याचिकाकर्ता ने सवाल उठाया—आग लगने के बाद एफआईआर क्यों नहीं?
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग पर दाखिल याचिका पर 20 मई को सुनवाई होगी। सोमवार को वकील मैथ्यूज नेदुम्परा ने चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष इस मामले का उल्लेख किया, जिस पर कोर्ट ने जल्द सुनवाई की सहमति दी।
याचिकाकर्ता ने मांग की है कि दिल्ली पुलिस को इस मामले में एफआईआर दर्ज कर प्रभावी जांच के आदेश दिए जाएं। उनका तर्क है कि जस्टिस वर्मा के आवास पर 14 मार्च को हुई आगजनी और वहां से नकदी बरामद होने की घटना भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत संज्ञेय अपराध है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।
जांच समिति पर भी उठाए सवाल
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति को केवल आंतरिक जांच का अधिकार है, न कि आपराधिक मामलों की जांच का। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर ऐसा आदेश देने का अधिकार नहीं है।
उन्होंने सवाल उठाया कि जब आग बुझाने के लिए अग्निशमन दल और दिल्ली पुलिस मौके पर पहुंचे थे और नकदी की बरामदगी हुई थी, तब स्वतः संज्ञान लेकर एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की गई?
‘न्याय की आड़ में काले धन’ का आरोप
याचिका में गंभीर आरोप लगाते हुए कहा गया है कि यह “न्याय की आड़ में काले धन को सुरक्षित रखने” का मामला हो सकता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अगर जस्टिस वर्मा के बयान को भी सही मान लिया जाए, तब भी यह स्पष्ट नहीं होता कि उन्होंने स्वयं प्राथमिकी दर्ज कराने की पहल क्यों नहीं की।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 20 मई को होगी, जहां सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि इस याचिका पर अगला कदम क्या होगा।
स्वदेश ज्योति के द्वारा
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