योरा ठीकसे नहीं रखा गया किंतु जो भी उपलब्ध है, उससे इस उत्तुंग, साहसी एवं तेजस्वी व्यक्तित्व का पता चलता है।
    उनका विवाह पडोस के बांघेर के राजा के साथ हुआ किंतु यह विवाह अधिक चला नहीं तथा अब्बक्का पति द्वारा दिए हीरे-जवाहरात लौटाकर घर आ गईं। पति ने उनसे प्रतिशोध लेने हेतु तथा उनसे युद्ध करने हेतु एक संधिमें पुर्तगालियों से हाथ मिलाया ।
    अब्बक्का भले ही जैन थीं, उनके शासनमें हिंदू एवं मुसलमानों का अच्छा प्रतिनिधित्व था ।
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