भोपाल।
राजधानी के कोलार क्षेत्र में एक बड़ी धोखाधड़ी का मामला सामने आया है। पुणे स्थित एक कंपनी ने जमीन के नामांतरण के लिए 110 करोड़ रुपये के लोन की जाली एनओसी पेश की। इस फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद पुलिस ने कंपनी के दो निदेशकों के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर लिया है।
कैसे सामने आया मामला?
कोलार थाने के एसआई मनोज यादव ने बताया कि पुणे की एक कंपनी के निदेशक राजेश जैन और राधिका जैन ने बावड़िया इलाके में कई साल पहले जमीन खरीदी थी। इस जमीन का एक हिस्सा रामसिंह नामक व्यक्ति का था। रामसिंह को जमीन की बिक्री का पूरा पैसा नहीं मिला था, जिसकी वजह से उसने जमीन के क्रय-विक्रय पर आपत्ति दर्ज कराई थी।
इस बीच, कंपनी ने उस जमीन पर तीन अलग-अलग कंपनियों से 110 करोड़ रुपये का लोन ले लिया। बाद में, राजेश और राधिका जैन ने इस जमीन को किसी अन्य व्यक्ति को बेचने की योजना बनाई।
नामांतरण के लिए फर्जी एनओसी पेश की
जमीन बेचने से पहले नामांतरण आवश्यक था। इसके लिए कंपनी ने कोलार तहसील कार्यालय में आवेदन किया। तहसीलदार कार्यालय ने नामांतरण प्रक्रिया पूरी करने के लिए जमीन पर लिए गए लोन की एनओसी प्रस्तुत करने को कहा।
एनओसी की मांग पर, कंपनी ने उन तीन कंपनियों की ओर से फर्जी एनओसी तैयार कर तहसील कार्यालय में जमा कर दी, जिनसे उन्होंने लोन लिया था। यह कदम तहसील कार्यालय और लोनदाताओं को धोखा देने की एक कोशिश थी।
रामसिंह ने दी पुलिस में शिकायत
रामसिंह को जब इस फर्जीवाड़े की जानकारी मिली, तो उसने तुरंत कोलार थाने में शिकायत दर्ज कराई। शिकायत की जांच के दौरान फर्जी एनओसी के तथ्य सामने आए। जांच के बाद पुलिस ने राजेश जैन, राधिका जैन और अन्य आरोपियों के खिलाफ धोखाधड़ी और फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत करने का प्रकरण दर्ज कर लिया है।
पुलिस की कार्रवाई
पुलिस ने बताया कि यह मामला जालसाजी और धोखाधड़ी का है, जिसमें सरकारी प्रक्रिया को गुमराह करने के लिए फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया। फिलहाल, पुलिस आरोपियों की तलाश कर रही है और इस पूरे मामले की विस्तृत जांच जारी है।
गंभीर सवाल खड़े करता है मामला
इस घटना ने भूमि क्रय-विक्रय और नामांतरण प्रक्रिया में पारदर्शिता की आवश्यकता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। फर्जी एनओसी प्रस्तुत कर सरकारी कार्यालयों को गुमराह करना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह समाज में भूमि विवादों को और अधिक जटिल बना सकता है।
इस घटना ने दिखाया है कि किस प्रकार निजी कंपनियां अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए फर्जी दस्तावेजों का सहारा लेती हैं। प्रशासन को चाहिए कि वह ऐसे मामलों में सख्त कदम उठाए और भूमि संबंधित प्रक्रियाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करे। पुलिस इस मामले की जांच कर रही है और उम्मीद है कि जल्द ही दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी।