एशिया-प्रशांत में रणनीतिक शक्ति बढ़ाएगा बेंगलुरु, भारतीय वायुसेना को मिलेगी बड़ी तकनीकी मजबूती
बेंगलुरु।
भारत की एयरोस्पेस क्षमता तेजी से नई ऊँचाइयों की ओर बढ़ रही है। दुनिया के सबसे विश्वसनीय सैन्य परिवहन विमानों में गिने जाने वाले सी-130जे सुपर हरक्यूलिस के लिए अब देश में ही अत्याधुनिक मेंटेनेंस, रिपेयर और ओवरहॉल (एमआरओ) सुविधा तैयार की जा रही है। यह विशाल केंद्र बेंगलुरु के भटरामरनाहल्ली में केम्पेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास विकसित हो रहा है। आने वाले समय में यह पूरा परिसर एशिया-प्रशांत क्षेत्र का सबसे बड़ा और सबसे सक्षम एमआरओ हब बन सकता है।
टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स और लॉकहीड मार्टिन की साझेदारी से बन रहा यह एमआरओ केंद्र भारत की आत्मनिर्भरता और एयरोस्पेस उद्योग में बढ़ती वैश्विक भूमिका का महत्वपूर्ण संकेत है। दोनों कंपनियों ने इस परियोजना की आधिकारिक घोषणा करते हुए कहा कि यह सुविधा न केवल भारत, बल्कि एशिया के अनेक देशों के लिए भी मेंटेनेंस व ओवरहॉल सेवाएं उपलब्ध कराएगी।
A new chapter of milestones begins, forged #ForIndiaFromIndia, and the world. 🇺🇸🇮🇳
— Lockheed Martin India (@LMIndiaNews) December 8, 2025
We break ground on a new #C130 MRO facility with our long-standing partner @TataAdvanced in Bengaluru, deepening our commitment to strengthen India’s aerospace & defence industrial base. #C130Jpic.twitter.com/KMw552xfRP
मेक इन इंडिया की बड़ी उपलब्धि—250वां एम्पेनेज तैयार
हैदराबाद में टाटा-लॉकहीड मार्टिन की संयुक्त यूनिट ने हाल ही में सी-130जे का 250वां एम्पेनेज (पूंछ हिस्सा) तैयार कर अमेरिका भेजा है। यह उपलब्धि बताती है कि भारत अब वैश्विक एयरोस्पेस सप्लाई चेन में एक विश्वसनीय और सक्षम भागीदार बन चुका है।
भारत ने वर्ष 2011 में पहला सी-130जे विमान खरीदा था और फिलहाल भारतीय वायुसेना के पास 12 ऐसे विमान मौजूद हैं। ये विमान लद्दाख में दुनिया की सबसे ऊँची और कठिन एयरस्ट्रिप दौलत बेग ओल्डी पर सफल लैंडिंग से लेकर विपरीत मौसम में रात के ऑपरेशन तक अपनी अद्भुत क्षमता साबित कर चुके हैं।
अब तक मरम्मत अमेरिका में—अब बदल जाएगी तस्वीर
अब तक इन विमानों की हेवी मेंटेनेंस और बड़ी मरम्मत अमेरिका में की जाती थी। इससे खर्च अधिक आता था और प्रक्रिया समय लेने वाली होती थी। बेंगलुरु में बन रहा एमआरओ सेंटर इस निर्भरता को खत्म करेगा और भारतीय वायुसेना के लिए तेजी, सुविधा और लागत-कुशलता के नए रास्ते खोलेगा।
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2026 तक निर्माण, 2027 में पहला विमान ओवरहॉल के लिए पहुंचेगा
एमआरओ सुविधा का निर्माण 2026 तक पूरा होने की उम्मीद है। 2027 की शुरुआत में पहला सी-130जे विमान यहां ओवरहॉल के लिए आएगा। केंद्र में हेवी मेंटेनेंस, कंपोनेंट रिपेयर, स्ट्रक्चरल चेक, एवियोनिक्स अपग्रेड, स्ट्रक्चरल रेस्टोरेशन और टेस्टिंग जैसी सभी उन्नत सेवाएं उपलब्ध होंगी।
इससे भारतीय इंजीनियरों को अत्याधुनिक सीख और प्रशिक्षण मिलेगा। साथ ही घरेलू सप्लायर्स के लिए भी एयरोस्पेस क्षेत्र में आगे बढ़ने के नए अवसर खुलेंगे।
भारत की आत्मनिर्भर एयरोस्पेस क्षमता को नई दिशा
यह एमआरओ केंद्र न सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करेगा बल्कि भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक बड़े तकनीकी हब के रूप में स्थापित करेगा। दुनिया में 560 से अधिक सी-130जे विमान सक्रिय हैं और इनका संयुक्त उड़ान समय 30 लाख घंटे से अधिक है। ऐसे में भारत में बनने वाला यह केंद्र अनेक देशों की जरूरतों को भी पूरा कर सकेगा।
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