Trending News

April 18, 2025 3:21 PM

हिन्दू नववर्ष गुड़ी पड़वा विक्रम संवत 2082

  • पंडित हितेश शुक्ला
    चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या नववर्ष का आरम्भ माना गया है। ‘गुड़ी’ का अर्थ होता है विजय पताका ।
    इसे हिन्दू नव वर्ष ,नव संवत्सर या नव संवत्ा् भी कहते हैं।
    30 मार्च 2025 को युगाब्ध 5127 विक्रम संवत्ा् 2082 प्रारंभ होगा। इस वर्ष विक्रम संवत का नाम ‘सिद्दार्थ’ होगा एवं राजा सूर्य होंगे। विक्रम संवत्ा के नये साल का आरम्भ भी होता है। चैत्र शुक्ल द्वितीया को सिंधी नववर्ष चेटीचंड उत्सव से शुरू होता है। इस शुभ दिन भगवान्ा झूलेलाल का जन्म हुआ था जो वरूण देव के अवतार हैं।
    चैत्रे मासि जगत्ा् ब्रह्म ससर्ज प्रथमे हनि
    शुक्ल पक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति॥
    ब्रह्मा जी ने सूर्योदय होने पर सबसे पहले चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि की संरचना शुरू की। उन्होंने इसे प्रतिपदा तिथि को प्रवरा अथवा सर्वोत्तम तिथि कहा था। इसलिए इसको सृष्टि का प्रथम दिवस भी कहते हैं। इस दिन से संवत्सर का पूजन, नवरात्र घटस्थापन, ध्वजारोपण, पाठ आदि विधि-विधान किए जाते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वसन्त ऋतु में आती है। इस ऋतु में सम्पूर्ण सृष्टि में सुन्दर छटा बिखर जाती है। विक्रम संवत के महीनों के नाम आकाशीय नक्षत्रों के उदय और अस्त होने के आधार पर रखे गए हैं। सूर्य, चन्द्रमा की गति के अनुसार ही तिथियां भी उदय होती हैं। मान्यता है कि इस दिन दुर्गा जी के आदेश पर श्री ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इस दिन दुर्गा जी के मंगलसूचक घट की स्थापना की जाती है।
    आज भी हमारे भारत देश में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोश आदि के चालन-संचालन में मार्च अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं। यह समय दो ऋृतुओं का संधिकाल माना जाता है। इसमें रात्रि छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। प्रकृति एक नया रूप धारण कर लेती है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति नव पल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जावान हो रही हो। मानव, पशु-पक्षी यहां तक की जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद एवं आलस्य का परित्याग कर सचेतन हो जाती है। इसी समय बर्फ पिघलने लग जाती है। आमों पर बौर लगना प्रारम्भ हो जाता है। प्रकृति की हरितिमा नवजीवन के संचार का प्रतीक बनकर हमारे जीवन से जुड़ सी जाती है।
    प्रतिपदा के दिन आज से 2082 वर्ष पूर्व उज्जयिनी नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांत से भारत भूमि की रक्षा की और इसी दिन से कालगणना प्रारम्भ की गई। उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमीसंवत्ा् का नामकरण किया। महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2072 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर अरब में विजय की पताका फहरा दी। साथ ही साथ यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कम्बोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहरा दी। विजय की स्मृति स्वरूप वर्ष प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती रही और आज भी बड़े उत्साह एवं ऐतिहासिक धरोहर की स्मृति के रूप में मनाई जा रही है। राजा विक्रमादित्य ने विजय के बाद जब राज्यारोहण हुआ तब उन्होंने प्रजा के तमाम ऋणों को माफ कर दिया तथा नये भारतीय कैलेण्डर को जारी किया, जिसे विक्रम संवत्ा् नाम दिया।
    चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नए साल का आरम्भ मानते हैं। हिन्दू पंचांग का पहला महीना चैत्र होता है। शक्ति और भक्ति के नौ दिन यानी कि चैत्र नवरात्रि घटस्थापना का पहला दिन भी यही है। मान्यता है कि इस दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में आ जाते हैं और किसी भी नए काम को शुरू करने के लिए यह मुहूर्त शुभ होता है ।
    भारत भर के सभी प्रान्तों में यह नव-वर्ष विभिन्न नामों से मनाया जाता है जो दिशा व स्थानानुसार सदैव मार्च-अप्रैल के माह में ही पड़ता है गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाडी, चेटीचंड, चित्रैय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नव संवत्सर के आसपास ही आती है।
    सबसे प्राचीन काल गणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन विक्रमी संवत्ा के रूप में इस शुभ एवं शौर्य दिवस को अभिषिक्त किया गया है। इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान्ा श्रीरामचन्द्रजी के राज्याभिषेक अथवा रोहण के रूप में मनाया गया। यह दिन वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय को याद करने का दिवस है। इसी दिन महाराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था। अगर ज्योतिष की माने तो प्रत्येक संवत्ा् का एक विशेष नाम होता है विभिन्न ग्रह इस संवत्ा् के राजा, मंत्री और स्वामी होते हैं इन ग्रहों का असर वर्ष भर दिखाई देता है सिर्फ यही नहीं समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को ‘आर्य समाज’ स्थापना दिवस के रूप में चुना था। इसी शुभ दिन महर्षि दयानन्द ने आर्यसमाज की स्थापना की थी। यह दिवस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक श्री केशव बलिराम हेडगेवार के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। पूरे भारत में इसी दिन से चैत्र नवरात्र की शुरूआत मानी जाती है।
    वैदिक संस्कृति से जोड़ता है हमें विक्रम संवत्ा् –
    विक्रम संवत्ा् ही हमें अपनी संस्कृति से जोड़ता है। भारतीय संस्कृति से जुड़े सभी समुदाय विक्रम संवत्ा् को एक साथ बिना प्रचार और नाटकीयता से परे होकर मनाते हैं और इसका अनुसरण करते हैं दुनिया का लगभग हर कैलेण्डर सर्दी के बाद बसंत ऋतु से ही प्रारम्भ होता है। यही नहीं इस समय प्रचलित ईस्वी सन्ा् वाला कैलेण्डर को भी मार्च के महीने से ही प्रारंभ होता है। इस कैलेण्डर को बनाने में कोई नयी खगोलीय गणना करने के बजाए सीधे से भारतीय कैलेण्डर (विक्रम संवत) में से ही लिया गया है।
    हिंदी 12 महीनों के नाम -पृथ्वी द्वारा 365 व 366 दिन में होने वाली सूर्य की परिक्रमा को वर्ष और इस अवधि में चंद्रमा द्वारा पृथ्वी के लगभग 12 चक्कर को आधार मानकर कैलेण्डर तैयार किया गया। क्रम संख्या के आधार पर उनके नाम रखे गए हैं। हिंदी महीनों के 12 नाम इस प्रकार है – चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन।
    हम कैसे मनायें नव वर्ष-नव संवत्सर –
    इस भारतीय और वैदिक नव वर्ष की पर हमें दीपदान करना चाहिये। घरों में घण्टा-घडियाल व शंख बजाकर मंगल ध्वनि से नव वर्ष का स्वागत करें। इष्ट मित्रों को एसएमएस, इमेल एवं दूरभाष से नये वर्ष की शुभकामना भेजना प्रारम्भ कर देना चाहिये। नव वर्ष के दिन प्रातःकाल से पूर्व उठकर मंगलाचरण कर सूर्य को प्रणाम करें। हवन कर वातावरण शुद्ध करें। नये संकल्प करें। नवरात्रि के नौ दिन साधना के शुरू हो जाते हैं तथ­ा नवरात्र घट स्थापना की जाती है।
Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram