- डाॅ. विशेष गुप्ता
हाॅलिया आॅकड़ों के अनुसार देश में वरिष्ठजनों की संख्या लगातार बढ़ रही है। दूसरी ओर प्रजनन शक्ति के घटने और जीवन प्रत्याशा के बढ़ने से भविष्य में युवाओं की संख्या के कम होने से देश के माथे पर चिन्ता की लकीरें उभरने लगीं हैं। आज देश में विकसित भारत के ढ़ाॅचे और उसके भविष्य को लेकर भी खूब विमर्श चल रहे हैं। एक खास विमर्श यह भी चल रहा है कि 2047 में जब भारत की स्वतंत्रता को सौ साल पूर्ण होंगे तब भारत विकास के शीर्ष पर होगा। परन्तु इस संदर्भ से जुड़ी रिपोर्ट के आॅकड़े संकेत दे रहे हैं कि आने वाले 25 वर्षों में यह देश युवाओं की तुलना में बुजुर्गों का देश अधिक होगा। विकसित भारत को इच्छित लक्ष्य की ओर ले जाने के लिए आज इस मुद्दे पर गंभीर चिन्तन और मनन की आवश्यकता है।
अभी हाल ही में नीति आयोग ने सीनियर केयर्स रिफाॅर्म इन इंड़िया-रिमैंनेजिंग दि सीनियर केयर पैराडाइम विषयक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि 2050 तक आज के युवा भारत के इसी रुप में बने रहने में संदेह है। इस रिपोर्ट के आॅकड़ों का विश्लेषण बताता है कि ढाई दशक बाद यह देश युवाओं की जगह बुजुर्गों का देश बन जायेगा। निःसदेह भारत आज एक युवा देश है। परन्तु 2047 तक हम जिस विकसित भारत बनाने मेें इन युवाओं के महत्वपूर्ण योगदान की चर्चा कर रहे हैं,यही आज के युवा पच्चीस साल बाद सीनियर सिटीजन की श्रेणी में आ जायेंगे। रिपोर्ट के आॅकड़े ईशारा कर रहे हैं कि 2050 तक देश की आबादी विकसित देशों की तरह बुजुर्ग होने लगेगी। नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में साफ किया है कि भारत में हर साल बुजुर्गों की आबादी में तीन फीसदी की वृद्धि होती है। आॅकलन के अनुसार 2050 तक भारत में बुजुर्गों की यह संख्या बढ़कर 30 करोड़ से अधिक हो जायेगी। वर्तमान में कुल आबादी का 10 फीसदी हिस्सा वरिष्ठ नागरिकों का है। आज देश की आबादी में तकरीबन 13 करोड़ बुजुर्ग हैं। 2050 तक इसमें लगभग 20 करोड़ की वृद्धि और होगी। इस प्रकार 25 साल बाद देश में बुजुर्गों की आबादी के 33 करोड़ तक पहॅुचने की संभावनायें हैं।
नीति आयोग के आॅकड़ों की गणना अनायास ही नहीं है। तथ्य बताते हैं कि प्रजनन क्षमता के घटने और जीवन प्रत्याशा के बढ़ने से युवाओं की संख्या कम हो रही है और बुजुर्गों की संख्या के लगातार बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं। आॅकड़ों की गणना बताती है कि देश में 2015-16 में एक स्त्री की प्रजनन क्षमता जो 2.2 थी,वर्तमान में वह घटकर 2 से भी नीचे आ गई है। आज देश में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के बढ़ने से जीवन प्रत्याशा 60 से बढ़कर पुरुषों में 71 और स्ित्रयों में 76 तक चली गई है। आज क्रूड़ बर्थ रेट के घटने के साथ-साथ इन्फेन्ट मोर्टेलिटी यानि नवजात शिशुओं की मृत्यु में भी काफी कमी आयी है। वस्तुस्िथति यह है कि 2011 में 1000 जन्मों पर 44 मौते होती थीं जिनकी वर्तमान में संख्या घटकर 30 से भी नीचे आ गयी है।
