272 पूर्व जज, राजनयिक, नौकरशाह और सैन्य अधिकारियों ने खुला पत्र जारी कर राजनीतिक बयानबाज़ी पर जताई चिंता

272 प्रबुद्ध नागरिकों का खुला पत्र, राहुल के बयान को बताया लोकतंत्र पर हमला

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा हाल ही में लगाए गए ‘वोट चोरी’ और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवालों ने अब राष्ट्रीय बहस का रूप ले लिया है। देश के 272 प्रबुद्ध नागरिकों—जिनमें 16 पूर्व न्यायाधीश, 14 पूर्व राजदूत, 123 सेवानिवृत्त नौकरशाह और 133 पूर्व सैन्य अधिकारी शामिल हैं—ने राहुल गांधी के आरोपों पर गंभीर आपत्ति दर्ज कराई है।

18 नवंबर को जारी उनके खुले पत्र में कहा गया कि भारत के लोकतंत्र पर हमला अब हिंसा के माध्यम से नहीं, बल्कि संवैधानिक संस्थाओं पर लगातार विषैले बयान देकर किया जा रहा है। पत्र में यह भी चेतावनी दी गई है कि इस तरह की राजनीति जनता का विश्वास कमजोर करती है।

“बिना प्रमाण संस्थाओं पर हमला”, हस्ताक्षरकर्ताओं ने जताई चिंता

खुले पत्र में हस्ताक्षरकर्ताओं ने साफ कहा है कि विपक्षी नेताओं द्वारा बिना किसी ठोस प्रमाण के चुनाव आयोग पर पक्षपात और धांधली के आरोप लगाना लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता को चोट पहुंचाने वाला कदम है। उन्होंने लिखा कि चुनाव आयोग भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली की रीढ़ है और इस पर साजिशन हमले लोकतंत्र को कमजोर कर सकते हैं।

पत्र में यह भी अपील की गई है कि नागरिक समाज संवैधानिक संस्थाओं के साथ खड़ा रहे और राजनीतिक दलों से संयमित भाषा का उपयोग करने तथा ज़िम्मेदार व्यवहार की अपेक्षा करे।

राहुल गांधी के हालिया आरोपों ने खोली नई बहस

राहुल गांधी ने हाल के दिनों में कई मंचों पर ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाते हुए भाजपा और चुनाव आयोग को निशाने पर लिया था। उन्होंने चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिशों की बात कही थी।

इन आरोपों के बाद राजनीतिक हलकों में इस मुद्दे पर विवाद बढ़ गया। कांग्रेस पार्टी ने राहुल के आरोपों का बचाव करते हुए कहा कि यह लोकतांत्रिक अधिकारों के तहत उठाए गए सवाल हैं। कांग्रेस का कहना है कि देश में चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता के लिए सवाल पूछना जरूरी है।

कांग्रेस ने पत्र को राजनीतिक दबाव बताया, भाजपा ने किया समर्थन

कांग्रेस ने 272 नागरिकों के खुले पत्र को “राजनीतिक दबाव का हिस्सा” करार दिया है। पार्टी का कहना है कि राहुल गांधी के सवाल लोकतांत्रिक अधिकार हैं, जिनको दबाने के लिए इस तरह के पत्र जारी किए जा रहे हैं।

वहीं भाजपा और उसके समर्थक दलों ने इस पत्र को “संवैधानिक संस्थाओं के समर्थन में उठी ईमानदार आवाज” बताया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि चुनाव आयोग पर उंगली उठाना लोकतंत्र पर सीधा हमला है और समाज के प्रबुद्ध लोगों ने सही समय पर सही चेतावनी दी है।

संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर बढ़ती चिंता

यह पूरा घटनाक्रम बताता है कि देश में संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता अब राजनीतिक वाद-विवाद का प्रमुख मुद्दा बन चुकी है। विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार बयानबाज़ी से चुनाव आयोग जैसे संस्थानों पर लोगों का भरोसा प्रभावित हो सकता है।

प्रबुद्ध नागरिकों द्वारा जारी यह पत्र दर्शाता है कि अब राजनीति की तीव्रता केवल संसद तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों को भी सक्रिय कर रही है। आने वाले दिनों में यह बहस और तेज होने की संभावना जताई जा रही है।

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