केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी अपने बेबाक बयानों के लिए जाने जाते हैं। शनिवार को नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने जाति और धर्म को लेकर एक जोरदार बयान दिया, जो अब सुर्खियों में छाया हुआ है। गडकरी ने कहा, "जो करेगा जात की बात, उसको मारूंगा कस के लात।" उनके इस बयान की राजनीतिक गलियारों में चर्चा हो रही है और इसे सामाजिक समरसता के समर्थन में दिया गया बयान माना जा रहा है।
जाति और धर्म की राजनीति से दूरी की बात
नागपुर के एक अल्पसंख्यक संस्थान में आयोजित दीक्षांत समारोह में नितिन गडकरी ने यह बयान दिया। उन्होंने कहा कि वह सार्वजनिक रूप से जाति और धर्म की राजनीति में विश्वास नहीं रखते और समाजसेवा को सबसे ऊपर मानते हैं। गडकरी ने यह भी कहा कि वह सिद्धांतों से समझौता करने वालों में से नहीं हैं।
गडकरी ने कहा, "चाहे चुनाव हार जाऊं या मंत्री पद चला जाए, मैं अपने सिद्धांतों पर अटल रहूंगा। अगर मंत्री पद नहीं मिला तो मैं मर नहीं जाऊंगा।" उनका यह बयान उन लोगों के लिए एक संदेश माना जा रहा है जो जाति और धर्म के आधार पर राजनीति करते हैं।
बयान पर बढ़ी राजनीतिक चर्चा
गडकरी का यह बयान ऐसे समय आया है जब देश में जातिगत राजनीति पर लगातार बहस हो रही है। विपक्ष और कई राजनीतिक दल जातिगत जनगणना और आरक्षण जैसे मुद्दों को लेकर सक्रिय हैं। गडकरी के इस बयान के बाद इसे एक सख्त चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है।
गडकरी पहले भी कई बार स्पष्ट कर चुके हैं कि वह विकास और जनसेवा को प्राथमिकता देते हैं, न कि जाति और धर्म के आधार पर राजनीति को। उनका कहना है कि किसी भी समाज की प्रगति उसके नागरिकों की एकता और आपसी भाईचारे पर निर्भर करती है, न कि विभाजनकारी राजनीति पर।
गडकरी का सादा जीवन और बेबाकी
नितिन गडकरी को उनकी सादगी और ईमानदारी के लिए जाना जाता है। वे अपनी स्पष्टवादिता और निष्पक्ष विचारधारा के लिए अक्सर चर्चाओं में रहते हैं। कई मौकों पर वे खुद को एक उद्यमी और समाजसेवी के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो राजनीति में जनहित के लिए आया है।
उनका कहना है कि राजनीति "राज करने का माध्यम नहीं, बल्कि समाजसेवा का जरिया होनी चाहिए।" उनका यह बयान भी इसी विचारधारा को दर्शाता है कि वह जाति और धर्म से ऊपर उठकर राष्ट्रहित और समाज के कल्याण की राजनीति में विश्वास रखते हैं।
क्या इस बयान के राजनीतिक मायने हैं?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गडकरी का यह बयान बीजेपी की ‘सबका साथ, सबका विकास’ नीति को दर्शाने का प्रयास है। हालांकि, उनके इस बयान को लेकर विपक्षी दल क्या रुख अपनाते हैं, यह देखने वाली बात होगी। विपक्षी पार्टियां गडकरी के इस बयान को अलग तरीके से भी पेश कर सकती हैं।
नितिन गडकरी का यह बयान समाज को जातिवादी राजनीति से दूर रहने का संदेश देता है। उन्होंने साफ किया कि जाति और धर्म के नाम पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, बल्कि समाजसेवा और विकास प्राथमिकता होनी चाहिए। उनके इस बयान की व्यापक प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है, और यह निश्चित रूप से आने वाले समय में एक बड़ी राजनीतिक बहस का मुद्दा बन सकता है।
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