कहना न होगा कि भारत सरकार के विकसित भारत का तात्पर्य एक ऐसे भारत से है जो सामाजिक,आर्थिक व तकनीकी दृष्टिकोण से प्रगति कर चुका है। इसमें उच्च जीवन स्तर,बेहतर शिक्षा और रोजगार के अवसरों के साथ -साथ सामाजिक समरसता और समानता शामिल हैं। कहने का अर्थ है कि एक संपूर्ण स्वस्थ तथा अधिकारपूर्ण जीवन जीने की क्षमता तथा इन सभी के लिए अनिवार्य वस्तुओं को प्राप्त करने की योग्यता ही विकसित भारत का भाव है। इस आधार पर विकसित भारत की योजना को चार हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है। इनमें सामाजिक और बुनियादी ढ़ाॅचे में सार्वजनिक निवेश,प्रौद्योगिक विनिर्माण और नवाचाार पर ध्यान केन्िद्रत करना और समावेशी विकास तथा सरलीकरण प्रमुख हैं। यहां कहने की आवश्यकता नहीं कि भारत सरकार विकसित भारत के इस विजन को साकार रुप प्रदान करने के लिए प्राण-पण से जुटी है। परन्तु यहां खास बात यह है कि इस विकसित भारत के विजन को कार्यरुप में परिणत करने के लिए जनसंख्यात्मक संतुलन का होना बहुत आवश्यक है। आज चिन्ता देश में युवाओं की आबादी के घटने और वरिष्ठजनों की आबादी बढ़ने से जुड़े असंतुलन को लेकर अधिक दिखायी पड़ रही है। पिछले दिनों विवेकानन्द जयन्ती के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जब युवा लीडर्स ड़ायलाॅग किया था तब उनका मत था कि आने वाले 25 वर्षों में भारत को विकसित बनाने के लिए युवाओं की सही पहचान और उन्हें राष्ट्र की संस्कृति से जोड़कर उनको सशक्त बनाना है।
इस जनसंख्यात्मक असंतुलन की वास्तविक स्थिति यह है कि एक ओर प्रजनन की घटती दर और दूसरी ओर जीवन प्रत्याशा में बढ़ोत्तरी होने से वरिष्ठजनों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अब प्रश्न उठता है कि 2047 अथवा 2050 तक हम जिस विकसित भारत के लिए विमर्श कर रहे हैं,तो इसमें इस विचार पर भी मंथन जरुरी है कि ढाई दशक बाद यह देश युवाओं का देश होगा अथवा वरिष्ठजनों का। युवाओं और वरिष्ठजनों के बीच उभरते इस जनसंख्यात्मक असंतुलन से जुड़े आॅकड़े यदि सही सिद्ध होते हैं तो फिर विकसित भारत के प्रस्तावित लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में नये सिरे से मंथन करने की आवश्यकता होगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि भविष्य के विकसित भारत बनाने में युवाओं के साथ-साथ सीनियर सिटीजन्स की अहम्ा् भूमिका होगी। परन्तु यह रिपोर्ट बताती है कि इन वरिष्ठजनों के पास लंबा कार्यात्मक अनुभव तो है,परन्तु स्वास्थ्य के साथ-साथ ये लोग अवसादग्रस्त लक्षणों और कम जीवन संतुष्टि से पीड़ित हैं। इसलिए इन वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण के लिए सांविधानिक उपबंधों का प्रयोग करते हुए इनको पुनः विकसित भारत का निर्माण करने वाली मुख्यधाराओं के साथ जोड़ना पड़ेगा। इतना निश्चित है कि विकसित भारत का लक्ष्य वरिष्ठजनों को ऋणात्मक बनाकर पूरा नहीं किया जा सकता। इसलिए कहने की आवश्यकता नहीं कि 2047 तक हम जिस विकसित भारत के लक्ष्य को पूर्ण करने की योजना बना रहे हैं वह वरिष्ठ नागरिकों के बढ़ते संख्याबल और उनके साथ जुड़े लंबे अनुभव का राष्ट्र हित में प्रयोग किये बिना संभव नहीं होगा। इसके लिए आवश्यक होगा कि बढ़ते बुजुर्ग भारत की शक्ति और देश के युवा भारत की कार्यात्मक शक्ति के साथ उसकी ज्ञानात्मक,रचनात्मक और उन्नयनकारी शक्ति के बीच एक पारस्परिक और अनुभवात्मक सेतु बनाकर ही 2047 के विकसित भारत के लक्ष्य को पूर्ण किया जा सकेगा।