पटना, 6 जनवरी: बीपीएससी (Bihar Public Service Commission) के अभ्यर्थियों के समर्थन में 2 जनवरी से आमरण अनशन पर बैठे जनसुराज पार्टी के नेता और सूत्रधार प्रशांत किशोर को पटना पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, जिसके बाद सियासी हलकों में हड़कंप मच गया। इस गिरफ्तारी के बाद नीतीश सरकार और पुलिस के खिलाफ जनसुराज पार्टी के नेता और समर्थक विरोध प्रदर्शन करने लगे।
प्रशांत किशोर की गिरफ्तारी और आरोप
पटना पुलिस ने प्रशांत किशोर पर सरकारी काम में बाधा डालने और बिना अनुमति धरना प्रदर्शन करने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ मामला दर्ज किया। इसके बाद अदालत में मामले की सुनवाई हुई, जिसमें प्रशांत किशोर को पीआर बॉन्ड पर जमानत दी गई। हालांकि, प्रशांत किशोर ने जमानत की शर्तों को मानने से इनकार कर दिया और कोर्ट से साफ तौर पर कहा कि उन्हें किसी भी शर्त पर बेल नहीं चाहिए। उन्होंने अदालत में यह भी कहा कि धरना प्रदर्शन करना उनका अधिकार है और यह एक सामाजिक कारण के लिए किया जा रहा है, जिससे लोगों के हित में काम हो।
कोर्ट की प्रतिक्रिया और जेल भेजना
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि प्रशांत किशोर पीआर बॉन्ड और 25 हजार का निजी मुचलका नहीं भरेंगे, तो उन्हें जेल भेजा जाएगा। इसके बाद प्रशांत किशोर को बेउर जेल भेजा गया, लेकिन कुछ देर बाद ही पुलिस ने कोर्ट के आदेश में संशोधन किया और उन्हें जमानत दे दी। कोर्ट ने शर्तों को हटा दिया और प्रशांत किशोर को रिहा कर दिया।
गिरफ्तारी के दौरान दुर्व्यवहार के आरोप
प्रशांत किशोर के समर्थकों ने दावा किया कि उनकी गिरफ्तारी के दौरान उन्हें थप्पड़ मारा गया और उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया। उन्हें मेडिकल जांच के लिए पटना के एम्स अस्पताल ले जाया गया, लेकिन पहले उन्होंने जांच कराने से मना कर दिया। हालांकि, इस मुद्दे ने जल्द ही एक नया मोड़ लिया जब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया।
सर्वोच्च न्यायालय में मामला
सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई है, जिसमें 13 दिसंबर को हुई परीक्षा को रद्द करने और प्रदर्शनकारियों पर अत्यधिक बल प्रयोग करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जा रही है। इस याचिका में यह भी कहा गया कि पुलिस ने गिरफ्तार करने के बाद अत्यधिक बल प्रयोग किया, जिसके कारण यह मामला और जटिल हो गया।
प्रशांत किशोर का संघर्ष और राजनीतिक असर
प्रशांत किशोर ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि उनका उद्देश्य बिहार में शिक्षा प्रणाली की खामियों और बीपीएससी अभ्यर्थियों के अधिकारों की रक्षा करना है। वे पहले भी कई सामाजिक मुद्दों पर मुखर रहे हैं और जनसुराज पार्टी के माध्यम से राज्य सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। उनकी गिरफ्तारी और उसके बाद का घटनाक्रम इस पूरे विवाद को और भी गहरा कर गया है और राजनीतिक दृष्टिकोण से यह मामला महत्वपुर्ण बन गया है।
सियासी प्रतिक्रियाएँ
प्रशांत किशोर की गिरफ्तारी और रिहाई को लेकर राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएँ दी हैं। जनसुराज पार्टी और प्रशांत किशोर के समर्थक इसे एक बड़ा आंदोलन मान रहे हैं, जबकि विरोधी पार्टियाँ इसे नीतीश सरकार के खिलाफ एक सियासी चाल के रूप में देख रही हैं। इस पूरे घटनाक्रम ने बिहार में सियासत को और भी गर्मा दिया है, और यह मुद्दा आगे भी राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
यह घटना न केवल प्रशांत किशोर के लिए, बल्कि बिहार के राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य में भी एक नया मोड़ साबित हो सकती है।