सत्य, अहिंसा और आत्मसंयम का प्रकाशपुंज: भगवान महावीर
नई दिल्ली।
भारतीय अध्यात्म की परंपरा में भगवान महावीर का स्थान अत्यंत गरिमामय है। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर के रूप में उन्होंने न केवल उपदेश दिए, बल्कि अपने जीवन से उनके आदर्शों को जिया। महावीर जयंती, जो हर वर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनाई जाती है, केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्म-चिंतन, संयम और करुणा के मूल्यों को पुनः जाग्रत करने का अवसर है।
एक राजकुमार से तीर्थंकर बनने की यात्रा
भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व वैशाली के कुंडलग्राम में एक समृद्ध क्षत्रिय परिवार में हुआ था। उनका नाम वर्धमान रखा गया, जो बाद में अपनी वीरता, त्याग और तपस्या के कारण “महावीर” कहलाए। तीस वर्ष की आयु में उन्होंने सांसारिक सुखों को त्याग दिया और आत्म-साक्षात्कार की खोज में संन्यास ग्रहण किया।
उनकी जीवन यात्रा कोई साधारण कथा नहीं, बल्कि एक गहन आत्म-शुद्धि और मानवता के कल्याण का महायज्ञ थी। उन्होंने 12 वर्षों तक कठोर तप, मौन व्रत और गहन ध्यान साधना की। अंततः उन्हें केवलज्ञान (केवलज्ञाता अवस्था) प्राप्त हुआ — जिसके बाद वे तीर्थंकर कहलाए।
महावीर स्वामी के अमर उपदेश
भगवान महावीर के उपदेशों की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही जीवंत है, जितनी 2600 वर्ष पूर्व थी। उनके पांच प्रमुख व्रत, मानवता के लिए एक नैतिक संहिता हैं:
🔸 अहिंसा (Non-violence):
महावीर स्वामी ने सिखाया कि अहिंसा केवल शारीरिक नहीं, बल्कि विचारों, वाणी और भावना में भी होनी चाहिए। किसी प्राणी को कष्ट देना, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, धर्म के विरुद्ध है।
🔸 सत्य (Truth):
सत्य को उन्होंने आत्मा की शुद्धि का आधार बताया। “सत्य बोलना केवल नैतिकता नहीं, आत्मा का धर्म है।”
🔸 अस्तेय (Non-stealing):
जो हमें स्वेच्छा से न दिया जाए, उसे लेना चोरी है — चाहे वह विचार हो या वस्तु।
🔸 ब्रह्मचर्य (Celibacy):
इंद्रिय संयम ही आत्म-विकास की दिशा में पहला कदम है।
🔸 अपरिग्रह (Non-possessiveness):
संपत्ति, रिश्तों और इच्छाओं के मोह को त्यागकर ही आत्मा सच्चे सुख की ओर बढ़ती है।
करुणा, क्षमा और सह-अस्तित्व का संदेश
महावीर स्वामी ने कहा —
“क्षमा वीरस्य भूषणम्”
क्षमा को उन्होंने सबसे बड़ा गुण माना। उन्होंने सभी जीवों के प्रति करुणा, सहिष्णुता और सम्मान की भावना रखने पर बल दिया। उनके उपदेशों का सार यही है कि जब तक हम दूसरों के कष्ट को अपना नहीं मानते, तब तक हम सच्चे धार्मिक नहीं बन सकते।
महावीर का निर्वाण और अमर संदेश
भगवान महावीर ने अपना संपूर्ण जीवन मानवता को जाग्रत करने में समर्पित कर दिया। उनका निर्वाण बिहार के पावापुरी में हुआ, जहाँ आज भी उनका स्मृति स्थल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र तीर्थ है।
आज की दुनिया में महावीर की प्रासंगिकता
आज जब समाज में हिंसा, तनाव, लोभ और वैमनस्य की भावना बढ़ रही है, भगवान महावीर के सिद्धांत और अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि आत्म-नियंत्रण, करुणा और सत्य ही वह रास्ता है, जो व्यक्तिगत और सामाजिक शांति की ओर ले जाता है।
🙏 महावीर जयंती पर यही संकल्प लें —
“न स्वयं हिंसा करें, न किसी को करने दें। सत्य बोलें, मोह त्यागें और सबके प्रति दया रखें।”
स्वदेश ज्योति के द्वारा
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