रायपुर में 88 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस, प्रधानमंत्री ने जताया गहरा शोक

रायपुर, 23 दिसंबर (हि.स.)। हिंदी साहित्य की विशिष्ट और मौलिक आवाज़ माने जाने वाले प्रख्यात कवि, कथाकार और उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार शाम निधन हो गया। 88 वर्ष की उम्र में उन्होंने रायपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान रायपुर में अंतिम सांस ली। वे पिछले कुछ महीनों से अस्वस्थ चल रहे थे और 2 दिसंबर को सांस लेने में तकलीफ के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके निधन की पुष्टि उनके पुत्र शाश्वत शुक्ल ने की।

विनोद कुमार शुक्ल के निधन की खबर फैलते ही साहित्यिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई। साहित्यकारों, पाठकों और सांस्कृतिक संस्थाओं ने इसे हिंदी साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति बताया है। कुछ ही समय पहले उन्हें भारत के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जिससे उनका साहित्यिक योगदान औपचारिक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित हुआ था।

सरल भाषा, गहरी संवेदना और अनूठी दृष्टि के लेखक

विनोद कुमार शुक्ल को हिंदी साहित्य में उनकी अत्यंत सरल, किंतु गहरे अर्थों से भरी भाषा के लिए जाना जाता है। उनका लेखन शोर नहीं करता, बल्कि चुपचाप पाठक के भीतर उतर जाता है। ‘नौकर की कमीज’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘एक चुप्पी जगह’ जैसे उपन्यासों ने हिंदी कथा साहित्य को एक अलग ही दिशा दी। इन रचनाओं में मध्यवर्गीय जीवन, साधारण मनुष्य की आकांक्षाएं, चुप्पी, अकेलापन और अस्तित्व के प्रश्न अत्यंत सहज ढंग से उभरते हैं।

उनकी रचनाओं को पढ़ते हुए पाठक को ऐसा अनुभव होता है मानो रोज़मर्रा के जीवन की मामूली घटनाएं ही गहन दर्शन में बदल गई हों। लोक जीवन और आधुनिक संवेदनाओं का ऐसा संतुलन हिंदी उपन्यासों में दुर्लभ माना जाता है।

उपन्यास से सिनेमा तक, साहित्य का व्यापक प्रभाव

विनोद कुमार शुक्ल के चर्चित उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ पर प्रसिद्ध फिल्मकार मणि कौल ने इसी नाम से फिल्म बनाई थी, जिसने समानांतर सिनेमा में भी अपनी खास पहचान बनाई। वहीं उनके उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। यह इस बात का प्रमाण है कि उनका लेखन न केवल पाठकों में लोकप्रिय था, बल्कि साहित्यिक संस्थाओं द्वारा भी अत्यंत सम्मानित रहा।

ज्ञानपीठ पुरस्कार से हुआ सर्वोच्च सम्मान

हिंदी साहित्य में उनके बेमिसाल योगदान, मौलिक रचनात्मकता और विशिष्ट अभिव्यक्ति के लिए विनोद कुमार शुक्ल को 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। यह सम्मान इसी वर्ष 21 नवंबर को रायपुर स्थित उनके निवास पर आयोजित समारोह में दिया गया। अस्वस्थता के कारण यह सम्मान उनके घर पर ही प्रदान किया गया, जो अपने आप में एक भावुक क्षण था।

प्रधानमंत्री ने व्यक्त किया शोक

लेखक के निधन पर नरेन्द्र मोदी ने गहरा शोक व्यक्त किया है। प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर अपने संदेश में कहा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात लेखक विनोद कुमार शुक्ल के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य जगत में उनके अमूल्य योगदान के लिए वे सदैव स्मरणीय रहेंगे। प्रधानमंत्री के इस संदेश के बाद देशभर से श्रद्धांजलि संदेश आने लगे।

हिंदी साहित्य को मिली अपूरणीय क्षति

विनोद कुमार शुक्ल केवल एक लेखक नहीं थे, बल्कि हिंदी साहित्य में एक नई दृष्टि और नया कथ्य लेकर आए रचनाकार थे। उन्होंने अपने उपन्यासों और कविताओं के माध्यम से भारतीय समाज के भीतर छिपी संवेदनाओं को उजागर किया। उनके पात्र साधारण होते हुए भी असाधारण गहराई रखते थे। हिंदी कथा-सृष्टि में उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बना रहेगा।

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