सेंट्रल विस्टा परियोजना में वैचारिक बदलाव, सेवा और कर्तव्य को प्रशासन की केंद्रीय भावना बनाया गया
प्रधानमंत्री कार्यालय का नामकरण ‘सेवा तीर्थ’: नागरिक-प्रथम सोच को मजबूत करने वाला कदम

नई दिल्ली, 2 दिसंबर। केंद्र सरकार ने देश की प्रशासनिक व्यवस्था को केवल संरचनात्मक नहीं, बल्कि वैचारिक रूप से भी नई दिशा देने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री कार्यालय के नए परिसर का नाम ‘सेवा तीर्थ’ घोषित किया है। सरकार का स्पष्ट मत है कि यह परिवर्तन सत्ता और अधिकार से अधिक सेवा-भाव, कर्तव्यनिष्ठा तथा जन-प्रथम मानसिकता को केंद्र में लाने वाला है। प्रधानमंत्री कार्यालय का यह नया स्वरूप यथार्थ में प्रशासन को जनता के अधिक समीप और अधिक उत्तरदायी बनाने की दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण कदम है।

केंद्रीय सचिवालय बना ‘कर्तव्य भवन’: पद नहीं, दायित्व की अवधारणा को बढ़ावा

केंद्र सरकार ने केंद्रीय सचिवालय का नाम ‘कर्तव्य भवन’ घोषित करते हुए यह संदेश दिया है कि प्रशासन का मूल केंद्र केवल कार्यालय और पद नहीं, बल्कि देश और नागरिकों के प्रति निभाया जाने वाला दायित्व है। ‘कर्तव्य भवन’ नाम इस भावना को रेखांकित करता है कि शासन व्यवस्था का हर कदम जनता के कल्याण और राष्ट्र की प्रतिबद्धता के साथ जुड़ा होना चाहिए।

सरकार का कहना है कि प्रशासनिक पहचान में यह बदलाव उस मानसिकता को समाप्त करता है जिसमें शासन को केवल शक्ति का केंद्र माना जाता था। इसके स्थान पर अब सेवा और कर्तव्य को प्रशासन की प्राथमिक भाषा घोषित किया जा रहा है।

नए प्रधानमंत्री कार्यालय का नाम अब सेवा तीर्थ - Tarun Mitra

सेंट्रल विस्टा के तहत नया संकुल: आधुनिक ढांचे और भारतीय भावना का संगम

सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना में जिस परिसर को पहले ‘कार्यपालिका संकुल’ कहा जाता था, वही अब ‘सेवा तीर्थ’ और ‘कर्तव्य भवन’ के रूप में देश के सामने तैयार है। यह संकुल निर्माण कार्य के अंतिम चरण में पहुँच चुका है।

इस परिसर में प्रधानमंत्री कार्यालय, मंत्रिमंडल सचिवालय, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय तथा ‘भारत भवन’ स्थित होगा, जहां विदेश से आने वाले उच्चस्तरीय प्रतिनिधियों के साथ महत्वपूर्ण बैठकें आयोजित की जाएंगी। इस क्षेत्र का विकास तकनीकी सुविधाओं के साथ-साथ भारतीय प्रशासनिक परंपराओं और सांस्कृतिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर किया गया है।

औपनिवेशिक प्रभाव से मुक्ति: नामकरण बदलाव का व्यापक अर्थ

केंद्र सरकार पिछले वर्षों से प्रशासनिक भवनों और महत्वपूर्ण स्थलों के नामों को भारतीय मूल्यों के अनुरूप बदलने की पहल कर रही है। यह प्रयास केवल औपचारिक नहीं, बल्कि औपनिवेशिक मानसिकता से भारत की मुक्ति और अपनी अस्मिता की पुनर्स्थापना के रूप में देखा जा रहा है।

इसी क्रम में:

रेस कोर्स रोड का नाम ‘लोक कल्याण मार्ग’,

राजपथ का ‘कर्तव्य पथ’,

देशभर के राजभवनों का नाम ‘लोक भवन’
किया जा चुका है।

अंडमान-निकोबार के रॉस द्वीप का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सम्मान में बदला गया और 21 निर्जन द्वीपों को परम वीर चक्र विजेताओं के नाम दिए गए। यह सभी निर्णय भारत की सेवा-परंपरा, कर्तव्य-बोध और राष्ट्रीय सम्मान को पुनर्संरचना की दृष्टि से महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

सेवा, कर्तव्य और भारतीय प्रशासन: बदलती भाषा और नई परिभाषाएं

सरकार का मत है कि ‘सेवा’ और ‘कर्तव्य’ अब केवल शब्द नहीं, बल्कि प्रशासनिक भाषा का आधार और नीति का केंद्र बन चुके हैं। नई पीढ़ी के प्रशासन में यह अपेक्षा बढ़ रही है कि शासन नागरिकों के लिए सुगम, पारदर्शी, संवेदनशील और उत्तरदायी हो।

‘सेवा तीर्थ’ और ‘कर्तव्य भवन’ जैसे नाम एक ऐसी मानसिकता को दर्शाते हैं जिसमें शासन को ‘सत्ता के स्थल’ की बजाय ‘सेवा के स्थल’ के रूप में देखा जाए। यह परिवर्तन आने वाली पीढ़ियों के लिए भारतीय प्रशासनिक दर्शन की स्पष्ट दिशा तय करता है।

भारतीय संस्कृति की छाप: आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलित प्रशासन

नए परिसर का निर्माण आधुनिक तकनीक और सुरक्षा मानकों के अनुरूप किया गया है, लेकिन इसकी आत्मा भारतीय संस्कृति, परंपरा और प्रशासनिक विचारधारा पर आधारित है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव देश को न केवल आधुनिक प्रशासन बल्कि वैचारिक पहचान से भी समृद्ध करेगा।

प्रधानमंत्री कार्यालय का ‘सेवा तीर्थ’ नाम भारतीय परंपरा में उस स्थान का बोध कराता है जहां जनता, राष्ट्र और कर्तव्य सर्वोच्च माने जाते हैं। इसी प्रकार ‘कर्तव्य भवन’ प्रशासन की मूल भावना को जिम्मेदारी और सेवा के माध्यम से स्थापित करता है।

भारत की उभरती वैश्विक छवि में योगदान

यह परिवर्तन ऐसे समय में हुआ है जब भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी वैश्विक भूमिका को तेजी से विस्तार दे रहा है। नया प्रशासनिक परिसर इस आधुनिक भारत की छवि का प्रतीक भी बनेगा— ऐसा भारत जो सेवा-भाव, सांस्कृतिक पहचान और मजबूत प्रशासनिक संरचना के साथ आगे बढ़ रहा है।

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