Trending News

May 17, 2025 11:51 AM

सिंधु जल संधि रद्द करने से भारत और पाकिस्तान को क्या फर्क पड़ेगा? | एक विस्तृत विश्लेषण

सिंधु जल संधि रद्द होने पर भारत और पाकिस्तान को क्या असर होगा?

पृष्ठभूमि:


सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई थी। यह संधि छह नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, सतलुज और ब्यास) के जल बंटवारे को लेकर है। इसके अनुसार, पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास, सतलुज) भारत को और पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम, चिनाब) पाकिस्तान को दी गईं थीं, लेकिन भारत को पश्चिमी नदियों का सीमित उपयोग (जैसे सिंचाई, पनबिजली) की अनुमति थी।

पश्चिमी नदियाँ: सिंधु, झेलम, चेनाब

पूर्वी नदियाँ: रावी, सतलज, ब्यास

(भारत इन नदियों के जल का पूरा उपयोग कर सकता है)


सीमित नियंत्रण: भारत पश्चिमी नदियों पर बाँध या नहर जैसे बड़े प्रोजेक्ट नहीं बना सकता।

रणनीतिक चुनौती: पाकिस्तान कई बार भारत की हाइड्रो पावर योजनाओं पर आपत्ति जताता है।

पर्याप्त पानी नहीं: पंजाब और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों को कभी-कभी जल की कमी होती है।

राजनीतिक टूल: भारत इस संधि को पाकिस्तान के खिलाफ एक दबाव के रूप में इस्तेमाल करने की बात करता है, खासकर जब रिश्ते तनावपूर्ण हों।


आजीवन लाभ: पाकिस्तान को सिंधु प्रणाली के सबसे बड़े हिस्से — पश्चिमी नदियाँ — मिल गईं।

खाद्य सुरक्षा: सिंचाई के लिए यह पानी पाकिस्तान की खेती की रीढ़ है।

भय और आशंका: भारत की कोई भी जल परियोजना पाकिस्तान में चिंता पैदा करती है कि कहीं पानी रोका न जाए।

डिप्लोमैटिक कार्ड: पाकिस्तान इस संधि को भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाता है।


भारत-पाक रिश्तों में बढ़ते तनाव के चलते भारत ने कई बार संधि पर पुनर्विचार की बात की है।

2023 में भारत ने विश्व बैंक को पत्र लिखकर संधि से “संशोधन” की बात की थी।

पर्यावरणीय बदलाव (climate change) के कारण पानी की उपलब्धता पर भी असर पड़ रहा है।


सिंधु जल संधि अब सिर्फ एक जल समझौता नहीं, बल्कि भारत-पाक संबंधों का अहम हिस्सा बन चुकी है। यह संधि 60+ सालों से शांति बनाए रखने में सफल रही है, लेकिन बदलती राजनीतिक और जलवायु परिस्थितियों के बीच अब इसके भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं।

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram