July 5, 2025 4:13 PM

वन संरक्षण और जलवायु समर्थ आजीविका पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

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भोपाल में दो दिवसीय आयोजन, केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव बोले- अब हर जगह प्लास्टिक और कचरा ही दिखता है

भोपाल। भारतीय पारंपरिक ज्ञान, वन संरक्षण और जनजातीय समाज की आजीविका को केंद्र में रखते हुए भोपाल स्थित नरोन्हा प्रशासन अकादमी में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्घाटन मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने किया। आयोजन में जनजातीय कार्य मंत्री डॉ. विजय शाह, महिला बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया, केंद्रीय राज्य मंत्री दुर्गादास उईके और खरगोन सांसद गजेंद्र सिंह पटेल भी उपस्थित रहे।

नीति, संस्थागत निर्माण और सफलता की कहानियां

केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव ने बताया कि यह कार्यशाला तीन प्रमुख विषयों पर केंद्रित है—

  1. नीतिगत मुद्दे: जिसमें फॉरेस्ट राइट्स एक्ट, वन नीति और जैव विविधता अधिनियम में संभावित संशोधनों पर चर्चा हो रही है।
  2. संस्थागत निर्माण: इसमें त्रिफेड सहित अन्य योजनाओं को शामिल किया गया है।
  3. सफलता की कहानियां: विशेषकर वन उपज के व्यवसायिक उपयोग और जनजातीय समाज की सफल पहलें।

“अब हर जगह कचरा ही कचरा है”

मंत्री भूपेन्द्र यादव ने वर्तमान जीवनशैली की आलोचना करते हुए कहा कि “पहले हमारी परंपराएं प्रकृति के साथ समरस थीं। विवाह जैसे आयोजनों में पत्तलों का उपयोग होता था, लेकिन अब हर जगह प्लास्टिक और कचरा ही दिखता है। यह सिर्फ सरकार या वन विभाग की जिम्मेदारी नहीं है, हमें सामूहिक प्रयास करने होंगे।”

उन्होंने तकनीक और पर्यावरण संरक्षण के संतुलन पर जोर देते हुए बताया कि “भारत ने डिजास्टर रेसिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए वैश्विक पहल की है।” उन्होंने यह भी कहा कि आज हर वर्ग को मोबाइल, वाहन और डिजिटल सुविधा चाहिए—इसलिए इंडस्ट्रियल ट्रांजिशन और कार्बन एमिशन कम करने की दिशा में काम जरूरी है।

जनजातीय क्षेत्र में पलायन और विलुप्त होती वन संपदा

कार्यक्रम में केंद्रीय राज्य मंत्री दुर्गादास उईके ने वनवासी समाज की समस्याओं को रेखांकित करते हुए कहा कि, “अब जनजातीय क्षेत्रों से पलायन की स्थिति बन चुकी है। कंदमूल, औषधियां और पारंपरिक वन उपज अब विलुप्त होने लगी हैं। यह आरण्यक संस्कृति के लिए खतरा है।”

भारतीय ज्ञान परंपरा से मिलेगा समाधान

वन, जलवायु और आजीविका से जुड़े संकटों को रेखांकित करते हुए वक्ताओं ने यह भी कहा कि “नदियां, हवा, खेत सभी प्रदूषित हो चुके हैं। मौसम चक्र असंतुलित है और कई प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं। इस संकट से निपटने के लिए भारतीय ज्ञान परंपरा, वन और जनजातीय समाज को एक साथ जोड़ना होगा।”

कार्यशाला में विविध सत्र और विशेषज्ञ वक्तव्य

कार्यशाला की रूपरेखा डॉ. राहुल मूंगीकर ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम में वन संरक्षण कानूनों, जैव विविधता संशोधन अधिनियम-2023, सामुदायिक वन अधिकार, पारंपरिक ज्ञान और वन पुनर्स्थापन जैसे विषयों पर विस्तृत चर्चा हो रही है। विशेषज्ञ प्रो. रमेश, डॉ. योगेश गोखले और डॉ. राजेन्द्र दहातोंडे द्वारा सत्रों का संचालन किया जा रहा है।

समापन समारोह में राज्यपाल होंगे मुख्य अतिथि

कार्यशाला के समापन सत्र में राज्यपाल मंगुभाई पटेल मुख्य अतिथि होंगे। पूर्व राष्ट्रीय जनजातीय आयोग अध्यक्ष हर्ष चौहान समापन वक्तव्य देंगे। इस अवसर पर वनवासी समुदायों की भागीदारी, जलवायु संवेदनशीलता और सतत विकास पर आधारित डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का प्रदर्शन भी होगा।

यह कार्यशाला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकसित भारत 2047 के दृष्टिकोण में वनों और जनजातीय समुदायों की भूमिका को रेखांकित करते हुए सतत, न्यायसंगत और समावेशी विकास की दिशा में एक सार्थक पहल है।


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