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February 15, 2025 6:08 PM

एक आदर्श ‘स्वयंसेवक देवपुत्र’ की विदाई

कृष्णकुमार अष्ठाना: आदर्श स्वयंसेवक, शिक्षक और पत्रकार की प्रेरणादायक यात्रा"

कृष्णकुमार अष्ठाना: देवपुत्र का देव हो जाना

कृष्णकुमार अष्ठाना, जिनका पूरा जीवन राष्ट्र, समाज और शिक्षा को समर्पित रहा, अब हमारे बीच नहीं हैं। 15 मई 1940 को आगरा जिले के ऊँटगिर गांव में जन्मे अष्ठाना जी का पूरा जीवन प्रेरणा का अद्भुत स्रोत है। उनके असामान्य व्यक्तित्व और बहुआयामी कर्तृत्व को याद करते हुए हम श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।


जीवन की शुरुआत और शिक्षा

श्री कृष्णकुमार अष्ठाना का जन्म स्वर्गीय श्री लक्ष्मीनारायणजी अष्ठाना के घर हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मुरैना में हुई। प्रारंभ से ही शिक्षा में गहरी रुचि रखने वाले अष्ठाना जी ने स्वाध्यायी छात्र के रूप में इतिहास और राजनीतिक विज्ञान से स्नातकोत्तर किया। इसके अलावा, उन्होंने बी.एड. और साहित्यरत्न की उपाधि प्राप्त की, जो उनके शिक्षण कौशल को और प्रखर बनाने में सहायक सिद्ध हुई।


अध्यापक के रूप में शुरुआत

अष्ठाना जी का शिक्षण जीवन प्रारंभ से ही प्रेरणादायक था। एक प्रतिभाशाली शिक्षक के रूप में उन्होंने कम उम्र में ही शिक्षा के क्षेत्र में गहरी छाप छोड़ी। उनकी शिक्षण प्रतिभा ने उन्हें व्याख्याता और फिर प्राचार्य के रूप में स्थापित किया।

बरई जैसे दूरस्थ स्थान पर प्राचार्य के रूप में नियुक्ति उनके धैर्य और समर्पण की परीक्षा थी। स्कूल तक का मार्ग कठिन था—14 मील का पैदल रास्ता और बीच में दो नदियाँ। लेकिन ये सभी चुनौतियाँ उनके अटल संकल्प और सेवा भावना के आगे छोटी पड़ गईं। वहाँ 16 वर्षों तक अपने योगदान से उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में मानक स्थापित किए।


पत्रकारिता का सफर

1973 में उनके जीवन ने एक नई दिशा पकड़ी। संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री सुदर्शन जी ने उनकी लेखन प्रतिभा को पहचानते हुए उन्हें दैनिक ‘स्वदेश’ का संपादक बनाया। मुंबई के एक प्रतिष्ठित संस्थान में पत्रकारिता का प्रशिक्षण लेने के बाद अष्ठाना जी ने 12 वर्षों तक ‘स्वदेश’ को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

उनके संपादकत्व में ‘स्वदेश’ ने सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों पर साहसिक लेखनी का प्रदर्शन किया। उनके लेख और संपादकीय तत्कालीन सरकार के लिए गले की फाँस बन गए।

इस दौरान उन्होंने ‘देवपुत्र’ और ‘जागृत युगबोध’ जैसी पत्रिकाओं को भी सफलतापूर्वक संपादित किया। ‘देवपुत्र’ बाल साहित्य के क्षेत्र में एक लाख से अधिक की प्रसार संख्या तक पहुँच गया, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है।


मीसा का काला अध्याय और अष्ठाना जी का संघर्ष

आपातकाल (1975-77) के दौरान अष्ठाना जी और ‘स्वदेश’ की निर्भीक पत्रकारिता तत्कालीन शासन को सहन नहीं हुई। उन्हें ‘मीसा’ के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया। 22 महीने से अधिक समय तक जेल में रहते हुए भी उनकी लेखनी और राष्ट्रभक्ति की लौ कम नहीं हुई।


शिक्षा और समाजसेवा में योगदान

श्री अष्ठाना का शिक्षा के प्रति समर्पण उल्लेखनीय था। वे ‘विद्या भारती’ की प्रांतीय इकाई के सचिव और ‘माध्यमिक शिक्षा मंडल म.प्र.’ के सदस्य रहे। उन्होंने ‘शारदा विहार’, भोपाल और ‘सरस्वती विद्यापीठ’, शिवपुरी जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं के मार्गदर्शक के रूप में योगदान दिया।


साहित्य और लेखन

श्री अष्ठाना जी एक कुशल लेखक और संपादक थे। उनकी रचनाओं में राष्ट्रभक्ति और सामाजिक चेतना का अद्भुत समावेश मिलता है।
प्रमुख कृतियाँ:

  • ‘एक और नंदादीप’ (स्वामी अमूर्तानंदजी पर आधारित)
  • ‘समिधा’ (शरद मेहरोत्रा के जीवन पर आधारित)
  • ‘नव दधीचि: गुरु तेगबहादुर’

उनकी पुस्तकें और संपादकीय आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।


सम्मान और उपलब्धियाँ

श्री अष्ठाना को उनके बहुआयामी योगदान के लिए कई सम्मान मिले:

  • मध्यभारत हिंदी साहित्य सभा, ग्वालियर द्वारा सम्मान (1996)
  • नागरी बाल साहित्य सम्मान, बलिया (1996)
  • बाल साहित्य संस्कृति कला विकास संस्थान द्वारा ‘संपादक रत्न’ सम्मान (2000)
  • मालवा शिक्षा सम्मान (1998)
  • हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा श्रेष्ठ सम्मेलन सम्मान (2002)

विनम्र श्रद्धांजलि

श्री कृष्णकुमार अष्ठाना का जीवन राष्ट्रसेवा, शिक्षा और पत्रकारिता को समर्पित था। उनका व्यक्तित्व हमें न केवल प्रेरित करता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि एक व्यक्ति अपने जीवन को समाज और देश के प्रति किस प्रकार सार्थक बना सकता है।

उनकी स्मृति और कार्य हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत रहेंगे। श्रद्धांजलि स्वरूप हमारा नमन।

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